नई दिल्ली 09 मई: मालेगाव बम धमाकों में गिरफ़्तार करदा 9 मुसलमानों की ज़िंदगी के क़ीमती 10 साल ज़ाए हो गए। क़ौमी तहक़ीक़ाती एजेंसी ने गिरफ़्तार शूदा इन नौजवानों के ख़िलाफ़ सबूत ना होने की रिपोर्ट दाख़िल की थी जिस पर सेशन कोर्ट ने इन तमाम को दहश्तगर्दी के इल्ज़ाम से बरी कर दिया था।
तहक़ीक़ाती एजेंसीयों की लापरवाही और कोताहियों ने मुस्लिम नौजवानों की ना सिर्फ ज़िंदगीयां तबारा कर दी हैं बल्के मुआशरे में उनके लिए मुश्किलात भी पैदा कर दी थीं। 9 बरी होने वाले मुस्लिम नौजवानों के मिनजुमला 6 नौजवान नूर उलहुदा, मुहम्मद ज़ाहिद , रईस अहमद, डॉ फ़ारूक़ मख़दूमी, डॉ सलमान फ़ारसी और अबरार अहमद ने अपनी ज़िंदगीयों पर गुज़रने वाले मसाइब का ज़िक्र करते हुए कहा कि दहश्तगर्दी के इल्ज़ाम में उन्हें फाँस कर हिन्दुस्तान में मुसलमानों को मशकूक बनाने की कोशिश की गई थी।
35 साला उम्र ज़ाहिद ने बताया कि मैं मालेगाव से 450 लिलो मीटर दूर था और मेरी बेगुनाही के लिए 75 हिंदूओं के बिशमोल 300 लोग गवाही दी थी लेकिन किसी ने नहीं सुना। मुहर वसी के दिनों में दी जाने वाली अज़ीयत के बारे में रईस अहमद 43 साल इमीटेशन ज्वेलरी शाप मालिक ने बताया कि मुहर वसी के दिनों में नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त अज़ीयतें दी गई।
अदालत में पेशी की तारीख़ से पहले या मेडिकल चैकअप से पहले ही ज़दोकोबी रोक दी जाती थी। यूनानी डाक्टर 42 साला फ़ारूक़ मख़दूमी ने बताया कि अगर बीजेपी और आरएसएसम्को हनूज़ हमारी बेगुनाही पर शुबा है तो मैं उनके साथ बैठ कर या उन लोगों के साथ जो मुस्लिम दुश्मनी में बयानात देते हैं ख़ुद को बेक़सूर साबित करने की कोशिश करेंगे।जज वीवी पाटल ने 25 अप्रैल को इन तमाम मुसलमानों पर से दहश्तगर्दी का लेबल हटा दिया है लेकिन ये 10 साल के अज़ीयत-नाक दिन रात ताहयात उनका तआक़ुब करते रहेंगे।