मर्कज़ , रियास्तों के हुक़ूक़ को सल्ब करने का ख़ाहां नहीं

नई दिल्ली 28 दिसम्बर‌ वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने पानी से मुताल्लिक़ मुजव्वज़ा क़ौमी क़ानूनी ढांचे पर मुख़्तलिफ़ रियास्तों के अंदेशों को आज मुस्तर्द कर दिया और कहा कि इस मसले पर रियास्तों के हुक़ूक़ सल्ब करने मर्कज़ का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि मर्कज़ी हुकूमत किसी भी तरह रियास्तों के हुक़ूक़ सल्ब करने की कोई ख़ाहिश नहीं रखती।

जो हुक़ूक़ दस्तूर के तहत रियास्तों को दिए गए हैं या मर्कूज़ आबी इंतिज़ामीया को हासिल हैं, में इस बात पर ज़ोर देना चाहता हूँ कि शामिल‌ क़ौमी क़ानून ढांचे को इस के सही तनाज़ुर में देखा जाये। वज़ीर-ए-आज़म ने मज़ीद कहा कि शामिल‌ क़ौमी क़ानूनी ढांचा दरअसल मर्कज़, रियास्तों और मुक़ामी मजालिस मुक़ामी को महसोला मुक़न्निना, आमिला और दीगर इख़्तयारात के इस्तेमाल से मुताल्लिक़ एक आम उसूली और मजमूई बयान समझा जाना चाहीए।

वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह आज यहां क़ौमी आबी वसाइल कौंसल के छटवें इजलास से ख़िताब कररहे थे जो तवक़्क़ो है कि ताज़ा तरीन क़ौमी आबी पालिसी मंज़ूर करेगा। इस क़ौमी पालिसी में आबी मसाइल के बारे में क़ौमी क़ानूनी ढांचा तजवीज़ किया गया है जिसको इस साल जनवरी में मंज़र-ए-आम पर लाए जाने के बाद अक्सर रियास्ती हुकूमतों की तरफ‌ से सख़्त मुख़ालिफ़त की जा रही है।

ज़ेर-ए-ज़मीन पानी की सतह में कमी के मसले का हवाला देते हुए वज़ीर-ए-आज़म ने कहा कि इस मसले को कलीदी एहमीयत हासिल होने के बावजूद पानी की निकासी और इस्तेमाल को बाक़ायदा बनाने के लिए हनूज़ कोई ठोस क़दम नहीं उठाया गया है। चुनांचे हमें ज़ेर-ए-ज़मीन पानी के ग़लत इस्तेमाल को कम से कम करने के लिए ज़रूरी क़दम उठाने की ज़रूरत है।

इस मक़सद के लिए मुनासिब क़वाइद वज़ा किए जाने चाहीए। अलावा अज़ीं उन्होंने ज़ेर-ए-ज़मीन पानी की निकासी के लिए बर्क़ी के इस्तेमाल को भी बाक़ायदा बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। डाँक्टर मनमोहन सिंह ने कहा कि मुल्क में तेज़ रफ़्तार मआशी तरक़्क़ी और शहरी आबादीयों में इज़ाफे के नतीजे में पानी की तलब और रसद के माबैन बहुत बड़ा फ़र्क़ पाया जाता है जिस से मुल्क में पानी की क़िल्लत और ज़रूरत के इशारीया की सूरत-ए-हाल इंतिहाई अबतर होचुकी है।

उन्होंने कहा कि ये सूरत-ए-हाल हमारे महिदूद आबी वसाइल के मुनज़्ज़म इस्तेमाल की मुतक़ाज़ी है और हमारे अंदाज़ फ़िक्र में इन्क़िलाबी तबदीली दरकार है। चुनांचे हमें सयासी नज़रियात और वाबस्तगियों के अलावा इलाक़ाई इख़तिलाफ़ात से बालातर होकर काम करना होगा।

उन्होंने आबपाशी के मौजूदा निज़ाम को हमा मक़सदी और वसीअ बनाने के लिए काबिल अमल अंदाज़ फ़िक्र अपनाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया और कहा कि आबी वसाइल के इंतेज़ाम में मुक़ामी तबक़ात को सरगर्मी के साथ शामिल किया जाना चाहीए। उन्होंने कहा कि पानी की ज़रूरीयात में ग़ैरमामूली इज़ाफ़ा हुआ है चुनांचे हमारे महिदूद आबी वसाइल को इन ज़रूरीयात से हम आहंग करने के लिए किफ़ायत शिआरी को अपनाने की ज़रूरत है। इस सूरत-ए-हाल में आबी इंतिज़ाम के लिए क़ौमी इत्तेफ़ाक़ राय पैदा करना ज़रूरी है। जवाबी ज़मानत के हुसूल की सिम्त पहले अहम और नाज़ुक क़दम होगा।