मनमोहन-गिलानी मुलाक़ात

मालदीप के एक सेयाहती रेसॉर्ट में हिंदूस्तान-ओ-पाकिस्तान के वुज़राए आज़म की एक मुसबत और ख़ुशगवार मुलाक़ात हुई है । दोनों क़ाइदीन ने इस मुलाक़ात के बाद जिस तरह के ख़्यालात का इज़हार किया है इस से पता चलता है कि बाहमी ताल्लुक़ात की सर्द मोहरी को ख़तम करने और बातचीत का अमल जिस तात्तुल का शिकार होगया था इस को आगे बढ़ाने की सिम्त यक़ीनी तौर पर कुछ पेशरफ़त हुई है और ये ऐसी पेशरफ़त है जिस से दोनों ही ममालिक मुतमइन और ख़ुश हैं ।

डाक्टर मनमोहन सिंह ने इस मुलाक़ात के बाद अपने इज़हार-ए-ख़्याल में वाज़ेह किया कि पाकिस्तान के साथ ताल्लुक़ात को बेहतर बनाना हमेशा की तरह हिंदूस्तान की ख़ाहिश है और उन के ख़्याल में अब वक़्त आगया है कि दोनों मुल्कों की तारीख़ में एक नए बाब को तहरीर किया जाय । उन्हों ने वज़ीर-ए-आज़म पाकिस्तान मिस्टर यूसुफ़ रज़ा गिलानी को एक अमन पसंद शख़्सियत क़रार दिया और कहा कि दोनों मुल्कों की क़िस्मत एक दूसरे से मरबूत है ।

ये ऐसे रिमार्कस है और ऐसा तबसरा है जो अब तक हिंदूस्तान ने नहीं किया था । इस बार भी डाक्टर मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान से ताल्लुक़ात को बेहतर बनाने के मुआमला में हिंदूस्तान की संजीदगी का अमली मुज़ाहरा करते हुए इन ख़्यालात का इज़हार किया है । वैसे तो हिंदूस्तान हमेशा ही पाकिस्तान के साथ ताल्लुक़ात को बेहतर बनाने और जमूद को तोड़ने केलिए कोशिशें करता रहा है और इस मुआमला हमेशा ही संजीदगी का मुज़ाहरा भी करता रहा है ताहम पाकिस्तान की जानिब से ही इस मुआमला में रुकावटें पेश आती रहें और कुछ ना कुछ ऐसे वाक़ियात हुए हैं जिन की वजह से हिंदूस्तान को अपने मौक़िफ़ पर नज़र-ए-सानी करनी पड़ी थी ।

चाहे ये कारगिल की जंग हो कि मुंबई के हमले कोई ना कोई वाक़िया रौनुमा हुआ और बातचीत का अमल एक बार फिर तात्तुल का शिकार होगया था । भूटान में इस जमूद को तोड़ने में मदद मिली थी जब मनमोहन सिंह की मिस्टर गिलानी से पहली मर्तबा मुलाक़ात हुई थी । इस के बाद से हालात में कुछ तबदीली महसूस होने लगी है हालाँकि पाकिस्तान ने अभी तक मुंबई हमला के मुल्ज़िमीन को कैफ़र-ए-किरदार तक पहूँचाने केलिए कोई क़ाबिल लिहाज़ या तेज़ रफ़्तार कार्रवाई नहीं की है ।

इस के बावजूद हिंदूस्तान ने मुसबत मौक़िफ़ इख़तियार किया है । ये ताल्लुक़ात को बेहतर बनाने में हिंदूस्तान की हद दर्जा संजीदगी का इज़हार है जिस का एहतिराम किया जाना चाहीए । अब जबकि दोनों ममालिक के वुज़राए आज़म ने इंतिहाई मुसबत मुलाक़ात की है और वफ़ूद की बातचीत के इलावा दो बद्दू एक घंटा से ज़्यादा वक़्त तक तबादला-ए-ख़्याल किया है तो इस से उम्मीद बनती है कि ताल्लुक़ात को बेहतर बनाने की सिम्त में पेशरफ़त होगी । दोनों ममालिक ने अवामता अवाम राबतों को बेहतर बनाने केलिए वीज़ों की इजराई के अमल को आसान करने और हिंद । पाक मुशतर्का कमीशन का अहया अमल में लाने का फ़ैसला किया है ।

ये कमीशन 2005 से ग़ीरकारकरद था । दोनों ममालिक के वुज़राए आज़म ने तिजारती उमूर पर खासतौर पर तवज्जा दी है और ये एक मुसबत और बेहतरीन इक़दाम कहा जा सकता है । पाकिस्तान ने हालिया दिनों में हिंदूस्तान को तिजारत के मुआमला में इंतिहाई पसंदीदा क़ौम का मौक़िफ़ भी दिया है । हालाँकि ये इक़दाम ताख़ीर से किया गया है ताहम इस से ताल्लुक़ात और खासतौर पर तिजारती ताल्लुक़ात में बेहतरी पैदा होगी । जब तिजारत को फ़रोग़ होगा और एक दूसरे से मआशी मफ़ादात वाबस्ता होजाएंगे तो ये उम्मीद की जा सकती है कि दीगर नज़ाई मसाइल पर जो इंतिहाई सख़्त मौक़िफ़ इख़तियार किया गया है इस में भी कुछ हद तक लचक पैदा होगी । जिस तरह डाक्टर मनमोहन सिंह ने वाज़ेह किया है कि दोनों ममालिक की क़िस्मत एक दूसरे से मरबूत है इसी तरह दोनों ममालिक के मसाइल में भी यकसानियत पाई जाती है ।

अगर दोनों ममालिक मिल जल कर और बेहतर पड़ोसीयों जैसे जज़बात और ताल्लुक़ात के साथ एक दूसरे से तआवुन करें तो ये मसाइल भी बड़ी हद तक हल किए जा सकते हैं और इस का ज़्यादा फ़ायदा पाकिस्तान ही को होगा । ग़ुर्बत-ओ-इफ़लास और बेरोज़गारी के ख़ातमा तालीम-ओ-मआशी तरक़्क़ी के मुआमलात में हिंदूस्तान की महारत और इस की तरक़्क़ी से पाकिस्तान सबक़ हासिल करसकता है और उसे मदद भी मिल सकती है । शर्त यही है कि पाकिस्तान हिंदूस्तान के तईं दुश्मन मुलक जैसा रवैय्या तर्क करे और हिंदूस्तान के साथ ताल्लुक़ात की एहमीयत को सझते हुए उन्हें मुसबत अंदाज़ में आगे बढ़ाए ।

अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो जो तारीख़ी मौक़ा बाहमी ताल्लुक़ात को बेहतर बनाने केलिए दोनों मुल्कों को अब दस्तयाब हुआ है वो भी ज़ाए हो जाएगा जिस की ज़्यादा ज़िम्मेदारी पाकिस्तान पर आइद होगी । पाकिस्तान की हुकूमत इस बात से इनकार नहीं करसकती कि इस के मुल्क में कुछ ऐसे अनासिर हैं जो नहीं चाहते कि हिंदूस्तान के साथ इस के ताल्लुक़ात बेहतर हूँ और दोनों ममालिक बेहतर पड़ोसीयों जैसे माहौल में रहीं। ज़रूरत इस बात की है कि पाकिस्तान अब दस्तयाब मौक़ा से फ़ायदा उठाने केलिए इन अनासिर पर असरअंदाज़ हो और उन्हें हिंदूस्तान के साथ ताल्लुक़ात को एक बार फिर मुतास्सिर करने का मौक़ा ना दे ।

पाकिस्तान को ये हक़ीक़त भी क़बूल कर लेनी चाहीए कि हिंदूस्तान के साथ बाहमी ताल्लुक़ात की बेहतरी सारे जुनूबी एशिया केलिए एहमीयत की हामिल होगी ताहम इस का सब से ज़्यादा फ़ायदा पाकिस्तान को ही होगा । पाकिस्तान अपने पड़ोसी मुल्क से ताल्लुक़ात की बेहतरी की सूरत में अपनी ज़्यादा तर तवज्जा और सरकारी फ़ंडज़ को बेरोज़गारी और ग़ुर्बत-ओ-इफ़लास के ख़ातमा पर मर्कूज़ करसकता है । उसे दाख़िली तौर पर भी जो मसाइल हैं इन से भी पूरी यकसूई के साथ निमट सकता है और हिंदूस्तान ने जो तेज़ रफ़्तार तरक़्क़ी का सफ़र तए किया है पाकिस्तान भी इस पर गामज़न होसकता है