असम में एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) जारी होने के बाद स्थिति का जायजा लेने के लिए गए तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को सिलचर हवाई अड्डे पर रोक लिया गया है.
तृणमूल कांग्रेस ने इसे सुपर इमरजेंसी की संज्ञा देते हुए कहा है कि उसके नेताओं को पीटा तक गया है. तृणमूल के आठ सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल में छह सांसद भी हैं.
असम में 30 जुलाई को जारी किए गए एनआरसी के मुताबिक़ 40 लाख लोगों को अवैध नागरिक माना गया है. हालांकि कई लोगों का दावा है कि भारतीय नागरिक होने के बावजूद उनका नाम सूची में नहीं है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एनआरसी के जारी होने के बाद इस पर कड़ी आपत्ति जताई थी. उन्होंने चेतावनी दी थी कि अगर बीजेपी ने इसे पश्चिम बंगाल में लागू करने की कोशिश की तो भारी ख़ून ख़राबा होगा और गृह युद्ध छिड़ सकता है. इसके बाद ममता ने दिल्ली आकर कई नेताओं से मुलाक़ात भी की थी.
‘गृह युद्ध’ संबंधी बयान पर सियासी घमासान होने के बाद ममता अपने बयान से पलट गई थीं.
संसद में भी इस मुद्दे पर लगातार हंगामा चल रहा है और कार्यवाही नहीं चल पा रही है. विपक्ष का आरोप है कि भाजपा चुनावी वजहों से लोगों को निशाना बना रही है.
तृणमूल प्रतिनिधिमंडल के रोके जाने पर नाराज़ ममता बनर्जी ने अपने ट्वीट में कहा है, “आपको याद रखना चाहिए कि हमने इस साल अप्रैल में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के बाद भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल को वहाँ जाने दिया था जबकि उन्होंने धारा 144 का उल्लंघन किया था. लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री के आश्वासन के बावजूद हमारे प्रतिनिधिमंडल के साथ दुर्व्यवहार किया गया, और तो और महिला सदस्यों को भी नहीं बख़्शा गया.”
ममता बनर्जी का आरोप है कि वहाँ की पुलिस ने पार्टी सदस्यों को एक होटल में जाने को कहा है, लेकिन वे होटल में क्यों जाएँ, वे वहाँ आम लोगों से मिलने गए हैं. क्या वो पिकनिक पर गए हैं?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कहा, “मेरा मानना है कि ये उनके (बीजेपी) अंत की शुरुआत है. वे हताश-परेशान हैं. इसलिए वे गुंडों की तरह व्यवहार कर रहे हैं.”
तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा, “हमारे प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को एयरपोर्ट पर हिरासत में लिया गया है. लोगों से मिलने का हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है. ये सुपर इमरजेंसी है.”
दूसरी ओर, भाजपा ने कहा है कि तृणमूल नेता वहाँ तनाव फैलाने गए हैं. पश्चिम बंगाल बीजेपी के प्रमुख दिलीप घोष ने कहा, “ये ख़ुद ही समस्या हैं. किसने उनको कहा था वहाँ जाने के लिए. उन्हें वापस आ जाना चाहिए. वहाँ कोई नहीं गया है.”
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव राहुल सिन्हा ने कहा है कि अगर वे असम में अस्थिरता फैलाने की कोशिश करेंगे, तो सरकार कार्रवाई करेगी. इन नेताओं को वहाँ से वापस भेज देना चाहिए.
1947 में बंटवारे के समय कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी ज़मीन-जायदाद असम में थी और लोगों का दोनों और से आना-जाना बंटवारे के बाद भी जारी रहा.
इसमें 1950 में हुए नेहरू-लियाक़त पैक्ट की भी भूमिका थी.
तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और बाद के बांग्लादेश से असम में लोगों के अवैध तरीके से आने का सिलसिला शुरू हो गया और उससे राज्य की आबादी का चेहरा बदलने लगा. इसके बाद असम में विदेशियों का मुद्दा तूल पकड़ने लगा.
इन्हीं हालात में साल 1979 से 1985 के दरम्यान छह सालों तक असम में एक आंदोलन चला. सवाल ये पैदा हुआ कि कौन विदेशी है और कौन नहीं, ये कैसे तय किया जाए? विदेशियों के ख़िलाफ़ मुहिम में ये विवाद की एक बड़ी वजह थी.
1985 में प्रदर्शनकारियों और केंद्र सरकार के बीच एक समझौता हुआ. सहमति बनी कि जो भी व्यक्ति 24 मार्च 1971 के बाद सही दस्तावेज़ों के बिना असम में घुसा है, उसे विदेशी घोषित किया जाएगा.
और अब एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जारी होने के बाद पता चला है कि असम में रह रहे क़रीब 40 लाख लोग अवैध नागरिक हैं.