यांगून /प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज आख़िरी मुग़ल शहनशाह बहादुर शाह ज़फ़र के मज़ार पर हाज़िर होकर चादर पेश की। इन के साथ उन की पत्नी गुरशरण कौर और वज़ीर-ए-ख़ारजा(विदेश मंत्री) एस एम कृष्णा ने भी नज़राना अक़ीदत पेश किया।
बहादुर शाह ज़फ़र का यांगून में जिलावतनी की ज़िंदगी गुज़ारने के पाँच साल बाद इंतिक़ाल होगया था जबकि 1857 की पहली आज़ादी कि लडाइ में इन की नाकामि के बाद उन्हें यांगून जिलावतन कर दिया गया था। कुच्छ साल पहले तक कोई सहिह खबर हासिल नहीं हुई थीं कि बहादुर शाह ज़फ़र का हक़ीक़ी मज़ार कहां है। इन का मक़बरा 1991 में एक तामीराती सरगर्मी के दौरान दरयाफ़त हुआ।
मलिका ज़ीनत महल जिन का इंतिक़ाल 1886 में हुआ और उन के पोते भी मुग़ल शहनशाह की मज़ार के क़रीब ही दफन हैं। मनमोहन सिंह ने हिंदूस्तानी लोगों की तरफ से सारनाथ बुध का 16 फ़ीट बुलंद मुजस्समा मियांमार के लोगों को पेश किया।
प्रधानमंत्री रिवायती ढाई हज़ार साल क़दीम शवीडागन पिगोडा भी गए जहां गौतमबुद्ध के बाल और अन्य मुक़द्दस आसार महफ़ूज़ हैं। ये बुध मत के माननेवालों की मुक़द्दस तरीन इबादतगाह समझी जाती है। पिगोडा पर सैंकड़ों तिलाई पत्थर चढ़ाए गए हैं। छत पर स्टोपा है जिस पर 4,531 हीरे जुड़े हुए हैं, जिन में सब से बड़ा हीरा 72 क़ीरात का है।