‘मदरसों के लिए नहीं चाहिए हुकूमत की मदद’

दारुल उलूम देवबंद ने मुल्क भर में फैले अपने 3000 मदरसों को जदीद बनाने (modernization) के लिए किसी भी तरह की सरकारी मदद लेने से मना कर दिया है.

दारुल उलूम ने मदरसों में सरकारी नज़रिए से जदीद ( माडर्न) तालीम दिए जाने का भी एहतिजाज किया है. दारुल उलूम ने यह फैसला राब्ता-ए-मदारिस-ए-इस्लामिया में लिया, जिसका इनइकाद 23 और 24 मार्च को किया गया था.

दारुल उलूम के पब्लिक रिलेशन आफीसर मौलाना अशरफ़ उस्मानी ने कहा कि मदरसों में हुकूमती मुदाखिलत की मुखालिफत कोई नई बात नहीं है.

उन्होंने कहा कि, “हमें मदरसों को सरकारी इदारा (संस्था) नहीं बनाना है. हमारा तज़ुर्बा है कि जितने मदरसे सरकारी मदद लेते आए हैं वो ख़त्म हो गए हैं.”

उस्मानी कहते हैं, “हम क़ौम से चंदा लेकर काम चलाते हैं. जो हमारी दीनी ज़रूरत है, उसमें किसी तरह की सरकारी मदद की ज़रूरत नहीं पड़ती है.”

जदीद तालीम के बारे में मौलाना उस्मानी ने कहा कि, “मदरसे एक ख़ास सिलेबस पर चलते हैं. उसके साथ आज कम्प्यूटर, सा‍इंस , अंग्रेज़ी और हिंदी सभी सब्जेक्ट को पढ़ाया जा रहा है. लखनऊ के दारुल उलूम नदवा में शानदार कंप्यूटर लैब है.”

मौलाना उस्मानी के मुताबिक, “हुकूमत की नज़र में modernization का मतलब मदरसों को इंजीनियरिंग कॉलेज या यूनिवर्सिटी बनाना है ताकि मदरसों पर हुकूमत काबू कर सके.”

मौलाना सलमान मदनी ने भी दारुल उलूम देवबंद के फैसलों की हिमायत किया. उन्होंने कहा कि “मदरसों में इस्लामी क़ानून पढ़ाया जाता है. अगर यहां इंजीनियरिंग पढ़ाई जाएगी तो वो ग़लत होगा.”