मस्जिद नबवी के 100 दरवाज़े चौबीस घंटे खोल दिए गए

माहे सियाम ( रमज़ान के महीने) के दौरान मस्जिद नबवी के कल 100 बैरूनी दरवाज़े खोल दिए गए हैं। अब दुनिया भर से आने वाले मातमरीन और ज़ाइरीन ( तीर्थयात्री) 24 घंटे रोज़ा र० स० अ० की ज़यारत से फ़ैज़याब( लाभन्वित) हो सकेंगे। यहां ये अमर वाज़िह रहे कि मस्जिद नबवी को दुनिया भर की तमाम आलीशान इमारात में भी ये मुमताज़ मुक़ाम हासिल है कि इस में मजमूई ( सामूहिक/ कुल मिलाकर) तौर पर 100 बैरूनी दरवाज़े हैं।

दुनिया की कोई दूसरी ऐसी इमारत नहीं जिस के बैरूनी दरवाज़ों की तादाद इतनी ज़्यादा हो। ज़राए इबलाग़ ( Media Notification) के मुताबिक़ मस्जिद नबवी की इंतिज़ामी कमेटी के डायरेक्टर राशिद अलमग़ज़वी ने अपने एक ब्यान में बताया कि कमेटी ने माहे सियाम ( रमज़ान) के दौरान मस्जिद नबवी के जदीद व क़दीम तमाम दरवाज़े ज़ाइरीन (तीर्थयात्रीयों) के लिए खुले रखने का फ़ैसला किया है।

इस से क़बल ज़ाइरीन के लिए बंद किए गए क़दीम दरवाज़ों बाब अलरहमा, बाब जिब्रील और बाब अलनिसा को भी ज़ाइरीन रोज़ा रसूल ( स०अ०व०) में दाख़िले के लिए इस्तेमाल कर सकेंगे। राशिद अलमग़ज़वी ने कहा कि मस्जिद नबवी के बाअज़ ( कुछ) दरवाज़ों को नमाज़ इशा के बाद कोई डेढ़ घंटे के लिए बंद कर दिया जाता था लेकिन ख़ादिम अल‍ हरमैन अश्शरीफ़ैन ने ख़ुसूसी हिदायत दी है कि रोज़ा रसूल के तमाम दाख़िली और ख़ारिजी दरवाज़ों को हमावक़त ( हर वक़्त) खुला रखा जाय।

मस्जिद नबवी की मजलिस-ए-मुंतज़िमा के एक दूसरे रुकन अब्दुल्ला हादी अलमतीरी ने बताया कि रोज़ा रसूल (स०अ०व०) के वसीअ-ओ-कुशादा दरवाज़े ना सिर्फ ज़ाइरीन की सहूलत के लिए हैं बल्कि ये मस्जिद नबवी के हुस्ने इंतिज़ाम की अलामत हैं। इन दरवाज़ों पर खड़े पहरेदार किसी भी शख़्स को खाने पीने की अशीया अंदर ले जाने की इजाज़त नहीं देते।

इस के इलावा कोई भी ज़ाइरीन अपने साथ उठाए सफ़री सामान को इन दरवाज़ों से बाहर अमानत बाक्स में रखवा कर अंदर जा सकता है। मस्जिद नबवी की दूसरी मंज़िल के लिए बनाए गए बारह दरवाज़ों तक पहुंचने के लिए ज़ाइरीन को ख़ुद चलने की ज़हमत भी गवारा नहीं करना पड़ती बल्कि उन्हें इलेक्ट्रिक ज़ीने ( सीढ़ी) . मस्जिद के अंदर तक ले जाते हैं।

अलमतीरी का कहना था कि मस्जिद नबवी की तरह इस के दरवाज़े भी पाकीज़गी और तहारत (पवित्रता) की अलामत हैं ही लेकिन उन की तैयारी में जिस कारीगरी, तज़ईन ( सजावट/ सज्जा) और तवज्जा से काम किया गया है वो बज़ात-ए-ख़ुद ज़ाइरीन की तवज्जा का मर्कज़ ( केंद्र) रहता है।