आजकल एक बहस शुरू हुई है, मुद्दा तो बहुत छोटा सा है लेकिन ये बड़ा होता चला जा रहा है. मुद्दा है दयाशंकर का, मायावती का और दयाशंकर की पत्नी का और बेहिसाब महिलाओं की बेईज्ज़ती का. सबसे पहले तो बीजेपी के कुछ दिन पहले के उत्तरप्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर ने बसपा अध्यक्ष मायावती की बुराई करते करते उन पर अभद्र टिपण्णी कर दी. ये बात पूर्व मुख्यमंत्री को नागवार गुज़री और मायावती की हनक के आगे बीजेपी के बड़े नेता झुक गए और दयाशंकर को तुरंत अपनी पार्टी और पद से छुट्टी मिल गयी लेकिन मायावती इतने में राज़ी नहीं थीं वो दयाशंकर की गिरफ़्तारी चाहती थीं लेकिन दयाशंकर ऐसी जगह छुप के बैठे कि उन्हें ढूंढना पुलिस के लिए भी मुश्किल क्या नामुमकिन सा हो गया.
इसको लेकर बसपा समर्थकों ने लखनऊ की सड़कों का रुख़ किया और इसी हंगामे में बसपा के कुछ गुस्साये समर्थकों ने दयाशंकर की बेटी और बीवी के ख़िलाफ़ अभद्र टिपण्णी की. कहानी में जैसे कोई नया मोड़ आ गया हो और इसी मोड़ में दयाशंकर की बीवी सामने आयीं, लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ा चुकीं स्वाति सिंह ने खुले तौर पर मायावती और उनके समर्थकों को बुरा भला कहा और अपने पति का पक्ष लिया. महिला उत्पीडन का मुद्दा अब स्वाति सिंह भी उठाने लगीं लेकिन इस बहस को मायावती ने ज़्यादा भाव नहीं दिया पर कुछ मीडिया हाउसेस ने इस मुद्दे को ज़ोर शोर से उठाया और लखनऊ शहर में कुछ एक पोस्टर स्वाति सिंह के भी लग गए हैं. आज की ख़बर है कि दयाशंकर को बीजेपी शासित झारखण्ड में देखा गया है. इस सब में मैं बस ये समझ नहीं पा रहा हूँ कि समाजवादी पार्टी का नाम कोई क्यूँ नहीं ले रहा, ये कुछ खटक रहा है वरना क़ानून व्यवस्था के मुद्दे पर सूबे की सरकार को घेरा जा सकता था कि आख़िर दयाशंकर उत्तर प्रदेश से निकला कैसे.. छोडिये खैर
अब इस गोल मोल कहानी को समर्थकों के नज़रिए से समझने की कोशिश करते हैं. असल में जहां ये लड़ाई शुरू हुई थी ये सिर्फ़ महिलाओं की बात थी लेकिन फिर ये दलितों की बात हुई और उसके बाद ये दलित-सवर्ण की लड़ाई.. मायावती के समर्थक फेसबुक पे ज़्यादा नहीं हैं उसकी कई वजहें हैं,, बहन जी ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया है लेकिन बीजेपी के समर्थक बड़ी तादाद में सोशल मीडिया पे एक्टिव रहते हैं और पार्टी की हर बात का एक अंधे भक्त की तरह समर्थन करते हैं.
मज़े की बात ये है कि ये लोग भी दयाशंकर के मुद्दे पर चुप बैठ गए लेकिन जैसे ही स्वाति सिंह ने अपने परिवार के लिए समर्थन माँगा ये फिर जुट गए ये महिलाओं के ख़िलाफ़ गालियों का विरोध करते हैं लेकिन बीजेपी समर्थक जितनी माँ-बहन की गालियाँ देते हैं कोई और नहीं देता. मेरी आईडी में एक साहब ठेट भाजपाई हैं ने स्वाति सिंह के मुद्दे को उठाया लेकिन उनके पक्ष की एक लाइन के बाद तुरंत बोले हम दयाशंकर का समर्थन करेंगे, मतलब ये दयाशंकर की अभद्र टिपण्णी का समर्थन करने को तय्यार बैठे रहते हैं.
अब इस कहानी में ये कहते हैं कि सवर्ण की बीवी और बेटी को कोई भी कुछ बोल के चला जाता है और उसपर कोई कुछ क्यूँ नहीं कहता, बात तो ठीक है लेकिन दलितों के ख़िलाफ़ कोई बात होती है तो वो इनके लिए कोई बड़ी बात क्यूँ नहीं होती, इनके लिए बात सिर्फ़ तब बड़ी होती है जब किसी सवर्ण के साथ हो और इसी खुर्पेच में एक कहानी और है वो है गाय की, गाय के नाम पर जहां अभी तक मुसलामानों के ख़िलाफ़ अत्याचार की घटनाएं सामने आती थीं लेकिन अब दलितों के ख़िलाफ़ जो घटनाएं सामने आई हैं उससे लगता है कि बेचारे दलितों की स्थिति भी बड़ी गंभीर है इस मामले में बात ये है कि आख़िर इन मुद्दों से आप हासिल क्या करना चाहते हैं, आप अपनी बहस के हर बिंदु पे माँ-बहन की गालियाँ बकते हैं, जो आपसे अलग सोच रखता है उसको गरियाना शुरू कर देते हैं. मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने लगते हैं, मैं अब सोचने लगा हूँ कि ये मुसलमानों को तो पाकिस्तान भेज रहे हैं दलितों को कहाँ भेजेंगे? और ये समझते क्या हैं हिन्दुस्तान को, इनके बाप की जागीर है क्या? ये मुल्क सबका है जितना दिल्ली वाले का उतना बिहार वाले का लेकिन इन बेवकूफ़ों को लगता है ये मुल्क नहीं है कोई आम का पेड़ है.
खैर, मायावती के ख़िलाफ़ जो बात कही गयी वो निंदनीय है और जो स्वाति सिंह के ख़िलाफ़ कहा गया वो भी निंदनीय है लेकिन जो लोग इन दोनों का समर्थन कर रहे हैं वो भी अपने गिरेबान में झाँक के देखें कि वो कितने औरत भक्त हैं.
(अरग़वान रब्बही)
(लेखक के विचार निजी हैं, ये लेख पहले headline24 में प्रकाशित हो चुका है)