नई दिल्ली, 1 जून: (एजेंसी) दिल्ली की एक अदालत ने कहा है कि तिब्बी मुआइना के दौरान डाक्टर की जानिब से मरीज़ा के हस्सास आज़ा को नामुनासिब अंदाज़ में छूना और जिन्सी पहल करना भी नाक़ाबिल ए कुबूल और बदतरीन एतेमाद शिकनी है।
जस्टिस जी पी मित्तल ने कहा कि एक फ़ज़ीशीन का रुतबा क़ाबिल-ए-भरोसा बाइख्तेयार होता है और मरीज़ के बेहतरीन मुफ़ाद में काम करना उसकी बुनियादी ज़िम्मेदारी है।
चुनांचे भरोसा बरक़रार रखने के लिए फिज़ीशीयन को चाहीए कि वो जिन्सी पहल से गुरेज़ करे क्योंकि ये नाक़ाबिल ए कुबूल और बदतरीन एतेमाद शिकनी है जो हिंदुस्तानी ताज़ीरी क़ानून की दफ़ा 354 के तहत मुस्तूजिब सज़ा ए जुर्म भी है। एक होम्योपैथी डाक्टर मदन मोहन की दरख़ास्त पर हाइकोर्ट ने ये फ़ैसला सुनाया है।
मदन मोहन को मई 2007 में अमराज़ जल्द, सर दर्द और नींद ना आने के आरिज़ों के ईलाज के लिए पहुंचने वाली लड़की के हस्सास आज़ा को ग़लत अंदाज़ में छूने पर 18 माह की सजा ए क़ैद दी गई थी।