पटना 25 अप्रैल : देहात तरक्की के वजीर नीतीश मिश्र ने सीएजी की उस रिपोर्ट को सिरे से मुस्तर्द किया है, जिसमें मनरेगा में कम खर्च करने की बात कही गयी है। 2007-08 से 2011-12 की मुद्दत में मनरेगा के परफॉरमेंस ऑडिट की रिपोर्ट पार्लियामेंट में पेश होने के बाद बिहार पर उठ रहे सवालों पर वज़ीर ने कहा कि बिहार ने अलोटमेंट से अधिक रक़म मनरेगा में खर्च की है। हक़य्क को गलत तरीके से रखा जा रहा है। सीएजी की रिपोर्ट में भी बिहार में हुए खर्च का तखमीना दिया गया है।
वज़ीर ने कहा, सीएजी की रिपोर्ट में यह कहा जाना कि मुल्क का 46 फिसद गरीब खानदान बिहार, यूपी और महाराष्ट्र में रहता है और कुल वसायल का सिर्फ 20 फीसद ही खर्च किया गया, यह पूरी तरह गलत है। साल 2007-12 के दरमियान बिहार को मनरेगा के तहत 6292.44 करोड़ रुपये दस्तयाब कराये गये। इस मुद्दत में रियासत हुकूमत ने अपने हिस्सा के अलावा 489 करोड़ रुपये अपने खज़ाना से खर्च किये। इस तरह कुल 8110.84 करोड़ रुपये खर्च किये गये।
साल-दर-साल मनरेगा में बिहार की कारकर्दगी बेहतर हुई है. 2011-12 में 1637.75 करोड़ रुपये खर्च हुए, तो 2012-13 में दो हजार करोड़ खर्च हुए, जो 22 फिसद ज्यादा है। 8.66 करोड़ की मुकाबले में 9.38 करोड़ इंसानी दिन की तखलीक हुआ। ख्वातीन की शिरकत 28.85 फिसद से 30.48 फिसद हुई। एससी की शिरकत 43 फिसद रही। साल 2011-12 में एक लाख 37 हजार 649 खानदानों को 100 दिनों का रोजगार दिया गया, तो 2012-13 में एक लाख 48 हजार 660 खानदानों को 100 दिनों का रोजगार दिया गया। इनमें आठ फीसद इज़ाफ़ा हुआ।
रक़म मिलने में होती है देर
वज़ीर ने मरकज़ पर इलज़ाम लगाया कि रक़म मिलने में काफी देर होती है। मंज़ूर लेबर बजट की मुकाबले में किसी भी साल काफी रक़म नहीं दी गयी। इसे लेकर फरवरी महीने में ही वज़ीरेआला ने मरकजी वज़ीर को लेटर लिखा था। सेक्रेटरी अमृत लाल मीणा ने कहा कि रवां माली साल में मजदूर बजट के तहत 10.56 करोड़ इंसानी दिन की तखलीक के मुकाबले में 2600 करोड़ रुपये मुख्तस किये गये हैं। असूलों के मुताबिक माली साल के इब्तेदाई महीनों में ही 1300 करोड़ मिलने हैं, पर सिर्फ 449 करोड़ ही मिल सका है। हरेक पंचायत पर यह सिर्फ पांच लाख रुपये ही आता है। बाकी रक़म अगस्त-सितंबर में मिलेगा।