मसल-ए-कश्मीर की यकसूई पर हिंद,पाक मुस्तहकम रवाबित का इन्हिसार

नौजवान अदल-ओ-इंसाफ़ की बुनियाद पर हिंदूस्तान की अज़सर-ए-नौ तामीर पर तवज्जा मबज़ूल करें ताकि ख़ित्ता में अमन-ओ-अमान को यक़ीनी बनाया जा सके । जब कभी सदाक़त-ओ-ताक़त की मार्का आराई(लडाइ) हुई हमेशा जो नतीजा सामने रहा इस के मुताबिक़ सदाक़त फ़तह से हमकनार रही । ख़ाह ताक़त कितनी ही ज़्यादा क्यों ना हो । कुल जमाती हुर्रियत कान्फ़्रैंस सरबराह जनाब सैयद अली शाह गिलानी ने आज सिविल लिबर्टीज़ की जानिब से मुनाक़िदा समीनार से ख़िताब के दौरान ये बात कही ।

उन्हों ने कश्मीर के मुताल्लिक़ बताया कि आज़ादी कश्मीर के लिए अवाम बरसों से जद्द-ओ-जहद कर रहे हैं और गुज़शता 60 बरसों के दौरान 6 लाख अफ़राद ने अपनी ज़िंदगीयों की क़ुर्बानी पेश की है । जब तक कश्मीरी अवाम से इंसाफ़ नहीं किया जाता उस वक़्त तक हिंदूस्तान और पाकिस्तान के माबैन ताल्लुक़ात इस्तिहकाम हासिल नहीं कर सकते । जनाब सैयद अली शाह गिलानी ने बताया कि कश्मीर में इंसानी हुक़ूक़ की पामाली और इंसानियत सोज़ मज़ालिम से अवाम आजिज़ आचुके हैं ।

नेहरू कश्मीर को फ़ौज रवाना करते हुए ये ऐलान किया था कि हालात मामूल पर आने के बाद फ़ौज को वापस तलब कर लिया जाएगा लेकिन आज भी कश्मीर फ़ौज के मुहासिरा में है । उन्हों ने बताया कि आज़ादी हिंद के बाद दो ममालिक पाकिस्तान और बंगला देश तशकील पाए लेकिन बशमोल हिंदूस्तान तीनों ममालिक में अक़लीयतों के साथ नाइंसाफ़ी हुई । उन्हों ने हिंदूस्तान में अक़लीयतों से नाइंसाफ़ीयों की मिसाल पेश करते हुए कहा कि बगै़र किसी इश्तिराक के कांग्रेस ने मुल्क पर 40 बरस तक हुकूमत की इन 40 बरसों के दौरान 40 हज़ार फ़सादात हुए जिस में अक़लीयतों का ही नुक़्सान हुआ ।

जनाब सैयद अली शाह गिलानी ने बताया कि कश्मीरी अवाम का मौक़िफ़ सच्चाई पर मबनी है । उन्हों ने बताया कि जब मुस्लमान आख़िरत पसंद बन जाऐंगे तो ये मुल़्क अमन की अलामत बन सकता है । उन्हों ने मुस्लमानों को अपनी तहज़ीब और शनाख़्त के तहफ़्फ़ुज़ की तलक़ीन करते हुए कहा कि वो अपनी ज़बान उर्दू को बचाने के लिए कोशिशों का आग़ाज़ करें ताकि अपनी तहज़ीब की हिफ़ाज़त को यक़ीनी बनासके । जनाब सैयद अली शाह गिलानी ने बताया कि हमें ये पैग़ाम आम करना है कि हम फ़िरका परस्त नहीं बल्कि ख़ुदा परस्त है और वतन परस्त भी नहीं हैं बल्कि आख़िरत पसंद हैं ।

उन्हों ने मुस्लमानों में दुख़तर कुशी के वाक़ियात की इत्तिलाआत पर अफ़सोस का इज़हार करते हुए कहा कि मुस्लमान लड़कीयों का वजूद बर्दाश्त नहीं कर रहे हैं और इस तरह अपनी आख़िरत को बर्बाद करने का मूजिब बन रहे हैं । जहेज़जैसा नासूर मुस्लमानों में सराएत कर गया है जो कि मुस्लिम क़ौम के हक़ में मुनासिब नहीं है। उन्हों ने बाबरी मस्जिद की शहादत का तज़किरा करते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद शहीद होती रही और हुक्मराँ वक़्त पी वी नरसिम्हा राउ ना गोली चलाने के काबिल थे ना ही लाठी लेकिन शहादत बाबरी मस्जिद के बाद जब मुस्लिम नौजवानों ने एहतिजाज किया तो उन पर गोलीयां चलाई गई ।

आज मालीगाउं समझौता ऐक्सप्रैस मक्का मस्जिद बम धमाके ये साबित कर रहे हैं कि दहश्तगर्दी कहां फ़रोग़ पारही है । इन बम धमाकों में ना सिर्फ हिन्दू दहश्तगर्द बल्कि फ़सताई ज़हनीयत के हामिल फ़ौजी ओहदेदार भी शामिल रहे । उन्हों ने बताया कि हिंदूस्तान जहां दिफ़ा को तर्जीह दे रहा है वहीं महकमा दिफ़ा अक़लीयतों के ख़िलाफ़ इक़दामात करने से गुरेज़ नहीं कररहा है जो कि मुनासिब नहीं ।

जनाब सैयद अली शाह गिलानी ने बताया कि कश्मीर में एक करोड़ 30 लाख अवाम दो हिस्सों में मुनक़सिम हो चुके हैं जिन में कई ख़ानदान भी एक दूसरे से दूर ज़िंदगी गुज़ारने पर मजबूर हैं । सिविल लिबर्टीज़ मॉनीट्रिंग कमेटी की जानिब से मुनाक़िदा इस समीनार की सदारत डाक्टर रिहाना सुलताना ने की । इस मौक़ा पर प्रोफ़ैसर जगमोहन सिंह प्रोफ़ैसर सैयद अबदुर्रहमान गिलानी जनाब लतीफ़ मुहम्मद ख़ान के इलावा दीगर मौजूद थे ।

प्रोफ़ैसर एस ए आर गिलानी ने अपने ख़िताब के दौरान बताया कि हिंदूस्तान जमहूरीयत सैक़्यूलर ममलकत का दावा करते हुए भी मुस्लमानों और कश्मीरी के हमराह सौतेला सुलूक इख़तियार किए हुए है । उन्हों ने जारीया माली साल के बजट में किए गए 17 फ़ीसद दिफ़ाई बजट में इज़ाफ़ा को तन्क़ीद का निशाना बनाते हुए कहा कि दिफ़ाई बजट में इज़ाफ़ा के बजाय हिंदूस्तान तरक़्क़ी पर तवज्जा मर्कूज़ कर सकता है लेकिन ऐसा महसूस होता है किदिफ़ाई बजट में इज़ाफ़ा के ज़रीया ख़ुद एतिमादी में इज़ाफ़ा करने की कोशिश की जा रही है । प्रोफ़ैसर एस ए आर गिलानी ने बताया कि हिंद।

पाक के बेहतर मुस्तक़बिल के लिए मसला-ए-कश्मीर का हल ज़रूरी है । जब तक मसला-ए-कश्मीर हल नहीं किया जाता उस वक़्त तक दोनों ममालिक के दरमयान मुज़ाकरात और ताल्लुक़ात में इस्तिहकाम मुम्किन नहीं है । उन्हों ने बताया कि 7 लाख फ़ौजी कश्मीर में हैं । गुज़शता कई बरसों से कश्मीर में फ़ौज को रखने के बाद करोड़ों रुपये के नुक़्सान के इलावा कुछ हासिल नहीं हो पाया है । इस के बावजूद कश्मीर में फ़ौज को रखते हुए कश्मीरी अवाम के मुतालिबा को कुचलने की कोशिश करना दरुस्त नहीं है ।

प्रोफ़ैसर एस ए आर गिलानी ने कश्मीरी अवाम के मुतालिबा को जायज़ और इंसानी हुक़ूक़ की आज़ादी पर महमूल करते हुए कहा कि हिंदूस्तानी हुकूमत को कश्मीरी अवाम के मुतालिबा को क़बूल करने में पस-ओ-पेश नहीं करना चाहीए । डाक्टर रिहाना सुलताना ने अपने सदारती ख़िताब के दौरान मेहमान मुक़र्ररीन का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि इंसानी हुक़ूक़ की पामाली के ख़िलाफ़ हम हमेशा सरगर्म रहेंगे । इबतदा-ए-में जनाब लतीफ़ मुहम्मद ख़ान ने ख़ैर मक़दम किया।