एक ख़ातून को मलाऊन मुसन्निफ़ सलमान रुशदी की नॉवल्स पर माबाद डाक्ट्रेट फेलोशिप दी गई है लेकिन इसने इस्लामी दरस गाह दार-उल-उलूम देवबंद के एतराज़ की बिना फैलोशिप जारी ना रखने का फ़ैसला किया है। प्रभा पारमर अपना रिसर्च का काम सलमान रुशदी, अमिताभ घोष और विक्रम सेठ की नॉवल्स पर कर रही थीं लेकिन उन्होंने चौधरी चरण सिंह यूनीवर्सिटी वाइस चांस्लर को मकतूब रवाना करते हुए रिसर्च के लिए उनवान तब्दील की इजाज़त देने की दरख़ास्त की।
वो किसी भी फ़िर्क़ा के जज़बात को मजरूह करना नहीं चाहतीं और उन की ख़ाहिश है कि यूनीवर्सिटी के वक़ार पर उंगली ना उठने पाए। यूनीवर्सिटी ने मकतूब वसूल होने की तौसीक़ की है। दार-उल-उलूम देवबंद ने बदनाम-ए-ज़माना रुशदी की नाविलों पर तहक़ीक़ाती काम तफ़वीज़ करने पर यूनीवर्सिटी को शदीद तन्क़ीद का निशाना बनाया था और कहा था कि इस मलाऊन मुसन्निफ़ की नावल पर किसी भी तरह के तहक़ीक़ाती काम की मुख़ालिफ़त की जाएगी।
इस तनाज़ा के बाद यूनीवर्सिटी ने प्रभा पारमर के माबाद डाक्टरेट फैलोशिप उनवान सलमान रुशदी, अमिताभ घोष और विक्रम सेठ की बड़ी नाविलों में हक़ायक़ पर मबनी करिश्माती पहलू को मंसूख़ कर दिया है ताहम यूनीवर्सिटी ने मंसूख़ी की दूसरी वजूहात बताई।
यूनीवर्सिटी शोबा इंग्लिश के प्रोफेसर अरूण कुमार ने कहा कि प्रभा पारमर ने बाअज़ तिब्बी वजूहात की बिना पर मुक़र्ररा वक़्त के अंदर अपना तहक़ीक़ाती काम शुरू नहीं किया, इस वजह से इसे मंसूख़ किया गया है।