मस्जिद में ‘नमाज’ पर फैसला करेगा सुप्रीम कोर्ट

अयोध्या राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। उच्चतम न्यायालय 27 सितंबर (कल) इस बात पर फैसला सुना सकता है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं। इस फैसले का लम्बे समय से इंतजार था दरअसल, मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दलील दी गई है कि इस पर जल्दी निर्णय लिया जाए। इस पर फैसला आने के बाद ही असल मुद्दे पर निर्णय आने की संभावना है। फैसले में कोर्ट बताएगा कि यह मामला संविधान पीठ को रेफर किया जाए या नहीं।

सुप्रीम कोर्ट ने 20 जुलाई को इस मुद्दे पर फैसला सुरक्षित रखा था कि संविधान पीठ के इस्माइल फारूकी (1994) फैसले को बड़ी बेंच को भेजने की जरूरत है या नहीं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट अयोध्या विवाद में मालिकाना हक के मुकदमे से पहले इस पहलू पर सुनवाई कर रहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं।

अयोध्या आखिर किसकी जमीन है इस पर अभी सुनवाई होनी बाकी है। हालांकि इस मामले से जुड़े एक सीमित सवाल को संवैधानिक बेंच के पास भेजा जाए या नहीं इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया गया है। 1994 में इस्माइल फारुकी के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने फैसला दिया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है। इसके साथ ही राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया गया था ताकि हिंदू धर्म के लोग वहां पूजा कर सकें।

अब कोर्ट इस बात पर विचार करेगा कि इस निर्णय की समीक्षा किए जाने की आवश्यकता है या नहीं। मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि इस फैसले पर दोबारा परीक्षण किए जाने की जरूरत है। यही वजह है कि अब अदालत इस बात पर फैसला करेगी कि फैसले को दोबारा देखने के लिए संवैधानिक पीठ के पास भेजा जाना चाहिए या नहीं।

बता दें कि 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने यह फैसला सुनाया था कि विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जाए। एक हिस्सा रामलला के लिए, दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा हिस्सा मुसलमानों को दिया जाए। 30 सितंबर 2010 को जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाया था।

अपने आदेश में बेंच ने 2.77 एकड़ की विवादित भूमि के तीन बराबर हिस्सा किए थे। राम मूर्ति वाले पहले हिस्से में राम लला को विराजमान कर दिया गया। राम चबूतरा और सीता रसोई वाले दूसरे हिस्से को निर्मोही अखाड़े को दिया गया और बाकी बचे हुए हिस्से को सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया था।

पिछली सुनवाई के बाद सीनियर वकील राजीव धवन ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के 1994 के उस फैसले पर दोबारा विचार करना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था कि इस्लाम में नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद की जरूरत नहीं है। इसके बाद तीन सदस्यीय बेंच इस फैसले के खिलाफ 13 याचिकाओं पर सुनवाई की है। इनमें एक याचिकाकर्ता एम सिद्दिकी हैं।

…जब वसीम रिजवी ने कहा, मेरे सपनों में भगवान राम आए थे
मेरे सपनों में भगवान राम आए थे। उन्होंने कहा कि भारत के कुछ कट्टरपंथी मुसलमान पाकिस्तान के झंडे को इस्लाम का झंडा बताकर उससे प्यार करना अपना ईमान समझते हैं। इस दौरान उन्होंने कहा कि कुछ लोग राम जन्मभूमि पर पंजा जमाए हुए हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि अयोध्या राम का जन्म स्थान है मुस्लमानों के तीनों खलीफाओं का कब्रिस्तान नहीं।

कुछ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पाकिस्तान से पैसा लेकर कांग्रेस की मदद से राम मंदिर का मामला कोर्ट में उलझाए हुए हैं। भारत में फसाद कराने वाले ऐसे मुल्ला यहां लाशों को गिनकर पाकिस्तान से अपने काम का इनाम लेते हैं।

उन्होंने कहा कि ‘मौलवी के हर काम का एक फिक्स रेट है, कैसी टोपी-कैसी दाढ़ी सबका अपना पेट है।’ राम मंदिर को लेकर रिजवी ने कहा कि अयोध्या में मंदिर निर्माण का फैसला अब जल्दी हो जाना चाहिए, राम भक्तों के साथ साथ खुद राम भी इस मामले में उदास हो गए हैं।