रियाद, ३० दिसम्बर: (एजेंसीज़) ख़वातीन केलिए ये ख़बर इंतिहाई हौसलाअफ़्ज़ा हो सकती है कि सऊदी अरब में अब ख़वातीन को इंतिख़ाबात लड़ने या अपने हक़ राय दही के इस्तिमाल के लिए मर्द हज़रात से तसदीक़ की कोई ज़रूरत नहीं होगी।
सऊदी अरब के एक ओहदेदार के मुताबिक़ ममलकत का ये फ़ैसला इस बात की ग़म्माज़ी करता है कि सऊदी अरब में अब ख़वातीन पर आइद की गई सख़्तियों में नरमी की जा रही है लेकिन इस के बावजूद भी ममलकत के कुछ मुसल्लेह Reformer इन इक़दामात को नाकाफ़ी क़रार दे रहे हैं।
दरीं असना शूरा कौंसल रुकन फ़हद उलार ज़ी ने सरकारी अख़बार उलवतन में अपने ख़्यालात का इज़हार करते हुए कहा कि ख़वातीन के लिए इंतिख़ाबात लड़ने या हक़ राय दही के इस्तिमाल का फ़ैसला ख़ादिम हरमैन शरीफ़ैन का है जिसे आलम इस्लाम का मुक़द्दस तरीन मुक़ाम तसव्वुर किया जाता है लिहाज़ा अब ख़वातीन को अपने किसी मर्द सरपरस्त की इजाज़त की ज़रूरत नहीं रहेगी।
याद रहे कि ममलकत की शूरा कौंसल मर्द हज़रात पर मुश्तमिल है। लेकिन इस के पास मुक़न्निना के कोई इख़्तयारात नहीं हैं। शाह के तारीख़ी फ़ैसला के बावजूद ममलकत में मौजूदा मर्द सरपरस्ती वाले क़ानून में कोई तरमीम नहीं की गई। ख़वातीन तन्हा सफ़र और मुलाज़मत नहीं कर सकतीं।
इन पर बैरून-ए-मुल्क में हुसूल-ए-इल्म, शादी, तलाक़ या किसी भी हॉस्पिटल में मर्द की इजाज़त के बगै़र दाख़िल होने पर इमतिना आइद है। ममलकत में इंतिहाई क़दामत पसंद वहाबीयत के इस्लामी नज़रिया पर अमल किया जाता है।
सऊदी अरब में शाही हुक्मराँ की जानिब से ख़वातीन को ज़्यादा से ज़्यादा इख़्तयारात देने का अमल जारी है। मुजव्वज़ा क़ानून भी इंतिख़ाबात में हिस्सा लेने वाली ख़वातीन की हौसला अफ़्ज़ाई करना है।