मरीज़ मर्ज़ से कम बिल से ज़्यादा परेशान , कमाई का निस्फ़ हिस्सा ईलाज की नज़र
एक आम आदमी डाक्टर को अपना हमदरद और मसीहा तसव्वुर करता है ,उनकी तजावीज़ और उनकी लिखी हुई दवाओं पर आंखें बंद करके भरोसा करता है …मगर ये एक इंतिहाई तल्ख़ हक़ीक़त है कि मसीहा नुमा डाक्टरों का ये तबक़ा इसी एतिमाद और भरोसे का क़तल कर देता है।
दरअसल हम बात कर रहे हैं उस नुस्खे़ की जिस पर एक डाक्टर अपने मरीज़ से अच्छी ख़ासी फीस वसूल करने के बाद भी महंगी तरीन दवाएं लिखता है और जिस की वजहा से आम आदमी की कमाई का निस्फ़ हिस्सा ईलाज-ओ-मुआलिजा की ही नज़र हो जाता है।
आख़िर एसा क्यों होताहै ? आम तौर पर डाक्टरों की अक्सरियत महंगी दवाएं ही क्यों तजवीज़ करती है ? क्या वजहा है कि किसी मर्ज़ का माहिर (स्पैशलिस्ट) डाक्टर भी मामूली अमराज़ की वजूहात बगैर टेस्ट के बताने से गुरेज़ करते हैं ?।
किया वजह है कि हमारे डॉक्टर्स मेयार के नाम पर जनरिक मेडीसिन के मुक़ाबले में ब्रांडेड कंपनियों की ही दवाएं लिखते हैं ?ओर ये कि ,क्या ब्रांडेड कंपनियों के मुक़ाबले में जेनरिक मेडीसिन कम फ़ायदेमंद , बेअसर और मुज़िर सेहत होती हैं ? ये और इस जैसे बहुत सारे सवालात के जवाबात हम आने वाली सुतूर में देने की कोशिश करेंगे ,
ताहम इख़तिसार के साथ अगर हम ये कहीं कि डाक्टरों की अक्सरियत और दवासाज़ कंपनियों की मिली भगत ने तिब्ब जैसे बाइज़्ज़त पेशे को लूट खसूट का एक अहम ज़रीया बना लिया है ।
शायद पहली नज़र में आपको ये बात कुछ अजीब लगे, मगर हम मरहला वार ये साबित करदेंगे कि अगर एक डाक्टर चाह ले तो बड़ी से बड़ी बीमारियों का भी मामूली अख़राजात(खर्च ) या कम अज़ कम काबिल-ए-बरदाश्त अख़राजात(खर्च) के साथ ईलाज कर सकता है
और अगर चाहे तो तिल को पहाड़ बनाकर मामूली मर्ज़ के ईलाज में मरीज़ को कंगाल बना सकता है … इसलिए डाक्टरों की अक्सरियत ना सिर्फ़ अपनी मतलूबा कंपनीयों की दवाएं तजवीज़ करती है बल्कि मरीज़ों को ये ताकीद भी करती है कि दवा ख़रीदने के बाद एक बार वो उन्हें ज़रूर बत्तालें,
हालाँकि इस ताकीद का मक़सद ख़ुद डॉक्टर्स को ये इत्मीनान हासिल करना होता है कि उनकी लिखी हुई दवाएं ही खरीदी गई हैं ,जबकि मरीज़ये तसव्वुर करता है कि डाक्टर साहब ने जो दवाएं तजवीज़ की हैं उन्हें वही दवाएं मिल गईं ।
लिहाज़ा ये किसी दूसरी दवाओं के मुक़ाबले में ज़्यादा मूसिर हैं … लेकिन कंपनी या दवाओं के नाम अलग होजाने से किया दवाओं के असरात भी तब्दील होजाते हैं , या महज़ क़ीमतों में फ़र्क़ पैदा होता है ? ये जानने के लिए मुलाहिज़ा कीजिए कल दूसरी क़िस्त..(जारी है)