अपने बयानों को लेकर अक्सर बहस में रहनेवाले वजीरे आला जीतन राम मांझी ने पीर को एक बार फिर कहा कि अगर नक्सली बदउनवान ठेकेदारों और इंजीनियरों से लेवी वसूलते हैं, तो इसमें गलत क्या है? उन्होंने कहा कि हम इस सबजेक्ट पर पहले ही कह चुके हैं कि तरक़्क़ी के पैसों की हो रही लूट नक्सलवाद को मजबूत कर रही है। एक करोड़ में बननेवाली सड़क का टेंडर चार करोड़ रुपये में होता है। इसी तरह चार लाख रुपये में बननेवाला सरकारी इमारत 11 लाख रुपये में बनता है। अगर नक्सली तामीर काम में लगे इन ठेकेदारों से लेवी के तौर में मोटी रकम की वसूली कर रहे हैं, तो वह समाज के महरूम तबके के हक का पैसा है।
नहीं कहा कि वज़ीर नहीं मानते मेरी बात
अपने काबीना के साथियों की तरफ से उनकी बातों को तरजीह नहीं दिये जाने के सिलसिले में पूछे जाने पर वजीरे आला ने कहा कि मैंने ऐसा नहीं कहा था कि काबीना के साथी हमारी बात नहीं मानते, बल्कि मैंने यह कहा था कि किसी भी मुद्दे पर उनके काबीना के मेंबरों में मतभिन्नता होती है। इसमें गलत क्या है? जम्हूरियत में मतभिन्नता तो होती ही है और फैसला सभी के मंजूरी से लिया जाता है।
मीडिया जो कहे, मुङो नुकसान नहीं
वजीरे आला यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने यह भी कहा कि कई बार तो ठेकेदार अपने गाड़ियों और जेसीबी मशीनों को खुद फूंक देते हैं और इसका जुर्म नक्सलियों के सिर पर मढ़ देते हैं। यहां सिर्फ नक्सलियों की नहीं, बल्कि ठेकेदारों की भी सियासत चलती है। जनता के दरबार में वजीरे आला प्रोग्राम के बाद सहाफ़ियों से मुखातिब वजीरे आला ने अपने खास अंदाज में कहा, मैं एक कॉमन आदमी हूं और थोड़ा फूहड़ भी हूं’। यही वजह है कि मीडिया मेरे बयानों का तरह-तरह से मतलब निकाल कर उसे सनसनीखेज बना देती है। मीडिया जो चाहे मेरे बयानों के साथ करे, लेकिन इससे मुङो कोई नुक्सान नहीं हो रही है।