मर्कज़ी बजट और मुस्लमान

मर्कज़ी हुक्मराँ जमात मुस्लमानों को इस वक़्त याद करती है जब उसे वोट लेना होता है। उत्तरप्रदेश के इलावा दीगर रियास्तों में आइन्दा असैंबली इंतिख़ाबात के पेशे नज़र मुस्लमानों की बहबूद की फ़िक्र का मुज़ाहरा करनेवाली कांग्रेस ज़ेर-ए-क़ियादत हुकूमत ने आम बजट में मुस्लमानों के लिए ख़ुसूसी तवज्जा देने का फ़ैसला किया है। सच्चर कमेटी की सिफ़ारिशात के मुताबिक़ इसकीमात का ऐलान करनेवाली हुकूमत ने मुलक के 90 मुस्लिम अक्सरीयत वाले अज़ला में फ़लाही इक़दामात-ओ-बहबूदी प्रोग्रामों की अमल आवरी के लिए 3000 करोड़ रुपय मुख़तस किए हैं और उन में से अब तक 2100 करोड़ रुपय ख़र्च किए जाने का भी इद्दिआ किया जा रहा है। अब सवाल ये पैदा होता है कि आया हुकूमत ने 2100 करोड़ रुपय के मसारिफ़ से कितने मुस्लिम घरानों को एक बेहतर ज़िंदगी गुज़ारने का इंतिज़ाम किया है। मुल्क में अक़ल्लीयतों की हालत ज़िंदगी का अंदाज़ा करने वालों ने हुकूमत के फ़लाही इक़दामात की शिकायत की है। वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने 15 नकाती प्रोग्राम के ज़रीया मुस्लमानों की बहबूद का बीड़ा उठाया था मगर वो अपने मक़सद में पूरी तरह कामयाब ना होसकी। इन से मुस्लिम अरकान-ए-पार्लीमैंट ने शिकायत की थी कि मर्कज़ी असकीमात पर अमल आवरी में कोताही होरही है जिस के नतीजा में मुस्लमानों को हुकूमत के इक़दामात से इस्तिफ़ादा करने का ख़ातिरख़वाह मौक़ा नहीं मिल रहा है। इस में शक नहीं कि मुस्लिम और अक़ल्लीयती तलबा-ए-के लिए इबतदा-ए-में स्कालरशिप फ़राहम करके तालीम के हुसूल की राह हमवार की गई मगर बाक़ी बरसों में स्कालरशिपस के हुसूल के लिए तलबा-ए-को जद्द-ओ-जहद करनी पड़ रही है और इस के लिए शराइत की तकमील को लाज़िमी क़रार दिया गया। दरमयानी आदमीयों ने स्कालरशिप की रक़म को भी हड़पने की कोशिश की। तलबा-ए-के हक़ तालीम का सवाल फिर एक बार गशत करने लगा। मुस्लिम तलबा-ए-को ओ बी सी ग्रुप में लाने के लिए भी वज़ारत अक़ल्लीयती उमोर ने बाक़ायदा ऐलान किया था। बाअज़ मुस्लिम ग्रुपस को हासिल होने वाले तहफ़्फुज़ात को ओ बी सी ज़मुरा के तहत भी तहफ़्फुज़ात फ़राहम किए गई। वज़ारत अक़ल्लीयती उमोर ने ये भी शिकवा किया था कि मग़रिबी बंगाल जैसी कई रियास्तें मुस्लमानों को ओ बी सी कोटा फ़राहम नहीं कररही हैं। मलिक की सिर्फ 6 रियास्तों में मुस्लमानों के एक दो ग्रुप ओ बी सी तहफ़्फुज़ात से इस्तिफ़ादा कररहे हैं। इन 6 रियास्तों में से उत्तरप्रदेश में सिर्फ दो मुस्लिम ग्रुप को ओ बी सी तहफ़्फुज़ात फ़राहम कररहा है। जबकि अफ़सोस की बात ये है कि कांग्रेस जो मुस्लमानों के लिए काम करने का दम भर्ती है अमली तौर पर इस से दूर ही। कांग्रेस हुक्मरानी वाली रियास्तों आंधरा प्रदेश, आसाम, महाराष्ट्रा और राजिस्थान में मुस्लमानों के कई ग्रुपस में से सिर्फ एक ग्रुप को ही ओ बी सी तहफ़्फुज़ात फ़राहम किए जा रहे हैं। ख़ासकर तलंगाना में मुस्लमानों की मआशी तालीमी हालत अबतर है। पहले के मुक़ाबिल हालिया बरसों में तलंगाना के मुस्लमानों को कई मसाइल से दो-चार करदिया गया है। मुस्लमानों की पसमांदगी और तालीम से महरूमी का एहसास रखने वाली हुकूमत या हुक्मराँ जमात को फिर एक बार उत्तरप्रदेश असैंबली इंतिख़ाबात के पेशे नज़र मर्कज़ी बजट में मुस्लमानों के लिए ख़ुसूसी तवज्जा देने का ख़्याल आया है। ये अच्छी बात है कि वो बजट के ज़रीया फंड्स की फ़राहमी में इज़ाफ़ा करेगी लेकिन इस तरह के इक़दामात के बाद भी अक़ल्लीयतों को ख़ातिरख़वाह राहत ना मिले तो ये शिकायत बरक़रार रहेगी कि असकीमात और इक़दामात में कहीं ना कहीं कोताही पाई जाती है। दरहक़ीक़त मर्कज़ ने सच्चर कमेटी की सिफ़ारिशी रिपोर्ट की रोशनी में मुस्लमानों की पसमांदगी का नोट लेकर पालिसीयां मुरत्तिब की थीं। मगर इस तल्ख़ हक़ीक़त को भी नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि मुस्लमानों कुमलक की रियास्तों, शहरों और टाउनस में तिजारत-ओ-सनअत के शोबों में तरक़्क़ी के मवाक़े फ़राहम नहीं किए जाते। बैंकों में एकाऊंटस खोलने के मसला पर भी तास्सुब पसंदी का मुज़ाहरा किया जाता है। मुस्लिम सनअतकारों को दरपेश चयालनजस का कोई सरकारी नोट नहीं लिया जाता। जो मुस्लिम सनअतकार क़र्ज़ के हुसूल या मालीयाती इक़दामात के लिए मालीयाती इदारों से रुजू होते हैं तो उन्हें मुख़्तलिफ़ शराइत की नज़र करदिया जाता है। ख़ुद रोज़गार के ज़रीया तिजारत करने के ख़ाहां मुस्लिम नौजवानों को भी कई परेशानीयों का सामना होता है। हिंदूस्तानी मुस्लमानों का अलमीया यही है कि इन की पसमांदगी और ग़रीबी के ताल्लुक़ से बहुत ज़्यादा ग़ौर-ओ-फ़िक्र का मुज़ाहरा किया जाता है मगर फ़लाही असकीमात पर दयानतदाराना अमल आवरी का दौर दूर तक नाम-ओ-निशान नहीं होता। अब बेहस ये है कि मर्कज़ में या रियास्तों में ऐसी कोई पार्टी नहीं है जो मुस्लमानों की बहबूद की हक़ीक़ी फ़िक्र रखती है मुस्लमानों में पाई जाने वाली पसमांदगी और तालीम-ओ-रोज़गार के मवाक़े पैदा करने के लिए किस पार्टी की कौनसी पालिसीयां मज़बूत-ओ-मुस्तहकम हैं इस का अंदाज़ा करने के लिए मुस्लमानों में एक दानशोराना और मुदब्बिराना क़ियादत की ज़रूरत है। सतही तौर पर मुस्लमानों की क़ियादत का दावा करने वाले क़ाइदीन कई हैं मगर हतमी तौर पर उन्हें उन के तवक़्क़ुआत और आरज़ूओं के मुताबिक़ तरक़्क़ी से हमकनार कराने का जज़बा रखने वाले क़ाइदीन की तलाश होनी चाहिए।