मादरे मेहरबान उर्दू मीनार पर मेहरबानी की ज़रूरत

हैदराबाद 1 फरवरी – हैदराबाद को सारी दुनिया में उर्दू ज़बान औरअदब की ख़िदमत के लिहाज़ से बहुत इज़्ज़त और एहमीयत दी जाती है और इस शहर को हिंदूस्तान में उर्दू का मर्कज़ उस का दिल कहा जाता है क्योंकि हिंदूस्तान बल्कि सारी दुनिया में पहली उर्दू यूनीवर्सिटी क़ायम करने का इस तारीख़ी शहर को एज़ाज़ हासिल है।

हैदराबाद दक्कन में उर्दू की हर तरह से हौसला अफ़्ज़ाई की गई। सरकारी सतह पर सरपरस्ती की गई लेकिन 1947 के बाद से इस ज़बान को तास्सुब, जानिबदारी और सौतेले पन का शिकार बनाया गया।

हद तो ये है कि हुज़ूर निज़ाम नवाब मीर उसमान अली ख़ांन बहादुर की जानिब से क़ायम की गई दुनिया की पहली उर्दू उस्मानिया यूनीवर्सिटी के किरदार को तक बदल दिया गया और अब तो ऐसा लगता है कि उर्दू के शहर में ही उर्दू कसमपुर्सी की हालत से गुज़र रही है।

क़ारईन आप को याद होगा कि मार्च 1991 में तारीख़ी मदीना सर्किल पत्थर घट्टी पर मादर मेहरबान उर्दू का मीनार नस्ब किया गया था लेकिन अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि तक़रीबन 25 फ़ुट ऊंचाई का हामिल ये मीनार अब पूरी तरह मीनार इश्तिहार बाज़ी में तबदील हो गया है।

हुकूमत, बलदिया, उर्दू तंज़ीमों, उर्दू के नाम पर रोटियां सेंकने वालों और अवामी नुमाइंदों की मुजरिमाना ग़फ़लत के बाइस मादर मेहरबान उर्दू मीनार अपनी शनाख़्त खो चुका है।
किसी भी लिहाज़ से उसे अब उर्दू मीनार नहीं कहा जा सकता। लोग बिला लिहाज़ मज़हब और मिल्लत इस मीनार पर पोस्टर्स चस्पाँ कर रहे हैं हालाँकि उसे ज़बान उर्दू की एहमीयत और इफ़ादीयत को उजागर करने के लिए तामीर किया गया था।

काश हुकूमत और खास तौर पर मेयर बलदिया माजिद हुसैन मादर मेहरबान उर्दू पर मेहरबानी करने का शरफ़ हासिल करते क्योंकि महबान उर्दू में इस मीनार की ज़बूँहाली पर तशवीश पाई जाती है।

बुलंद और बाला दावे और वाअदे करना हुकूमत के ज़िम्मेदारों की आदत सानी होती है लेकिन उर्दू के मुआमले में हुकूमत से लेकर ओहदेदारों तक हर किसी को एक किस्म का तास्सुब नज़र आता है हालाँकि उर्दू ने हिंदूस्तान की जो ख़िदमत की है उसे फ़रामोश नहीं किया जा सकता।

रियासत में दूसरी सरकारी ज़बान होने के बावजूद कभी भी उसे मुसतहिक़ मुक़ाम नहीं दिया गया। हाल ही में चीफ़ मिनिस्टर एन किरण कुमार रेड्डी ने अव्वल ता दहम जमात तेलुगु को लाज़िमी क़रार देने की तजवीज़ को मंज़ूरी दे दी.
अब तो ग्रेजूएशन तक भी तेलुगु को लाज़िमी क़रार देने की तजवीज़ पर अमल करने की बातें हो रही हैं जबकि उर्दू को तरक़्क़ी के ताल्लुक़ से किसी की ज़बान नहीं खुलती।