मध्य प्रदेश चुनाव: क्या राजनीतिक पार्टियों को नहीं काम आया जातिगत समीकरण?

मध्य प्रदेश की चुनावी फिजा को साधने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने बिहार और उत्तर प्रदेश की तरह जातिगत सियासत को आधार बनाया और इसी के हिसाब से टिकट बांटे।

पर हुआ इसके विपरीत, कई सीटों पर दूसरी जातियों के लोगों ने ऐसी फजीहत की कि दोनों दलों के पसीने छूट गए। जानकारी के अनुसार बता दें कि प्रदेश के चुनाव में यह पहली बार हुआ कि जब जातियों के आधार पर दलों को ब्लैकमेल किया गया। खासतौर से चंबल -ग्वालियर और विंध्य में।

इसके साथ ही बता दें कि भाजपा-कांग्रेस पर विभिन्न सामाजिक संगठनों ने टिकटों को लेकर दबाव बनाया था और इसकी वजह एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन था, हर समाज बंट गया था। वहीं बता दें कि यहां सामान्य, ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग के वोट पचास फीसदी से ज्यादा हैं। ये वर्ग एससी-एसटी के भी खिलाफ थे।

सामान्य -22%, ओबीसी-33%, एससी- 16%, एसटी-21%, अल्पसंख्यक-8%

गौरतलब है कि प्रदेश की शांतिप्रिय राजनीतिक फिजा में कभी भी जातिवादी सियासत ने पैर नहीं पसारे और न ही ऐसी पार्टी पनप पाई। पर यह पहला मौका है जब एट्रोसिटी एक्ट और पदोन्न्ति में आरक्षण जैसे विषयों ने जातिवादी संगठन खड़े कर दिए बल्कि इसी सियासत की दम पर चुनाव भी लड़ लिया। अजाक्स , सपाक्स, जयस जैसे संगठनों ने भी विधानसभा चुनाव को प्रभावित किया।

वैसे प्रदेश का अब तक का इतिहास देखा जाए तो जातिवादी राजनीति करने वाले दल बहुजन समाज पार्टी, गोंडवाना पार्टी और सवर्ण समाज पार्टी जैसे दल कभी भी सफल नहीं हो पाए। पर इस चुनाव में परिदृश्य एकदम बदला हुआ था। विधानसभा चुनाव में चुनाव का विषय मुद्दे न होकर सिर्फ जातिवादी सियासत रह गया है।

साभार- ‘न्यूज़ ट्रैक’