हुकूमत की हज पालिसी आज अदालत की जांच के तहत आ गई जबकि सुप्रीम कोर्ट ने मर्कज़ को हिदायत दी कि वो इस पालिसी के तहत दी जाने वाली सब्सीडी की तफ्सीलात पेश करे और वो वजूहात ज़ाहिर करे, जो रियास्ती कमेटीयों में नशिस्तें मुख़तस करने के लिए इख्तेयार की जाती हैं।
जज आफ़ताब आलम और जज रंजना प्रकाश देसाई पर मुश्तमिल एक बंच ने सरकारी वफ़ूद आज़मीन-ए-हज्ज के साथ रवाना करने के अमल पर ब्रहमी ज़ाहिर करते हुए मर्कज़ से ख़ाहिश की कि हज सब्सीडी के बारे में मुकम्मल तफ्सीलात फ़राहम की जाएं कि इसका फ़ैसला कैसे किया गया था और सब्सीडी का आग़ाज़ कब से हुआ है।
बंच ने हुकूमत से ख़ाहिश की कि वज़ीर-ए-आज़म के ख़ैरसिगाली वफ़द के बारे में भी तफ्सीलात गुज़श्ता 10 साल के लिए फ़राहम की जाएं। इन अफराद की फ़हरिस्त भी दाख़िल की जाए जो वफ़द में शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट की बंच ने हिदायत दी कि वफ़द की मुकम्मल तारीख़ और साथ ही साथ तमाम हालात, नशिस्तों की तादाद, तादाद में इज़ाफ़ा और मक़सद जिसके लिए ख़ैरसिगाली वफ़द रवाना किया जाता है।
अदालत में अफ़राद के इंतेख़ाब की तफ्सीलात के साथ दाख़िल की जाएं। अटार्नी जनरल जी ई वाहनवती और मुशीर क़ानूनी हैरिस बैरन हुकूमत की जानिब से अदालत पर पेश हुए ताकि अदालत के सवालात के जवाब दें। उन्होंने जवाबात देने के लिए मोहलत तलब की। अदालत बॉम्बे हाइकोर्ट के फ़ैसला को चैलेंज करते हुए पेश कर्दा अपील की समाअत कर रही थी, जिसकी बिना पर इसने वज़ारत-ए-ख़ारजा को मज़कूरा बाला हिदायात जारी कीं।