नयी दिल्ली। राष्ट्रवाद महज झंडा फहराने, नारे लगाने या ‘भारत माता की जय’ नहीं बोलने वालों को दंडित करने से साबित नहीं किया जा सकता बल्कि देश की जरुरतों को पूरा करने की बडी प्रतिबद्धता ही राष्ट्रवाद है. यह बात मशहूर इतिहासकार रोमिला थापर ने कही.
उन्होंने अपनी नयी किताब ‘ऑन नेशनलिज्म’ में लिखा है कि नारे लगाना या झंडा फहराने से उन लोगों में विश्वास की कमी झलकती है जो नारा लगाने की मांग करते हैं. यह किताब तीन लेखों का संग्रह है जिन्हें थापर, ए जी नूरानी और संस्कृति विशेषज्ञ सदानंद मेनन ने लिखा है और इस संकलन को अलेफ बुक कंपनी ने प्रकाशित किया है.
थापर ने कहा, ‘‘राष्ट्रवाद अपने समाज को समझने और उस समाज के सदस्य के तौर पर अपनी पहचान से जुडा हुआ है. इसे महज झंडा फहराने और नारे लगाने से जोडकर नहीं देखा जा सकता और जो लोग ‘भारत माता की जय’ नहीं बोलते उन्हें दंडित कर इसे साबित नहीं किया जा सकता। यह उन लोगों में विश्वास की कमी दर्शाता है जो नारे लगाने की मांग करते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रवाद देश की जरुरतों को पूरा करने की बडी प्रतिबद्धता से जुडा हुआ है न कि नारे लगाने से और वह भी नारे क्षेत्र विशेष से हों या उन लोगों द्वारा हों जिनकी सीमित स्वीकार्यता है.’ उन्होंने कहा, ‘‘हाल में कहा गया कि वास्तव में यह विडम्बना है कि जो भी भारतीय यह नारा लगाने से इंकार कर देता है उसे तुरंत देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है लेकिन जो भी भारतीय जानबूझकर कर नहीं चुकाता या काला धन विदेशों में जमा करता है उसे ऐसा घोषित नहीं किया जाता.’