माँ को गुज़ारे की रक़म ना देने वाले मुल्ज़िम को अदालत की सरज़निश ( डाँट फटकार)

दिल्ली की एक अदालत ने एक ऐसे शख़्स की शदीद मुज़म्मत की है जिसने अपनी अलील ( बिमार)और ज़ईफ़ वालिदा को गुज़ारे के लिए रक़म देने से इनकार कर दिया ।

अदालत ने कहा कि एक ऐसी ख़ातून जिस ने उसे जन्म दिया ,जिस की ख़िदमत ना करना और गुज़ारे के लिए रक़म ना देना इंतिहाई ग़ैर इंसानी और शर्मनाक फे़अल (बुरा काम) है । एडीशनल सेशन जज स्वेता राव ने सियोल लाईन्स के साकिन की सरज़निश की और अपने इस फ़ैसला को बरक़रार रखा जिस में मुअम्मर ( भूढी) ख़ातून को 800 रुपये माहाना दीये जाने की हिदायत की थी ।

जज ने कहा कि मुल्ज़िम माँ कतईं अपने फ़राइज़ को समझने से क़ासिर है । अपनी आमदनी की रक़म वो किसी के साथ भी तक़सीम करने तैयार नहीं यहां तक कि अपनी वालिदा को भी वो हिस्सादार बनाना नहीं चाहता । मुल्ज़िम ने ये कह कर अपनी जान छुड़ाने की कोशिश की थी कि इसकी बीवी और तीन बच्चों बिशमोल शादी के काबिल बेटी की देख भाल इसके ज़िम्मा है ।

इसकी बीवी मुतअद्दिद आरिज़ों ( बहुत सी बीमारीयों) में मुबतला है । इस ने अदालत के फ़ैसला को चैलेंज किया है जहां इस ने इंतिहाई बेग़ैरती का मुज़ाहरा ( प्रदर्शन) करते हुए कहा कि इसकी माँ गुज़ारे के नाम पर इससे हर माह रक़म एठना चाहती है जिस का अदालत ने सख़्त नोटिस लिया और कहा कि दुनिया में माँ के रिश्ता से बढ़ कर कोई रिश्ता नहीं होता ।

ठीक है ये बात अपनी जगह दरुस्त है कि मुल्ज़िम ( आरोपी) पर अपनी बीवी और बच्चों की ज़िम्मेदारी है लेकिन इसे बुनियाद बनाकर वो अपनी वालिदा की देख भाल से बरी नहीं हो सकता । अदालत ने मुल्ज़िम और इसके भाई को हुक्म दिया था कि वो फी कस 800 रुपये माहाना गुज़ारे के लिए अपनी माँ को दें ।

जज स्वेता राव फ़ैसला सुनाते वक़्त काफ़ी जज़बाती हो गईं । उन्होंने कहा कि आज दुनिया की हर माँ की ये ख़ाहिश होती है कि उसे बेटा पैदा हो लेकिन बेटा अगर मुल्ज़िम जैसा हुआ तो इस का क्या ईलाज हो सकता है ? आजकल के बेटों पर कोई एतिमाद (सहारा) नहीं किया जा सकता ।

शादी से पहले सब कुछ ठीक ठाक रहता है लेकिन शादी के बाद बेटा बदल जाता है और बीवी को माँ पर तर्जीह (प्रधानता/ उँचा दर्ज़ा) देने लगता है । अगर मुल्ज़िम के बेटे ने भी बालिग़ होने के बाद अपनी माँ से क़ता ताल्लुक़ कर लिया तो क्या होगा ?