मालिकों को इत्तिला दिए बगै़र अराज़ी का हुसूल गै़रक़ानूनी

हुसूल अराज़ी (जमीनो की प्राप्ती) की कार्रवाई उस वक़्त गै़रक़ानूनी बन जाती है जबकि हुकूमत मुतास्सिरा फ़रीक़ैन (affected parties) के लिए ऐलान आम जारी नहीं करती जो सख़्त ज़रूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने हुकूमत महाराष्ट्रा की एक ख़ित्ता अराज़ी के हुसूल का दिफ़ा करने की दरख़ास्त मुस्तर्द ( रद्द) करते हुए ये फ़ैसला सुनाया।

जस्टिस एच एल दत्तू और जस्टिस ए आर डोई पर मुश्तमिल बंच ने कहा कि ऐलान आम के इलावा सरकारी गज़ट (official gazette) में हुसूल अराज़ी का आलामीया शाय करने के सरकारी ओहदेदार पाबंद हैं। इसके इलावा ज़राए इबलाग़ (media notifications) को कम अज़ कम 2 मुक़ामी ( स्थानीय) अख़बारात में इस का ऐलान आम शाय किया जाना चाहीए।

क़ानून की दफ़ा 4 (1) के तहत हुकूमत पर इस का लज़ूम आइद ( जिमेदारी लागू) होता है। बंच ने कहा कि दरख़ास्त गुज़ारों का ये इद्दिआ मुस्तर्द ( निरस्त) किया जाता है की मज़कूरा अराज़ी ( उक़्त/ कही हुई जमीनो) का निस्फ़ हिस्सा दूसरे देहात में वाक़्य ( मौजद) था। दरख़ास्त गुज़ार कुलसूम नडियाडवाला और दीगर ( अन्य) क़ानूनी वारिसों इसमाईल नडियाडवाला ने सुप्रीम कोर्ट में बंबई हाइकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील की थी।