मालेगांव: आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार जावेद अहमद जेल से रिहा

मालेगांव: आतंकवाद के आरोपों के तहत गिरफ्तार हुए जावेद अहमद को आज सेंट्रल जेल से रिहाई नसीब हुई है जिसके बाद वह अपने पिता के साथ उसे हर मोड़ पर कानूनी सहायता प्रदान करने वाली संस्था जमीअत उलेमा महाराष्ट्र (अरशद मदनी) कार्यालय पहुंचकर गुलजार आजमी से मुलाकात की और उसे कानूनी सहायता मुहैया कराने पर शुक्रिया अदा किया।

Facebook पे हमारे पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करिये

बसीरत ओनलाइन के अनुसार मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र वाले शहर मालेगांव के निवासी जावेद अहमद अंसारी को पिछले महीने मुंबई की विशेष मकोका अदालत ने हथियार जब्ती के एक मामले में दोषी पाया था और उसे आठ साल कैद बा मुशाक्क्क्त की सजा हुई थी जिसके बाद उसे सेंट्रल जेल में कैद कर लिया गया था।
जावेद अंसारी को मिली सजा को जमीअत उलेमा ने मुंबई हाई कोर्ट में चुनौती दी और अदालत से गुजारिश की थी कि निचली अदालत के फैसले के खिलाफ सुनवाई पूरी होने तक आरोपी को जमानत पर रिहा किया जाए।
इस संबंध में जमीअत उलेमा महाराष्ट्र के कानूनी सहायता समिति के प्रमुख गुलजार आजमी ने बताया कि निचली अदालत के फैसले के खिलाफ पिछले महीने मुंबई हाई कोर्ट में अपील दाखिल की गई थी जिस पर चर्चा करते हुए एडवोकेट शरीफ शेख ने अदालत को बताया कि आरोपी जावेद अब तक जेल में साढ़े सात साल से अधिक का समय गुज़ार चूका है इसलिए सुनवाई पूरी होने तक उसे जमानत पर रिहा किया जाए जिसे मुंबई हाई कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था।
गुलजार आजमी ने बताया कि हालांकि दो सप्ताह पहले मुंबई हाईकोर्ट से जमानत मंजूर हो गई थी लेकिन छुट्टियों और कागजी कार्रवाई पूरी करने में समय लगा जिसके बाद आज जावेद की आख़िरकार जेल से रिहाई संभव हुई।
गुलज़ार आज़मी ने कहा कि इस मामले में 14 / वर्ष और आजीवन कारावास की सजा पाए मुस्लिम युवाओं के लिए भी मुंबई हाईकोर्ट से उल्लेख किया जा रहा है जबकि मोहम्मद शरीफ और मुजफ्फर तनवीर को विशेष मकोका अदालत से मिली 14 / वर्षों की सजा के खिलाफ अपील दाखिल कर दी गई है जिस पर सुनवाई जल्द ही होगी ।
गौरतलब है कि 2006 के मध्य में महाराष्ट्र के मराठवाडा और मालेगांव क्षेत्रों से आतंकवाद के आरोपों के तहत (एटीएस) ने 22 / शिक्षित मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार किया था और उनके खिलाफ देशद्रोही और वर्जित हथियार रखने का आरोप लगाया था। लगभग दस साल तक चले इस मुकदमे का फैसला 2 अगस्त 2006 को हुआ जिसमें अदालत ने 7 / मुस्लिम युवकों को उम्रकैद, 2 / मुस्लिम युवाओं को 14 / साल, 3 / मुस्लिम युवकों को आठ साल की सजा सुनाई थी और बाकी आरोपियों को बाइज़्ज़त बरी कर दिया था।