डॉ राजेश तलवार और इनकी बीवी अपनी जिस इकलौती बेटी आरुषि के लिए इंसाफ मांग रहे थे उसके कत्ल के गुनाहगार वे खुद ही पाए गए। उन्हें अपने नौकर हेमराज के कत्ल का भी गुनाहगार पाया गया। इस पेचीदा मामले में पीर के रोज़ गाजियाबाद की खुसूसी सीबीआई अदालत उसी नतीजे पर पहुंची जो साढ़े पांच साल पहले 14 साल की आरुषि के कत्ल के बाद से ही कई लोगों के मन में उमड़ रहा था।
खुसूसी सीबीआइ जज श्याम लाल ने दांतों के डॉक्टर राजेश तलवार और नूपुर तलवार को आइपीसी की दफा 302/34 और 201(सुबूत छिपाने) का गुनाहगार करार दिया।
डॉ राजेश को आइपीसी की दफा 203(झूठी एफआइआर दर्ज कराकर पुलिस को गुमराह करने) का भी गुनाहगार माना गया। 204 पेज के अपने फैसले में जज ने राजेश-नूपुर के खिलाफ सख्त तब्सिरा करते हुए यहां तक कहा कि तलवार जोड़े ने अपनी बेटी का कत्ल करके न सिर्फ कानून की खिलाफवर्जी की, बल्कि मज़हब से भी खिलवाड़ किया। राजेश-नूपुर की सजा का ऐलान आज मंगल के रोज़ को किया जाएगा। फैसले के बाद दोनो मियाँ बीवी को हिरासत में लेकर गाजियाबाद की डासना जेल भेज दिया गया।
दिल्ली से सटे नोएडा के जलवायु विहार के एल-32 फ्लैट में 15 मई, 2008 को देर रात दिल्ली पब्लिक स्कूल की नौवीं की तालिबा आरुषि का कत्ल उसकी सालगिरह (24 मई) से एक हफ्ते पहले कर दी गई थी। उस रात घर में सिर्फ वह, उसके माँ बाप और नौकर हेमराज ही थे। उसके कत्ल के अगले ही दिन हेमराज की लाश भी घर की छत पर पाया गया, जबकि राजेश तलवार और इनकी बीवी नौजर पर ही कत्ल कर भाग जाने का शक जता रहे थे।
नोएडा पुलिस ने अपनी शुरूआती जांच में तलवार जोड़े पर ही कत्ल का शक जताया। बाद में सुर्खियों में छा गए इस मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी गई।
जांच एजेंसी ने भी काफी छानबीन की, लेकिन ठोस सुबूतों की कमी की वजह से उसने 29 दिसंबर, 2010 को क्लोजर रिपोर्ट लगा दी। इस पर डॉ तलवार ने मामले की जांच नए सिरे से कराने की मांग की। इस दौरान अदालत के अहाते में उन पर हमला भी हुआ।
खुसूसी सीबीआइ अदालत ने सीबीआइ को क्लोजर रिपोर्ट को ही चार्जशीट बनाते हुए फिर से मामले की जांच करने का गैर मुतावक्के हुक्म दिया। सीबीआइ इस नतीजे पर पहुंची कि डॉ राजेश अपनी बेटी को 45 साला हेमराज के साथ गैर ऐतराज़ हालात में देखकर आपा खो बैठे। उन्होंने गोल्फ स्टिक से उस पर वार किया जो आरुषि को लगा और वह मर गई। इसके बाद उन्होंने बीवी के साथ मिल कर हेमराज को भी ठिकाने लगाया और उसकी लाश छत पर छिपा दी।
करीब 18 महीने तक चली सुनवाई के बाद इस मामले का फैसला जानने को लेकर सुबह से ही सीबीआइ अदालत के बाहर मीडिया , वकीलो और आम लोगों का हुजूम था। तलवार जोड़े को सुबह 10:00 बजे ही सख्त सेक्युरिटी के बीच गाजियाबाद लाया गया और एक होटल में ठहराया गया।
दोनों को मीडिया से दूर रखा गया। दोपहर बाद उन्हें पीछे के रास्ते से अदालत ले जाया गया। अदालत के अहाते में सेक्युरिटीइ के सख्त इंतेज़ाम किए गए थे और मीडिया वालों को अहाते में दाखिल होने पर पाबंदी लगा दी गई थी।
दोपहर तीन बजे जैसे ही फैसला आया, बेंच पर गुमसुम बैठे तलवार जोड़े रोने लगे। शायद उन्हें ऐसे फैसले का एहसास था, क्योंकि कुछ ही देर बाद उनकी ओर से मीडिया को एक लिखित बयान जारी किया गया। इसमें कहा गया था कि उन्होंने जो गुनाह किया ही नहीं उसके लिए अदालत ने गुनाहगार ठहरा दिया। वे फैसले से पूरी तरह गैर मुतमईन हैं। बेटी को इंसाफ दिलाने की मांग जारी रखते हुए वे फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट जाएंगे।
उनके रिश्तेदारों और वकीलों ने भी फैसले से अदम् इत्तेफाक जताए। राजेश तलवार की भाई की बीवी ने कहा कि सीबीआइ के वक़ार को बनाए रखने के लिए सच्चाई को झूठ की तहों में छिपा दिया गया।
डॉ राजेश तलवार और इनकी बीवी को कम से कम उम्र कैद और ज़यादा से ज़्यादा फांसी की सजा सुनाई जा सकती है। खुसूसी अदालत ने दोनों को आइपीसी की दफा ( एक्ट) 302/34 (एक मकसद से कत्ल करना)/201(सुबूत छिपाना) के तहत गुनाहगार करार दिया है। सीनीयर कानून दां के मुताबिक, इन दोनों दफआत में कम से कम उम्र कैद की सजा मिलती है।
इसके इलावा फर्जी एफआइआर मामले में डॉ राजेश को दो साल तक की सजा मिल सकती है। इसके इलावा जुर्माना लगाने में अदालत अपने ज़मीर का इस्तेमाल करती है।