माद्दी तरक़्क़ी के दौर में रुहानी इक़दार ज़वाल पज़ीर

निज़ामाबाद, ०७ जनवरी: (सियासत डिस्ट्रिक्ट न्यूज़) मुस्लिम स्टूडेंटस आर्गेनाईज़ेशन आफ़ इंडिया के ज़ेर-ए-एहतिमाम केर डिग्री कॉलिज निज़ामाबाद में जलसा सीरत उन्नबी का इनइक़ाद किया गया जिस में तलबा-ए-ओ- तालिबात की कसीर तादाद ने शिरकत की । तलबा-ए-से मुख़ातब करते हुए जनाब रज़ी उद्दीन लेक्चरार तबीआत ने हुसूल-ए-इल्म के मैदान में इन जज़्बों को बरुए कार लाते हुए मेहनत करने पर ज़ोर दिया। जबकि शहर के मारूफ़ आलम दीन मौलाना करीम उद्दीन कमाल ने अपने ख़िताब के दौरान कहा कि सीरत के मुताल्लिक़ आजकल ये तसव्वुर कुछ आम सा है कि उसे अंग्रेज़ी के लफ़्ज़ लाईफ़ के मुतरादिफ़ समझ लिया जाता है हालाँकि अरबी ज़बान में लाईफ़ का हम मानी लफ़्ज़ हयात , फ़ारसी और उर्दू में ज़िंदगी और सवानिह उमरी वग़ैरा है । सीरत का लफ़्ज़ बड़ा जामि है इस के मानी संत , तरीक़ा और मसलक को भी अपने दायरे में समो लेते हैं। मौजूदा दौर में माद्दी तरक़्क़ी के साथ साथ आज इंसान रुहानी इक़दार से गिरता चला जा रहा है, जहां आज एक तालिब-ए-इल्म पर स्कूल कालेज और यूनीवर्सिटी में इस को एक मज़मून पर महारत केलिए जो मेहनत की जाती है वहीं इस का थोड़ा हिस्सा मेहनत इस के दिल पर नहीं की जाती ताकि उसे एक अच्छा इंसान बनाया जाए ।

आजकल हमारे तमाम तालीमी इदारे मशीनी और माद्दी इंसान बनाने में मसरूफ़ हैं जबकि उन की जज़बाती , जमालियाती और मज़हबी हिस को यकसर नज़रअंदाज किया जा रहा है। उन्हों ने तालीमात नबवीऐ के मुख़्तलिफ़ पहलूओं को तलबा-ए-के सामने रखा कि वालदैन के क्या हुक़ूक़ हैं , पड़ोसी और रिश्तेदार के क्या हुक़ूक़ हैं । केर डिग्री कालेज के डायरेक्टर और प्रिंसिपल एन सुधाकर ने प्रोग्राम में शिरकत की और कहा कि इस तरह के ब्यानात और ख़ताबात की असर-ए-हाज़िर में बहुत ज़रूरत है ताकि हमारे दरमयान बैन मज़हबी इत्तिहाद फ़रोग़ पाई, वाक़ई आज कि दौर में इंसान रुहानी इक़दार से महरूम होता जा रहा है ।

जबकि यही हमारी तहज़ीब और क़ौम का ख़ास्सा है । ख़िताब के आख़िर में मौलाना से तलबाए-ओ- तालिबात ने मुख़्तलिफ़ सवालात के जवाबात दरयाफ़त किए और अपने मसलों का हल दरयाफ़त किया । इस प्रोग्राम के इंतिज़ाम और इंसिराम मैं ज़ीशान रिज़वी , शहबाज़ क़दीरी, अफ़रोज़, रहीम शहबाज़, फ़िरोज़, अफ़रोज़ , अकरम, अरबाज़ ने काफ़ी फ़आल तौर पर हिस्सा लिया जबकि
निज़ामत के फ़राइज़ मुहम्मद अरशद रिज़वी ने अदा किए । आख़िर में तलबाए-ओ- तालिबात मैं अनवार शरीयत किताब मोलफ़ा हज़रत जलाल उद्दीन अमजदीओ की तक़सीम भी अमल में आई