महबूबिया प्राइमरी-ओ-हाई स्कूल इनफ़रास्ट्रक्चर से महरूम

नुमाइंदा ख़ुसूसी- गर्वनमैंट महबूबिया प्राइमरी और हाई स्कूल शहर का क़दीम (पुराना) तरीन मशहूर स्कूल है । महबूबिया स्कूल का नाम सुनते ही हैदराबाद के हर शख़्स के ज़हन में इस तारीख़ी तालीम गाह की तस्वीर घूमने लगती है । शहर का बच्चा बच्चा इस स्कूल से वाक़िफ़ है । ये 103 साला क़दीम (पुराना) और तारीख़ी अहमियत का हामिल स्कूल है ।

इस की क़दीम (पुरानी) इमारतों से इस्लाम की अज़मत रफ़्ता और मुस्लिम हुकमरानों की इलम दोस्ती का पता चलता है । क़दीम (पुराना) बाक़ियात बोसीदगी और ख़सताहाली के बावजूद इंतिहाई दिलकश , जाज़िब-ए-नज़र और मूसिर कुण हैं । हाल ही में रियासती हुकूमत की जानिब से इस तारीख़ी स्कूल में एक करोड़ 75 लाख रुपये की लागत से दो मंज़िला इमारत तामीर की गई है ।

इस नई इमारत में 36 क्लास रूम हैं । जिस का इफ़्तिताह 23 जून 2011 को वज़ीर आला जनाब किरण कुमार रेड्डी के हाथों अमल में आया । 36 कमरों वाली इस जदीद इमारत में प्राइमरी और हाई दोनों स्कूल चलते हैं । हाई स्कूल के लिये 22 कमरों को मुख़तस किया गया है । हाई स्कूल में 400 और प्राइमरी स्कूल में 240 तालिबात ज़ेर तालीम हैं । वाज़िह र हे कि ये सिर्फ़ लड़कियों का स्कूल है ।

जब इस तारीख़ी स्कूल का मुआइना किया तो दौरान मुआइना हमारी मुलाक़ात मुहम्मद शब्बीर नामी एक शख़्स से हुई जिन की बच्ची इसी स्कूल की चौथी जमात में ज़ेर तालीम है । मुहम्मद शब्बीर पेशा से ख़ानगी (पराइवेट) मुलाज़िम हैं उन्हों ने हम से मुख़ातब होते हुए कहा कि अख़बार सियासत तस्वीरों के साथ हक़ायक़ पर मबनी रिपोर्टें शाय करता है ।

लिहाज़ा आप इस क्लास रूम को भी ज़रूर देखें । जिस में मेरी बच्ची पढ़ती है । ये कहते हुए हमें क्लासरूम तक ले गए और कहने लगे कि आप ही यहां की हालत देखिये हम ने देखा कि इस नई आलीशान इमारत में जिस पर एक करोड़ 75 लाख रुपये का सर्फ़ा (खर्च)आया है बच्चे फ़र्श(जमीन) पर बैठ कर पढ़ रहे हैं । उन के लिये कुर्सी , बेंच , टेबल और दीगर किसी फर्नीचर का इंतिज़ाम नहीं ।

मज़ीद ये कि एन किरण (टिचर) के लिये भी कोई मुनासिब कुर्सी नहीं , जब कि वज़ीर आला जनाब एन किरण कुमार रेड्डी ने इस नई इमारत की इफ़्तिताही तक़रीब के मौक़ा पर ऐलान किया था कि महबूबिया गर्वनमैंट गर्लज़ हाई स्कूल में फर्नीचर , ऑडीटोरियम और एल सी डी प्रोजेक्ट की फ़राहमी को रियासती हुकूमत यक़ीनी बनाएगी लेकिन ये ख़ुशकुन ऐलान हुआ में उड़ गया और उसे बे बुनियाद ऐलानात कर के अवाम को धोका में रखना तो रियासती और मर्कज़ी हुकूमत का तरीका बन गया है ।

क़ारईन ! इस ज़िमन (बारे मे)में हम ने अप्पर प्राइमरी स्कूल की इंचार्ज मैडम मुहतरमा शशी रेखा से मुलाक़ात की तो उन्हों ने भी एतराज़ किया कि वाक़ई फर्नीचर की कमी की वजह से बच्चों को ज़मीन पर बिठा कर पढ़ाया जा रहा है । उन्हों ने कहा कि हम आला ऑफीसरों के सामने ये बात रख चुके हैं । मगर उन की जानिब से सिर्फ यही तसल्ली दी जा रही है कि चंद रोज़ में फर्नीचर पहुंच जाएगा ।

लेकिन इस वक़्त फर्नीचर की कमी की वजह से बच्चे परेशानियों से दो-चार हैं । मुहम्मद शब्बीर ने बताया कि मेरे पास एक ही बेटी है ये 6 ता 7 घंटे ज़मीन पर बैठ कर पढ़ती है जिस की वजह से इस के पैर भी सुन होजाते हैं । मज़ीद कहा कि इऩ्ही तमाम चीज़ों की वजह से इस शानदार इमारत वाले स्कूल में दिन ब दिन तालिबात की तादाद कम होती जा रही है ।

क़ारईन ! इस के बाद हम ने हाई स्कूल की एच एम मुहतरमा शहनाज़ सुलताना से मुलाक़ात की उन्हों ने बताया कि हाई स्कूल में 400 तालिबात ज़ेर तालीम हैं और 22 असातिज़ा पर मुश्तमिल स्टाफ़ है नीज़ बताया कि ये गर्वनमैंट अंग्रेज़ी मीडियम स्कूल है और इस के सालाना नताइज भी हैरत अंगेज़ हैं । उन्हों ने कहा कि हमारे पास 1000 तालिबात की गुंजाइश है । मज़ीद 600 दाख़िले लिये जा सकते हैं लेकिन लोगों के ज़हनों में सरकारी स्कूलों की जानिब से जो ग़लत शबीहा बैठ गई है ।

इस की वजह से लोगों का रुजू कम रहता है और हमारे पास सिर्फ 400 तालिबात हैं आज भी एडमीशन जारी है और हमारे हाँ आला तालीम याफ्ता असातिज़ा हैं । मैं अख़बार सियासत के ज़रीया वालदैन और सरपरस्त हज़रात से ख़ाहिश करूंगी कि वो अपने बच्चों को इस स्कूल में दाख़िला दिलाएं । मुहतरमा शहनाज़ सुलताना ने बताया कि इस नई इमारत में मुंतक़िल होने के बाद किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं हो रही है । सिर्फ तलबा (स्टुडेंट) की तादाद बाइस फ़िक्रमंदी है जब कि स्कूल की तालीम से वाक़िफ़ हज़रात दूर दूर से दाख़िला के लिये आते हैं ।

ये स्कूल शहर के मर्कज़ी मुक़ाम पर है । हर जगह से यहां के लिये बसों की सहूलत है । इस स्कूल की एक तारीख है । लिहाज़ा लोगों को इस से ज़्यादा से ज़्यादा इस्तिफ़ादा करना चाहीए । क़ारईन ! मुहतरमा शहनाज़ सुलताना की फ़िक्रमंदी बजा है लेकिन प्राइमरी स्कूल में बच्चों के ज़मीन पर तालीम हासिल करने की ऊपर की स्तरों में जो तस्वीर पेश की गई है क्या उसे हालात से बाख़बर हो कर कोई वालदैन और सरपरस्त अपनी बच्ची को इस स्कूल में दाख़िला दिलाएंगे और मौजूद ज़ेर तालीम बच्चियां क्या इन परेशान किन हालात से गुज़र कर हाई स्कूल तक पहुंच पाएंगी ।

दिल-ओ-दिमाग़ के लिये बड़ी तकलीफ दह बात है कि टैक्नालोजी और तरक़्क़ी के इस दौर में हुकूमत बड़े बड़े दावे और वाअदे करती है और खोखले दावे को बहुत कम अमली जामा पहनाया जाता है । क्या इस बात का तसव्वुर किया जा सकता है कि शहर के मर्कज़ी मुक़ाम पर तारीख़ी स्कूल में बच्चे फ़र्श(जमीन) पर बैठ कर तालीम हासिल करते हैं ।

जब कि इस नई इमारत में सरकार के मुताबिक़ एक करोड़ 75 लाख रुपये की लागत आई है । स्कूलों में तालीम बेज़ारी के एसे ही मुज़ाहिरों की वजह से बहुत से बच्चे दरमियान में ही तालीम मुनक़ते(छोड) कर देते हैं जिस की क़सूरवार रास्त तौर पर रियासती हुकूमत है ।

वज़ीर आला ने नई इमारत के इफ़्तिताह के मौक़ा पर कहा था कि रियासती हुकूमत की जानिब से सरकारी स्कूलों में मयारी तालीम की फ़राहमी और इनफ़रास्ट्रक्चर के क़ियाम के लिये कई इक़दामात किये जा रहे हैं । इन बड़े वादों के बजाय काश हुकूमत ने इन मासूम बच्चों के बैठने के लिए कारपेट का ही इंतिज़ाम क्या होता , तो कितना बेहतर होगा ।।