मायावती के ख़िलाफ़ मुक़द्दमा सुप्रीम कोर्ट में कुलअदम

बी एस पी के सरबराह और उत्तर प्रदेश की साबिक़ चीफ़ मिनिस्टर ( पूर्व मुख्य मंत्री) मायावती को आज ज़बरदस्त राहत पहूँचाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन के ख़िलाफ़ 9 साल से जारी ग़ैर मुतनासिब असासों (disproportionate assets/ समानुपातिक संपत्ती) के मुक़द्दमा को कुल अदम कर दिया और सी बी आई की सख़्त सरज़निश करते हुए कहा कि इस तहक़ीक़ाती इदारा ने इस (अदालत) की हिदायत के बगै़र इन (मायावती) के ख़िलाफ़ एफ़ आई आर दर्ज करते हुए अपने हदूद-ओ-दायरा कार से तजावुज़ (गुस्ताखी/ उलंघन) किया है।

अदालत-ए-उज़्मा (Supreme Court) ने कहा कि मायावती के ख़िलाफ़ ग़ैर मुतनासिब असासों (disproportionate assets/ समानुपातिक संपत्ती) का मुक़द्दमा गै़रज़रूरी था और इस इदारा (सी बी आई) ने इस (अदालत) के अहकाम को बाक़ायदा तौर पर समझे बगै़र ही मायावती के ख़िलाफ़ मुक़द्दमा पर पेशरफ़त की हालाँकि ये मुक़द्दमा ताज कोरीडोर के लिए मुबय्यना मंज़ूरी के बगै़र सिर्फ हुकूमत उत्तर प्रदेश की तरफ़ से 17 करोड़ रुपये की इजराई तक महिदूद था।

जस्टिस पी सथासीवम और जस्टिस दीपक मिश्रा पर मुश्तमिल बंच ने कहा कि इस अस्क़ाम मैं रियास्ती हुकूमत के ख़िलाफ़ तहक़ीक़ात के ज़िमन में सुप्रीम कोर्ट के मुख़्तलिफ़ अहकाम जारी किए गए हैं, लेकिन मायावती के ख़िलाफ़ उन की आमदनी के मालूम ज़राए से हट कर मुबय्यना तौर पर ग़ैर मुतनासिब असासा जमा करने के ज़िमन में मायावती के ख़िलाफ़ खासतौर पर एफ़ आई आर दर्ज करने के लिए कोई हिदायत या हुक्म जारी नहीं किया गया था।

बंच ने 18 सितंबर 2003 को इस अदालत की तरफ़ से जारी करदा हुक्म में इस किस्म की कोई वाज़िह हिदायत नहीं है और ना ही माबाद के अहकाम में कोई हिदायत की गई। चुनांचे हम इस मुबहम-ओ-नाक़िस एफ़ आई आर को गै़रक़ानूनी और काबिल तंसीख़ क़रार देते हैं जो तहक़ीक़ाती इदारा ने अपने दायरा इख़तियार से तजावुज़ करते हुए दर्ज किया था, जिसकी बुनियाद पर की जाने वाली तहक़ीक़ात को भी गै़रक़ानूनी और काबिल-ए-मंसूखी क़रार दिया जाता है।

चुनांचे ये सी बी आई तहक़ीक़ात मंसूख़-ओ-कुलअदम क़रार दी जाती हैं। 34 सफ़हात पर मुश्तमिल फ़ैसला की इब्तेदा में ही बंच ने ये वाज़िह (स्पष्ट) कर दिया कि वो हनूज़ ये फ़ैसला कर रही है कि आया सी बी आई की तरफ़ से दर्ज करदा ग़ैर मुतनासिब असासों का मुक़द्दमा 2003 के दौरान ताज कोरी डोर केस (DA case) के ज़िमन में जारी करदा अदालती हुक्काम के तहत दिए जाने वाले इख़्तेयारात से मुतजाविज़ हैं।

बंच ने मज़ीद कहा कि इन अहकाम पर कार्रवाई के दौरान हम इस बात पर भी मुतमईन हैं कि अदालत में ताज कवारीडोर प्रोजेक्ट के इलावा ग़ैर मुतनासिब असासों से मुताल्लिक़ ऐसा कोई मवाद पेश नहीं किया गया। चुनांचे दरख़ास्त गुज़ार के बारे में ग़ैर मुतनासिब असासों के ज़िमन में तहक़ीक़ात करने का कोई सवाल ही नहीं था और इसी बात की बुनियाद पर ग़ैर मुतनासिब असासों के ज़िमन में एफ़ आई आर दर्ज करने का सवाल भी पैदा नहीं हो सकता था।

19 सितंबर 2003 को अदालत के जारी करदा अहकाम में कई भी ये वाज़िह हिदायत नहीं दी गई थी कि दरख़ास्त गुज़ार (मायावती) के ख़िलाफ़ ग़ैर मुतनासिब असासों के मुक़द्दमा में एफ़ आई आर दर्ज की जाय।