विपक्षी पार्टियों के खेमे में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर अभी भी एकता नहीं है। जहां कांग्रेस राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाना चाहती है वहीं विपक्षी दलों का एक खेमा तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी के पक्ष में है तो दूसरा दलित प्रधानमंत्री के नाम पर मायावती का नाम आगे कर रहा है। यह भ्रम कोलकाता में ममता बनर्जी की जम्मू कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला की मुलाकात के बाद और मुखर होकर उभरे।
जहां उमर ने ममता को प्रधानमंत्री पद का सशक्त उम्मीदवार करार दिया, ममता ने अपने पैर पीछे खींच लिए। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कहा – मैं हाथ जोड़ कर मीडिया से प्रार्थना करती हूं कि अभी प्रधानमंत्री पद के लिए किसी विपक्षी नेता का नाम नहीं उछाले। आप लोग किसी के नाम का कयास लगाकर विपक्षी दलों को आपस में लड़ाना चाहते हैं। यह करने से आप सिर्फ भाजपा की मदद ही करेंगे।
ममता का कहना था कि जब न तो चुनाव की घोषणा हुई है। न किन्हीं तारीखों का एलान हुआ और न ही कोई विपक्षी गठबंधन अभी अस्तित्व में आया है। ऐसे में इस गठबंधन के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम पर अटकलें लगाना ठीक नहीं है। अभी विपक्षी दलों के बीच इन मुद्दों को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई है। यह काम तभी उचित होगा जब गठबंधन बने, साथ चुनाव लड़े और भाजपा को हरा दे। तब लगने वाले कयासों पर हमें कोई आपत्ति नहीं होगी।
इससे पहले उमर अब्दुल्ला ने ममता की तारीफों के पुल बांधते हुए कहा कि वे प्रदेश सरकार बहुत ही अच्छी तरह से चला रही हैं। उनके राज्य में जनता खुश है। हम चाहते हैं कि वे दिल्ली चलें और ऐसे ही वे देश की सरकार चलाएं जैसी वे अपने प्रदेश की चला रहीं हैं।
मायावती की आकांक्षा
भले ही बहुजन समाज पार्टी के पास लोकसभा में एक भी सांसद न हो लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पाल रखी है। यही वजह है कि वे अपनी पार्टी को केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रखना चाहती हैं।
वे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के साथ सम्मानजनक समझौता मांग रही है। बसपा सूत्रों के अनुसार, वे आम चुनाव में इन राज्यों के अलावा विपक्षी दलों की सीट बंटवारे की बातचीत में कर्नाटक, महाराष्ट्र और बिहार में भी कुछ सीटें भी मांगेंगी।