मस्लें , मसाइल‌

* ग़ैर मुस्लिम को मकान या मिलगी किराया पर देना
सवाल: कया फ़रमाते हैं उलमा ए दीन इस मसला में कि एक मुसल्मान सिख या ग़ैर मुस्लिम को अप्नी मिलगी किराया पर दे सकता है या नहीं?।
जवाब: मिल्गी को ज़रर या नुक़्सान ना पहुंचने वाला कोई कारोबार करने वाले को मिल्गी किराया पर दी जा सकती है। किरायादार अगर कोई ख़िलाफ़ शरा कारोबार कर रहा हो तो इस का ज़िम्मेदार किरायादार रहेगा, मिल्गी का मालिक नहीं।

* कुरानी आयात , अहादीस और अस्मा‍ ए‍ हुस्ना से ईलाज
सवाल: कया फ़रमाते हैं उलमा ए दिन इस मस्ला में कि जै़द बीलामूआवज़ा कुरानी आयात, अहादीस तैयबा, अरबी औराद और असमा‍ ए हूस्ना से बच्चों को छूत, पसलीयों के उछलने, यरक़ान वग़ैरा का ईलाज करता है और इतर, आब-ए-ज़म ज़म, शक्कर‌, नमक, अगरबत्ती, मीठा या खोपरे का तेल इस्तेमाल करता है। अज़रूए शरा इस तरह अमल की इजाज़त है या नहीं?। अगर कोई मरीज़ शिफ़ा-ए-पाने के बाद अप्नी रजामंदी से तहफ़तन कुछ रक़म दे तो इस का लेना शरअन‌ दरुस्त है या नहीं?।

जवाब: कुरानी आयात, अहादीस शरीफा और दुआओं से ईलाज की शरअन‌ इजाज़त है। अगर किसी और ज़बान या शिरकिया-ओ-कुफ़रीया अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल हो तो शरअन‌ दरुस्त नहीं। कुरानी ईलाज के बाद मरीज़ शिफ़ा याब होकर बीलातलब तोहफ़ा दे तो इस को क़बूल करने में कोई मुमानअत नहीं।

* अज़ान से क़ब्ल दरूद और जुमा की अज़ान सानी
सवाल: कया फ़रमाते हैं उलमा ए दिन इस मस्ला में कि अज़ान-ओ-इक़ामत से पहले दरूद शरीफ़ बुलंद आवाज़ से पढ़ने का क्या हुक्म है? क्या इस को छोड़ देने से अज़ान-ओ-इक़ामत की सेहत में कुछ फ़र्क़ आएगा? नीज़ जुमा के दिन अज़ान सानी मिंबर के रूबरू देनी चाहीए या मस्जिद के दरवाजा पर?।

जवाब: हज़रत नबी करीम (स.व.) पर दरूद शरीफ़ के लिए वक़्त की कोई क़ैद नहीं, क़ब्ल अज़ान दरूद शरीफ़ पढ़ना अगरचे मुतक़द्दिमीन से भी साबित नहीं और ना कुतुब फ़िक़्ह में इस की सराह्त है, लेकिन हुक्म सल्लीमु तस्लिमा आम है,
इस लिए मम्नू, नाजायज़ और हराम नहीं कह सकते, ता हम अज़ान-ओ-इक़ामत के अल्फ़ाज़ में कोई ज़्यादती समझ में ना आए, इस लिए आहिस्ता दरूद पढ़ना चाहीए। क्योंकि अज़ान-ओ-इक़ामत के अल्फ़ाज़ हदीस से जिस तरह साबित हैं, इन में ज़्यादती नहीं होनी चाहीए, इस लिए अज़ान-ओ-इक़ामत से क़ब्ल दरूद शरीफ़ ना पढ़ें तो नमाज़ पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।

जब ख़तीब जुमा के दिन मिंबर पर बैठ जाय तो मिंबर के रूबरू अज़ान सानी दी जाय। नबी अकरम स.व.के अह्द मुबारक और
शेखैन‌ के दौर ख़िलाफ़त में यही एक अज़ान थी। हज़रत उस्मान ग़नी (रज़ी.) ने ख़ारिज मस्जिद पहली अज़ान‌ राइज फ़रमाई।