रांची 29 मई : पतला दुबला जिश्म। कद काठी आम। तिरूलडीह बुंडू की इस खातून के हाथों में कभी रांची जिला कमेटी माओवादी ख्वातीन बटालियन की कमान थी। जदीद हथियारों को चलाने और इन्तेहाई खतरनाक रेशमी को दस्ते के लोग हाईकमान कहते थे। तसादम में महारत। तकरीबन छह साल तक तमाड़, बुंडू और खूंटी के जंगली इलाकों में राज करने के बाद आखिर उसने साल 2011 में पुलिस के सामने एतेराफ कर दिया। लेकिन आज उसे गांव छोडऩा पड़ा। डर है कहीं माओवादी उसकों क़त्ल ना कर दें।
यही सूरते हाल हरिपदो सिंह मुंडा, सुखराम सिंह मुंडा, अर्जुन मिर्धा, राम लोहरा, बादल समेत दीगर एतेराफ कर चुके माओवादियों की है। मंगल को सभी समाहरणालय वाक़ेय एसएसपी साकेत कुमार सिंह के बुलावे पर पहुंचे थे। मौका था इन्हें एतेराफ के बदले ग्रांट रक़म देने का। किसी को 1.50 लाख तो किसी को 50 हजार तक का ग्रांट दिया गया।