मासूम मुसलमानों का क़सूर

हैदराबाद इन दिनों एक तरफ़ ग़ैर मालना लोड शेडिंग से अंधेरों में ग़र्क़ है तो दूसरी तरफ़ पुलिस ज़्यादतियों और फ़िर्क़ा परस्तों की शरारतों से आम शहरी परेशान हैं। महकमा पुलिस ने अपने 23 ओहदेदारों के तबादले करके अवाम को ये एहसास दिलाया है कि वो उन के जान-ओ-माल के तहफ़्फ़ुज़ , अमन-ओ-सुकून की बरक़रारी की ज़िम्मेदारी से राह फ़रार इख्तेयार नहीं कर रही है।

साउथ ज़ोन के लिए नए डी एस पी की हैसियत से डाक्टर अकोन संभरवाल का तक़र्रुर इस उम्मीद के साथ किया गया है कि ये नौजवान पुलिस ओहदेदार पुराने शहर के फ़िर्कापरस्त अनासिर को सबक़ सिखाएगा। अवाम को कर्फ़यू के इलावा पुलिस की लाठियों और सायरन की आवाज़ों से ख़ौफ़ज़दा करते हुए रोज़मर्रा की आज़ाद ज़िंदगी को क़ैद की नज़र कर दिया गया है।

मुस्लमान अब सैक़्यूलर मुल़्क की दहाई देने की भी हिम्मत नहीं कर सकते, उन्हें ईद उल-मोमिनीन की ख़ुशीयों का इज़हार करने के लिए भी पुलिस रुकावटों का सामना करना पड़ रहा है। तारीख़ी मक्का मस्जिद में नमाज़ जुमा की अदाएगी हर जुमा नमाजीयों के लिए एक मसला बना दी जा रही है।

पुलिस फ़िर्क़ा परस्तों को क़ाबू में नहीं कर सकती। पाकबाज़ नमाजियों को डरा सकती है, उन्हें नमाज़ के लिए जाने से मना कर सकती है। पुलिस इबादतगाहों की तौहीन करने वालों को गिरफ़्तार नहीं कर सकती, इबादत के लिए जाने वालों को रोक सकती है। अगर मुस्लमान इस एक वाक़्या पर संजीदगी से ग़ौर करें तो उन्हें उन के लिए पैदा किए जाने वाले हालात को समझने में मदद मिलेगी।

ये हालात कौन पैदा कर रहा है, और उन की क़ियादत की मौजूदगी क्या मायने रखती है, इसकी इफ़ादीयत से कितने शहरी इस्तेफ़ादा कर रहे हैं। अगर इस का दयानतदाराना जायज़ा लें तो इस जमात के राय दहिंदों को एहसास होगा कि उन्होंने ख़ुद पर ज़ुल्म करने के लिए इस क़ियादत का साथ दिया है। क़ुदरत का एक उसूल होता है कि पहाड़ों की चोटियों पर जो बर्फ़ पड़ती है वो पिघल कर ज़मीन पर उतरती हुई दरयाओं का पानी बन जाती है और खेतों को सेराब करती है, तालाब भरते हैं, पीने के पानी का बंद-ओ-बस्त होता है, इस तरह क़ियादत की चोटी पर जो कुछ होता है इसके असरात भी नीचे उतरते हैं।

इस वक़्त पुराने शहर की क़ियादत की चोटी पर होने वाली अबतरी के असरात पुराने शहर की गली कूचों और अवाम की तिजारत पर पड़ रहे हैं। बच्चों की तालीम मुतास्सिर हो रही है, गंदगी, अदम सफ़ाई, लोडशेडिंग, मच्छरों की बोहतात के दाइमी मसाएल के साथ कर्फ़यू, पुलिस ज़्यादतियों में भी इज़ाफ़ा हो रहा है।

अब आप ग़ौर करें कि ये ख़राबी कहां से शुरू हुई और इसके लिए कौन ज़िम्मेदार हैं? क्या मासूम मुस्लमानों का क़सूर ये है कि कि उन्होंने अपने हक़ वोट का ग़लत इस्तेमाल किया?