नई दिल्ली। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने गुरुवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) से तीखा सवाल पूछा है। एआईएमपीएलबी ने कहा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ सुप्रीम कोर्ट के दायरे से बाहर है। सुप्रीम कोर्ट स्वतः संज्ञान लेते हुए मुस्लिम महिलाओं को दिए जाने वाले एकतरफा तलाक में उनके हकों और सुरक्षा की पड़ताल कर रहा है।
मनीष तिवारी ने ट्वीट कर पूछा है, ‘जो मोहम्मडन लॉ ट्रिपल तलाक की अनुमति देता है क्या वह भारतीय संविधान से भी ऊपर है? क्या मुस्लिम महिलाओं की एकतरफा तलाक में सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जानी चाहिए?’ मनीष तिवारी ने कहा कि भारतीय संविधान के आर्टिकल 25 और 26 में दिया गया धर्म की स्वंतत्रता का अधिकार तथ्यों को छुपा पतनशील प्रथाओं के औचित्य को साबित करने का जरिया बन गया है।
मनीष तिवारी के दो टूक ट्वीट के बाद मीडिया के कई तबकों ने उनसे संपर्क साधने की कोशिश की लेकिन उन्होंने इससे ज्यादा कुछ नहीं कहा। उन्होंने कहा कि उन्हें जो भी कहना था ट्वीट के माध्यम से कह दिया है। ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के जनरल सेक्रटरी और मीडिया प्रभारी रणदीप सूरजेवाला ने भी इस मामले में कुछ कहने से इनकार कर दिया। उन्होंने तब कुछ नहीं कहा जब पार्टी प्रवक्ता की तरफ से यह टिप्पणी आई है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड सत्ताधारी बीजेपी के लिए अहम मुद्दा रहा है जबकि कांग्रेस इस मामले में अक्सर खामोश रहती है। 1986 में राजीव गांधी की सरकार मुस्लिम पर्सनल लॉ के साथ डटकर खड़ी हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो तलाक मामले में भरण-पोषण के लिए मुआवजा मुहैया कराने का निर्देश दिया था लेकिन राजीव गांधी ने संसद से कानून पास कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल दिया था। एआईएमपीएलबी भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड के औचित्य पर सवाल खड़ कर रहा है। इसका तर्क है कि हिन्दू सिविल कोर्ड 1956 में पास किया गया लेकिन हिन्दुओं के बीच जातियों को लेकर भेदभाव खत्म नहीं हुए।