मदरसों के पाठ्यक्रम में बदलाव पर जोर, बिजनेस स्टडीज को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की मांग

दिल्ली: देश के स्कूलों और विश्वविद्यालयों में हर साल पाठ्यक्रम में परिवर्तन और संशोधन हो रहा है और आधुनिक जांच को शामिल किया जा रहा है, तो दूसरी ओर देश में ऐसे भी मदरसों हैं, जिनमें दो सौ साल पुराना निजामी कोर्स प्रचलित है. मुस्लिम मजहबी रहनुमा भी अब खुलकर कहने लगे हैं कि आधुनिक विज्ञान के बिना कोई चारा नहीं है. मदरसों के 200 साल से अधिक पुराने पाठ्यक्रम में परिवर्तन और सुधार की वकालत तेज होती दिखाई दे रही है. मुस्लिम धार्मिक रहनुमा खुलकर मदरसों के पाठ्यक्रम में आधुनिक और समकालीन आवश्यकताओं को पूरा करने वाले उलूम व फ़नून को शामिल करने की आवाज उठाने लगे हैं.

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प्रदेश 18 के अनुसार, दिल्ली में अलतकवा एजुकेशनल समूह की ओर से मदरसों से शिक्षा प्राप्त करने वालों के लिए व्यापार के विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया. चर्चा में यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों के अलावा कई मदरसों से जुड़े धार्मिक नेता भी शामिल हुए. बहस के दौरान मदरसों के पाठ्यक्रम में सुधार और बदलाव की पुरजोर वकालत की गई. इस बात पर जोर दिया गया कि मदरसों के पाठ्यक्रम में बिजनेस स्टडीज शामिल किया जाना चाहिए.
विशेषज्ञों ने कहा कि मदरसों से शिक्षा प्राप्त लोग कानून, राजनीति विज्ञान और सोशल वर्क जैसे क्षेत्रों में जाकर काम करें, मस्जिदों और मदरसों को रोजी-रोटी का जरिया बनाने की बजाय व्यापार को पेशा बनाएं. बहस के दौरान जामिया अज़िजिया के छात्रों को भाषण और लेखन के अलावा उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए पुरस्कार से भी नवाजा गया.