मलाऊन रुशदी के दौरा का तनाज़ा

हिंदूस्तानी नज़ाद गुस्ताख मुसन्निफ़ मलाऊन सलमान रुशदी को जुए पर अदबी फेस्टिवल में शिरकत केलिए दी गई दावत एक तनाज़ा की शक्ल इख़तेयार कर चुकी है । जयपुर अदबी फेस्टिवल में मलऊन मुसन्निफ़ को दावत दिए जाने की इत्तिला के साथ ही मुस्लिम तनज़ीमें उस की मुख़ालिफ़त में उठ खड़ी हुई थीं।

दार-उल-उलूम देवबंद ने सब से पहले रुशदी के दौरा हिंद को रोकने और इस का वीज़ा मंसूख़ करने का मुतालिबा किया । रुशदी का जवाब ये था कि उसे हिंदूस्तान का सफ़र करने वीज़ा की ज़रूरत नहीं है । ख़ुद फेस्टिवल के मुंतज़मीन ने ताहम इस गुस्ताख को दी गई दावत से दसतबरदारी इख़तेयार करने से इनकार कर दिया हालाँकि मुस्लिम तनज़ीमों ने मुंतज़मीन को इस के लिए राज़ी करने की हर मुम्किना कोशिश की थी ।

कई ग्रुप्स ने मुंतज़मीन के साथ बात चीत की लेकिन वो अपने हट धर्म फैसले पर अड़े रहे । जब जयपुर के मुस्लमानों ने इस मलऊन मुसन्निफ़ के ख़िलाफ़ एहतिजाज का ऐलान किया और मलिक के मुख़्तलिफ़ शहरों में भी एहतिजाज की तैयारियां होने लगीं तो इस मलऊन ने ख़ुद एक झूटी कहानी घड़ते हुए दौरा मंसूख़ कर दिया ।

इस ने इस सारे मुआमला में मुस्लमानों को बदनाम और रुसवा करने की एक और नाकाम कोशिश की और कहा कि मुंबई अंडरवर्ल्ड से ताल्लुक़ रखने वाले किराया के क़ातिल और कुछ दहश्तगर्द उस को हलाक करने का मंसूबा रखते हैं और इस इरादा से जयपुर पहूंचने वाले हैं। इस मलऊन ने इद्दिआ किया कि उसे महाराष्ट्रा में इंटेलीजेन्स ज़राए ने इसी इत्तिला दी है ताहम दूसरे ही दिन महाराष्ट्रा के डायरेक्टर जनरल पुलिस ने इस इत्तिला की तरदीद की और कहा कि महाराष्ट्रा पुलिस को इसी कोई इत्तिला नहीं है और जब ये इत्तिला है ही नहीं तो उसे किसी के साथ बांटने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता ।

महाराष्ट्रा डी जी पी के बयान से इस मलऊन के बयान की नफ़ी होगई और अब वो हुकूमत राजस्थान को निशाना बना रहा है कि हुकूमत ने इस को इस फेस्टिवल से दूर रखने केलिए इस तरह की कहानी घड़ी थी और ख़ुद उसे भी गुमराह किया था । मलाऊन रुशदी का ये इद्दिआ किस हद तक दरुस्त है ये तो कोई नहीं कह सकता लेकिन अच्छी बात ये होगई कि ख़ुद इस ने जान के ख़ौफ़ से दौरा हिंद मंसूख़ कर दिया ।

इस सारे मुआमला में जयपुर अदबी फेस्टिवल के मुंतज़मीन और दीगर मुसन्निफ़ीन का रवैय्या मज़मूम रहा । इन मुंतज़मीन ने इज़हार ख़्याल की आज़ादी के नाम पर रुशदी की दावत से दसतबरदारी से इनकार कर दिया । हालाँकि ये मुआमला इज़हार ख़्याल की आज़ादी से मुताल्लिक़ हरगिज़ नहीं था बल्कि ये मुस्लमानों के मज़हबी जज़बात को मजरूह करने का मुआमला है । इलावा अज़ीं इस दावे के साथ इन मुंतज़मीन और मुसन्निफ़ीन के दोहरे मीआर का भी इफ़शा होगया की उनका इन मुसन्निफ़ीन ने कभी भी हिंदूस्तान के माया नाज़ मुसव्विर एम एफ हुसैन के लिए आवाज़ नहीं उठाई जब उन पर हिन्दू देवियों की ब्रहना तसावीर बनाने का इल्ज़ाम आइद किया गया ।

उस वक़्त उन्हें इज़हार ख़्याल की आज़ादी का ख़्याल नहीं आया । एम एफ हुसैन तवील अर्सा तक सारी दुनिया के मुसव्विरों में हिंदूस्तान का नाम रोशन करते रहे और बेमिसाल कारनामे अपने शोबा में अंजाम दिए इस के बावजूद हिन्दू बुनियाद परस्तों ने उन्हें अपने ही वतन में जीना और मरना तक मुश्किल कर दिया था । यही वजह थी कि हिंदूस्तान से बेइंतिहा मुहब्बत के बावजूद उम्र के आख़िरी पड़ाव में एम एफ हुसैन हिंदूस्तान की शहरियत तर्क करने और दयार गैर में आख़िरी सांस लेने पर मजबूर हो गए ।

इंतिहा तो ये हो गई कि बहादुर शाह ज़फ़र के मिसरा के मिस्दाक़ उन्हें दो गज़ ज़मीन भी ना मिले दफ़न के लिए । उनको लंदन ही में सपुर्द-ए-ख़ाक कर दिया गया । ये तरक़्क़ी पसंद और असरी हालात-ओ-तक़ाज़ों से हम आहंग कहलाने वाले मुसन्निफ़ीन की तंगनज़री और दोहरा मीआर ही है । वो रुशदी की मज़मूम हरकतों को तो इज़हार ख़्याल की आज़ादी क़रार देते हैं और उसे बड़े ख़ुलूस के साथ हिंदूस्तान के दौरा की दावत देते हैं लेकिन एम एफ हुसैन के मुआमला में इन की ज़बान तक नहीं खुलती ।

किसी ने एम एफ हुसैन को हिंदूस्तान में कम अज़ कम दफ़न करने तक केलिए आवाज़ नहीं उठाई । यही लोग अब मलाऊन और गुस्ताख सलमान रुशदी के इज़हार ख़्याल की आज़ादी की दहाईयां दे रहे हैं।

इस सारे तनाज़ा में हुकूमत का रोल भी मसलिहतों से पर रहा है । हुकूमत ने जहां इस मलाऊन के दौरा हिंद पर पाबंदी आइद नहीं की वहीं बिलवासता अंदाज़ में इस को रोकने की कोशिशें करते हुए मुल़्क की पाँच रियासतों में होने वाले असेंबली इंतेख़ाबात में फ़ायदा उठाने की कोशिश की है । हुकूमत यक़ीनी तौर पर पाँच रियासतों के मुस्लमानों को नाराज़ करना नहीं चाहती थी और साथ ही इस के दौरा हिंद पर पाबंदी आइद करते हुए हिन्दू वोट बैंक को भी मुतास्सिर होने का मौक़ा नहीं देना चाहती थी इसी लिए इस ने दोहरा मीआर इख़तियार किया और इस सारे मुआमला को मुस्लमानों के मज़हबी जज़बात से जोड़ने की बजाय सयासी मस्लिहत पसंदी वाला रवैय्या इख़तियार किया और सयासी फ़ायदा हासिल करने की कोशिश की है ।

हुकूमत का ये रवैय्या अफ़सोसनाक और काबिल-ए-मुज़म्मत है । उसे रास्त बाज़ी से काम लेते हुए इस मालून के दौरा हिंद पर पाबंदी आइद करनी चाहीए थी लेकिन इस ने एसा नहीं किया और सयासी फ़ायदा को ही तरजीह दी । मुल्क भर के मुस्लमानों में जो बेचैनी पैदा हुई थी वो तो इस मलाऊन के दौरा की तंसीख़ से ख़तन होगई थी लेकिन मुंतज़मीन फेस्टिवल ने इस की ममनूआ किताब के इक़तिबासात पढ़ कर मुस्लमानों के जज़बात को फिर मजरूह किया है ।

हुकूमत को ममनूआ किताब के इक़तिबासात पढ़े जाने पर कम अज़ कम अब कार्रवाई करनी चाहीए ।