* मुसलमान के लिए एवानों में जगह नहीं या फिर सीयासी साज़िश का शिकार
हैदराबाद । ( सियासत न्यूज़ ) अभि खत्म हुए उप चुनाव में कांग्रेस की क्रास वोटिंग से असेंबली हलक़ा अनंतपुर ( अर्बन ) से कांग्रेस की मुस्लिम उम्मिदवार मिसिज़ मुर्शिदा बेगम की ज़मानत ज़बत होगई । महबूबनगर के बाद अनंतपुर (अर्बन) में मुस्लिम उम्मीदवार की नाकामी चिंता का सबब है । जबकि 18 असेंबली हलक़ों के उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी ने असेंबली हलक़ा अनंतपुर ( अर्बन ) से एक मुस्लिम ख़ातून मुर्शिदा बेगम को अपना उम्मीदवार बनाया था ।तेल्गुदेशम ने एक भी मुस्लिम लिडर को टिकट नहीं दिया था । वाई एस आर कांग्रेस पार्टी ने अस्तेफा देने वाले असेंबली सदस्यों को टिकट दिया था जिन्हों ने सदर वाई एस आर कांग्रेस पार्टी मिस्टर जगन मोहन रेड्डी की हिदायत पर हुकूमत के ख़िलाफ़ पेश कि गइ तेल्गुदेशम कि तहरीक अदमे एतिमाद की ताईद की थी ।
असेंबली हलक़ा अनंतपुर ( अर्बन ) कांग्रेस का ताक़तवर गढ़ माना जाता है । जहां अक़ल्लीयतों(अल्पसंख्यकों) का फैसला कुन मौक़िफ़ है । इस हलक़ा से 1952 से अभी तक 15 चुनाव हुए जिस में कांग्रेस पार्टी ने 9 मर्तबा जयादा वोटों से कामयाबी हासिल की लेकिन जब मुर्शिदा बेगम का मामला आया तो हैरत है उन की ज़मानत तक ज़बत होगई जबकि 2009 के आम चुनाव में इसी हलक़ा से कांग्रेस के उम्मीदवार मिस्टर जी गुरु नाथ रेड्डी जो उस वक़्त वाई एस कांग्रेस पार्टी से कामयाब हुए हैं । उन्हें 45,275 वोट हासिल हुए थे और वो तेल्गुदेशम के उम्मीदवार पर 14 हज़ार वोटों की जयादती से कामयाब हुए थे ।
2012 के उप चुनाव में मुर्शीदा बेगम को सिर्फ 9,409 वोट हासिल हुए जो 2009 में कांग्रेस की कामयाबी के अक्सरियत से लगभग 4 हज़ार कम वोट हैं । इस से साफ़ अंदाज़ा होता है कि कांग्रेस में बड़े पैमाने पर क्रास वोटिंग हुई है । अनंत पुर असेंबली का हलक़ा कांग्रेस के लिए इस लिए भी मज़बूत क़िला माना जाता है कि आँजहानी एन टी आर की करीश्माती क़ियादत में भी इस हलके से 1983-85 में कांग्रेस उम्मीदवारों की ज़मानतें ज़बत नहीं हुई थी । 1989 से 2009 के आम चुनाव में सिवाए 1994 के आम चुनाव के बाक़ी तमाम चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने जयादा वोटों से कामयाबी हासिल की थी ।
इलाक़ा तेलंगाना के अभि हुए चुनाव में भी असेंबली हलक़ा महबूबनगर से टी आर एस ने मुस्लिम उम्मीदवार सय्यद इब्राहीम को टिकट दिया था जो 2009 के आम चुनाव में एक आज़ाद उम्मीदवार से सिर्फ मामूली वोटों के फ़र्क़ से नाकामी से दो-चार हुए थे । 2009 के आम चुनाव में असेंबली हलक़ा महबूबनगर से सिर्फ 2000 वोट हासिल करने वाली बी जे पी ने 2 साल में दुबारा महबूबनगर से मुस्लिम उम्मीदवार के मुक़ाबले में लगभग उतनी ही अक्सरियत से कामयाबी हासिल की थी ।
क्या आंधरा प्रदेश की सियासत में मुसलमानों का मुक़ाबला करना जुर्म है या लोग और सियासी पार्टीयां मुस्लिम उम्मीदवारों को एवानों में देखना पसंद नहीं करतीं ? ।सीयासी पार्टीयों को अक़ल्लीयतों(अल्पसंख्यकों) खासकर मुसलमानों के वोट चाहीए मगर एवानों में मुस्लिम उम्मीदवार नहीं चाहीए , दोनों असेंबली हलक़ों के उपचुनाव के नतीजों से यही सबूत मिलता है । या फिर ये है कि मुसलमान अब तक जिस तरह ख़ामोशी से हर एक को वोट डालते आए हैं अभी कुछ दिन यही रास्ता इख़तियार करें ताकि रियासत की सियासत में और मारा मारी देखने को मिले फिर मुसलमान सोंच समझ कर फैसला कर सकते हैं।
महबूबनगर में मुस्लिम उम्मीदवारों की नाकामी पर कांग्रेस और तेल्गुदेशम के इलावा मजलिस के लिडरों ने मुस्लिम उम्मीदवार को बली का बकरा बनाने का टी आर एस प्रमुख पर इल्ज़ाम लगाया मगर अनंत पुर अर्बन असेंबली हलक़ा में मुस्लिम औरत की ज़मानत ज़बत होने पर जहां कांग्रेस ख़ामोश है वहीं तेल्गुदेशम और मजलिस भी क्यों खामोश है ? उन की क्या सियासी मजबूरियां हैं लोग इस का जवाब चाहते हैं !।