मांगने का ढंग जब देने वाला बताए

कुरआने मजीद में दुआओं के जो लफ्ज आए हैं वह सब बातचीत के तौर पर वारिद हुए हैं कि अल्लाह के बन्दों ने इससे पहले क्या मांगा और किन लफ्जों में मांगा। लेकिन इस बातचीत के पहलू में तालीम भी है। अल्लाह पाक फरमाते हैं कि मेरे बन्दे ने यूं कहा, इस तरह मांगा, हमने उसको यह बख्श दिया, मुसीबत में पुकारा उसकी मुसीबत दूर कर दी। गरीबी और तंगी में मेरे आगे हाथ फैलाया, हमने उसकी झोली भर दी।

यह सब है तो हिकायत, लेकिन इसके पहलू में तलकीन भी तो है कि अगर तुम मांगो तो इस तरह मांगो, अपनी बंदगी व आजिजी का इजहार इस तरह करो, अल्लाह पाक की हम्द व सना इस तरह करो। यह दुआ जो अक्सर व बेश्तर किसी पैगम्बर की जबान से अदा हुई कभी जमआत की तरफ से और कभी अकेले शख्स की तरफ से अपने अंदर उन तमाम जरूरतों और हाजतों को समेटे हुए है जिनका इंसान मोहताज रहता है।

सूरा-ए-फातेहा-बहुत बड़ी दुआ:- कुरआनी दुआओं में सबसे बड़ी दुआ सूरा-ए-फातेहा है जिसकी अनगिनत लोगों ने अनगिनत अंदाज में तशरीह व तफसीर की है। यह हम्द व सना, अल्लाह की सिफतों रहमते आलम रहमते खास यौमे हश्र व नश्र की अहमियत का इकरार बतौर तशहीद दुआ के साथ मजकूर है कि जिससे मांग रहे है उसकी अजमत और अता व बख्शिश व कुदरत का यकीन हो, उससे मोहब्बत बढ़ाने और नजदीकी पैदा करने की उमंग का जज्बा पैदा हो उसके इंसाफ के नतीजे में जजा की उम्मीद के साथ सजा का खौफ भी पैदा हो, इस तमहीद के बाद तालीम दी गई कि मुकम्मल सुपुर्दगी और मुकम्मल यकीन का इकरार भी दुआ का लाजिमा है और नफा पहुंचाने या किसी से नेमत छीन लेने की कुदरत जिस जात में है उसका इजहार भी जरूरी है। इसलिए हम मांगते उससे हैं जो देने पर कादिर है और सिर्फ वही कादिर है कोई दूसरा कुदरत नहीं रखता। क्योंकि जब एक दरवाजे के अलावा सवाली के सामने दूसरे दरवाजे भी खुले हो और यह तसव्वुर हो कि कही उसने नहीं दिया तो दूसरा दे देगा और अगर उसने नहीं बख्शा तो फलां से बख्शा लेंगे। अगर यह तसव्वुर हो (अल्लाह न चाहे) तो फिर मांगने वाले के नजदीक देने वाले की कोई अहमियत नहीं रह जाती। अगर ऐसा होता कि एक दरवाजे के अलावा दूसरे दरवाजे से भी तलब कर सकते तो जिस से मांगा जा रहा है उसकी हैसियत एक दुकानदार की होगी ग्राहक को अगर माल एक दुकान से नहीं मिला तो दूसरी दुकान से खरीद लेगा। इसलिए इस बात का इकरार भिकारी की जबान से कराना जरूरी था कि इस दरवाजे के अलावा कोई दूसरा दरवाजा नहीं है। सर इसी चौखट पर झुकाया जाएगा। दूसरी चौखट हरगिज हरिगज नहीं है। ‘इयाक ना बुदो व इयाकनस्तईन का इकरार’ वलीद दुआ है। इमाम इब्ने कीम ने सिर्फ इस आयत की तफस्ीर में तीन बड़ी जिल्दें लिखी हैं।

इस तशहीद व इकरार अबूदियत और बिला शिरकत गैर इस्तआनत बिल्लाह के बाद दुआ के मामले में एक ही दुआ है सीधा रास्ता हमें दिखा या सीधे रास्ते पर हमें चला दे। आगे की दो आयतों मे ंइसी सीधे रास्ते की तशरीह है। एक मुसबत जुम्ला में एक मनफी जुम्ला में सीधा रास्ता जिस पर चलने वालों को तूने नेमतों से नवाजा है और वह रास्ता ऐसा न हो जिस पर चलने वाले राह भूलकर दूसरी पगडंडियों पर निकल जाते हैं और जो रास्ते उन लोगों के हैं जो गजबे इलाही का शिकार हैं और भटके हुए लोग हैं। कुरआन की तफसीर खुद कुरआन ही की दूसरी आयतों से हो जाती है। अनअमता अलैहिम जिन लोगों पर तूने इनाम फरमाया जिन लोगों को तूने अपनी नेमतों से नवाजा यह कौन लोग है। सूरा-ए-मरयम में हजरत इब्राहीम (अलै0) मूसा (अलै0) हजरत इस्माईल (अलै0) हजरत इदरीस (अलै0) का जिक्र खैर है और हर एक की खुसूसियत बयान की गई है।

हजरत इब्राहीम (अलै0) अकीदा ए तौहीद पर किस दर्जा सख्ती के साथ जमे रहे कि अपने वालिद बुजुर्गवार से मिन्नत व समाजत, अदब व एहतराम के लेहजे में बुतपरस्ती छोड़कर दामने तौहीद से जुड़ जाने की दरख्वास्त करते रहे। बाप घर से निकाल देते हैं। सर झुकाकर उनका हुक्म मानते हैं कि घर से निकल जाएंगे। मगर अकीदा पर जरा भी आंच नहीं आने देंगे। हजरत मूसा (अलै0) अल्लाह के मुंतखब बन्दे हजरत इदरीस (अलै0) का मकाम अन्दुल्लाह बुलंद था।

यह वह लोग हैं जिन पर अल्लाह पाक ने अपना इनाम फरमाया। अगर कोई पूछे सिरातल लजीन अनअमता अलैहिम का रास्ता उन लोगों का जिन पर तूने इनाम फरमाया वह कौन लोग हैं तो जवाब मिल गया। यह अज्म से भरे पैगम्बरों का रास्ता है तौहीद में पुख्ता और अकीदे की राह में जो सख्त मरहले आएं उनको बरदाश्त करने वाले और यह सच्चे लोग जो अपने साथ अपने बाल बच्चों को भी जहन्नुम की आग से दूर रखने की फिक्र करते हैं। वह लोग जिनके आमाल ऐसे थे जिनके सबब उनको बुलंद मकाम अता हुआ।

खुलासा यह कि सूरा-ए-फातेहा ऐसी दुआ है जिस के अंदर दीन व दुनिया की तमाम नेमतों की तलब मौजूद है। सीधा रास्ता अकीदा व अमल की तमाम शाहराहों की तरफ ले जाता है। इबादत से लेकर मामलात, कारोबार, आपस के ताल्लुकात बाल बच्चों के साथ सुलूक जो भी दुनिया में किसी को मतलबू है वह टेढ़े रासते से नहीं सीधे रास्ते पर मिलेगा। टेढ़ा रास्ता मंजिल से दूर कर देगा और इस तरह भटका देगा कि कभी मंजिल मकसूद नहीं हासिल हो सकेगी।

यह दुआ जामे है आम है और हर इंसान की एहतियाज के लिए काफी है।
दुआओं की तीन किस्में:- इसके अलावा कुरआनी दुआएं तीन तरह की है। एक किस्म उन दुआओं की है जिसमें बन्दा सीधे अल्लाह पाक से तलब करता है कि हमें अता फरमा, बख्श दें मरहमतफरमा, यानी वह दुआएं जिनमें तलब असबाती अंदाज की है और सीगा, दुआ आतिना आतिनी, हबलना हबली अगफिरली अगफिरलना और इसी के दुआइयां सीगों से शुरू होती है जैसे
ऐ हमारे परवरदिगार हमको दुनिया में भी बेहतरीन इनाअत फरमा और आखिरत में भी बेहतरीन दीजिए और हमकों अजाबे दोजख से बचाइए। ऐ हमारे परवरदिगार हम पर इस्तकलाल (गैब से) नाजिल फरमा और हमारे कदम जमाए रखिए और हमको उस काफिर कौम पर गालिब कीजिए। ऐ हमारे परवरदिगार फिर हमारे गुनाहों को भी माफ फरमा दीजिए और हमारी बुराइयों को भी हमसे खत्म कर दीजिए और हम को नेक लोगों के साथ मौत दीजिए।

दूसरी किस्म की वह दुआएं जिसमें तलब यह है कि अल्लाह ऐसा न कर ऐसा न हो यानी तलब मनफी की है जैसे ‘रब्बना ला तऊ अखजना अन्नसीना जो अख्ताना’ यानी है अल्लाह हमसे भूल हो जाए या हम गलती कर जाएं तो हमारी पकड़ न कर।
तीसरी किस्म तऊजात की है जिसमें मैं पनाह मांगता हूं या तेरी पनाह में आता हूं फलां-फलां बुराई से जैसे … (तर्जुमा) ऐ रब मैं पनाह चाहता हूं तेरी शैतान के छेड़ से और पनाह मांगता हूं तेरी उससे कि वह मेरे पास आएं।

एक खास असलूब दुआ:- इन दुआइयां सीगों के अलावा जो रब्बना आतिनी हबलना या हबली कना और कनी से शुरू होती है एक और बहुत निराली और दिल को पिघला देने और आंखों को भिगा देने वाली दुआ है। जिसकी रहनुमाई, कुरआने करीम के अलावा कहीं नहीं मिलती। जहां बेजबानी जबान बन जाती है दिल की धड़कन आवाज बन जाती है। आंसू बोलने लगते हैं, बन्दे की सांस आवाज देने लगती है। वह ऐसी दुआएं हैं जहां बंदे की जबान नहीं खुलती मगर उसका रोआं-रोआं कांपने लगता है। वहां न अतना कहता है न हबलना और अगफिरली या अगफिरलना कोई तलब का सीगा सिरे से नहीं है मगर इससे बढ़कर कोई मांगने का तरीका नहीं हो सकता।

(तर्जुमा) ऐ मेरे रब मुझ को मरज शदीद ने दबोच लिया है और आप सब मेहरबानों से ज्यादा मेहरबान है।
एक राजी बरजा बन्दा अल्लाह पाक की हिकमत और उसकी मसलेहत पर ईमान रखने वाला पैगम्बरे वक्त एक बशर होने के लिहाज से जिस्मानी तकलीफ में मुब्तला है। जिस्म के अक्सर हिस्सों में जख्म है, जो टीस दे रहे हैं, कहना यह चाहता है कि ऐ मेरे रब मुझे इस तकलीफ से निजात दे, मेरे जख्मों को भर दे। मगर जबान से यह बात नहीं निकल रही यह कि उस अरहमर्राहमीन ने जिस तकलीफ में मुब्तला किया है उसका हुक्म किसी मसलेहत व हिकमत ही पर मबनी होगा। मालिक अपनी मिलकियत पर जिस तरह चाहे खर्च करे पैगम्बर सब्र व शुक्र का पैकर होता है। उसके दिल व दिमाग के रेशे-रेश में अल्लाह पाक की अजमत बैठी है। उसकी जबान से इंतिहाई तकलीफ की हालत में भी जो बात निकल रही वह यही कि मेरे परवरदिगार मुझे मेरी तकलीफ ने दबोच लिया है और आप अरहर्मराहमीन है। अब रहमानियत का जो तकाजा हो मौत देकर, तकलीफ का खात्मा कर दे या सेहत देकर। यह अंदाजे दुआ कि दुआ का सीगा जबान पर न आए और सवाली की बेकरारी परेशानी और बेचारगी व बेचैनी का मुकम्मल इजहार हो जाए। कुरआनी दुआओं का खासा है और कुरआन के अलावा बलागते आलिया का यह नमूना कहीं नजर नहीं आता।(मौलाना अब्दुल्लाह अब्बास नदवी)

———–बशुक्रिया: जदीद मरकज़