मालेगांव ब्लास्ट में छूटे नौजवानों ने कहा: “हमने उस काम के लिए सज़ा झेला है जो कभी किया ही नहीं था”

मुंबई: हमने हर जगह इन्साफ के लिए गुरह लगायी और कहा की हमने कुछ नहीं किया हम बेक़सूर हैं। लेकिन उस वक़्त हमारी सुनने वाल कोई नहीं था।

2006 का वो साल हमारी और हमारे परिवारों की जिंदगियों में काले साल की तरह आये और हमारी १० सालों के लिए काला कर गए। आज हम 10 साल बाद अदालत के फैसले के बाद बाइज़्ज़त बरी हो चुके हैं तो इस मौके पर ख़ुशी भी है और गम भी। ख़ुशी इस बात की कि हमारी बेकसूरी साबित हुई और कौम के लोगों पर एक बेवजह कीचड़ उछालने वालों के मूँह बंद हो गये और दुःख इस बात का कि इन्साफ की राह तकते-तकते ज़िन्दगी के 10 साल यूँ ही बीत गए।

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यह कहना है मालेगांव ब्लास्ट मामले में बरी हुए नूर-उल-हुदा का जो कोर्ट के फैसले के बाद अपने आंसू न रोक पाये।

तबाही के उस दिन के बारे में बताते हुए नूर-उल-हुदा बताते हैं कि शुक्रवार की शाम थी और नमाज़ अदा करने आये हज़ारों लोगों में शब-ए-बारात मनाने का जोश झलक रहा था। तभी ४ आरडीएक्स धमाकों ने सारा मंजर बदल डाला। इसके बाद ही पुलिस ने हुदा को जो कि एक दिहाड़ीदार मजदूर के तौर पर एक करघाघर में काम करता था को पुलिस ने बम लगाने की साजिश करने का इलज़ाम लगाकर गिरफ्तार कर लिया।

इसके इलावा मामले में रिहा हुए एक अन्य कथित आरोपी डॉ. फ़रोग़ मखदूमी का कहना है कि कोर्ट की कार्यवाई के दौरान मुझे कभी डर नहीं लगा क्यूंकि मुझे यकीन था कि पुलिस के इन झूठे सुबूतों के बिनाह पर मुझे सजा नहीं मिल सकती।