बरोज़ जुमा 23 मार्च बाद इशा जद्दा की अहम अदबी-ओ-समाजी तंज़ीमों के तआवुन से जिन में यूनाईटेड ए पी फ़ोर्म , ख़ाक-ए-तुय्यबा ट्रस्ट, बज़्म-ए-उस्मानिया, उर्दू एकेडेमी जद्दा, टोईन सीटीज़ वीलफ़ीर, साज़ और आवाज़, ज़िंदा दिलाँ-ए-जद्दा , जामिआ निज़ामीया ओलड ब्वॉयज़, ए पी एन आइज़, और उर्दू गुलबुन वग़ैराशामिल थे शादाब रैस्टोरैंट , अज़ीज़ ये मैं मुदीर शगूफ़ा डाक्टर सय्यद मुस्तफ़ा कमाल केएज़ाज़ में एक दिलचस्प, पुरमिज़ाह, और ख़ूबसूरत महफ़िल आरास्ता की गई। अलीम ख़ानफ़लकी ओवरसीज़ ऐडीटर शगूफ़ा इस महफ़िल के मेज़बान थी।
एक अर्सा बाद ज़िंदा दिलाँ-ए-हैदराबाद की मुहाफ़िल के क़हक़हों की यादें ताज़ा होगईं और इन्ही रवायात की गूंज मैं सामईन मुसलसल तीन घंटों तक लतीफ़ नस्री-ओ-शेअरी तंज़-ओ-मज़ाह से लुतफ़ अंदोज़ होते रही। और अरूस अलबहर जुदा में बैठ कर वतन की यादों में गुम होगई। डाक्टरमुस्तफ़ा कमाल इन दिनों उमरा केलिए सऊदी अरब आए हुए हैं। इस यादगार महफ़िल कीसदारत महफ़िल इलम-ओ-अदब के सदर जनाब मुहम्मद मुजाहिद सय्यद ने की। महिमानान-ए-ख़ुसूसी जनाब नईम बाज़ीद पूरी उर्दू न्यूज़ और जनाब शरीफ़ असलम थी।
अलीम ख़ान फ़लकी ने कार्रवाई चलाई। जनाब जमाल कादरी , सदर उर्दू एकेडेमी जद्दा केमज़मून कमा लिया त-ए-कमाल ने ख़ूब दाद हासिल की।उन्हों ने मुस्तफ़ा कमाल के हर्फ़ क का ख़ूब इस्तिमाल किया और जितने क से शुरू होने वाले अलफ़ाज़ हैं इन का बकसरत इस्तिमाल करके तख़लीक़ कारी की एक नई मिसाल पेश की। नईम जावेद सदर हदफ़दम्माम का मज़मून नाज़नीन-ए-अदब का तीमारदार जनाब माहिर सिद्दीक़ी सदर साज़ और आवाज़ ने पेश किया।नईम जावेद ने मुस्तुफ़ाई कमाल की शख़्सियत पर तबसरा किया । जनाब हामिद सलीम ने महफ़िल को क़हक़हा ज़ार बनादिया। जनाब शरीफ़ असलम ने अपनेमख़सूस शेअरों के इंतिख़ाब को मुस्तफ़ा कमाल की नज़र किया और दाद हासिल की।
अलीम ख़ान फ़लकी ने अपने मज़मून बैचलरज़ क्वाटर्रज़ के जाँबाज़ बैचलर में मुस्तफ़ा कमाल साहिब के मिज़ाज, शख़्सियत और4साला अदबी , मिली-ओ-सहाफ़ती ख़िदमात का एक जायज़ा पेश किया। उन्हों ने कहा कि 1955 से मुस्तुफ़ाई कमाल साहिब ने एक सहाफ़ी और उर्दू के जहद कार की हैसियत से अपना सफ़र शुरू किया। बैचलर क्वाटर्रज़ जिस के कई कमरों में कोई ना कोई अदबी, सयासी , सहाफ़ती या तरक़्क़ी पसंद तहरीकें चल रही थीं ये हर कमरे से किसी ना किसी तरह जुड़े हुए थे । ज़िंदा दिलाँ-ए-हैदराबाद और शगूफ़ा को उन्हों ने अपनी पूरी ज़िंदगी दे डाली। 44 साल से ये मुसलसल शगूफ़ा निकाल रहे हैं।
44 साल का अर्सा कोई मामूली अर्सा नहीं होता। ये मुस्तक़िल मिज़ाजी, अज़म-ओ-हिम्मत का एक ऐसा इमतिहान है जिस का मज़ाहीया अदब में शायद ही कोई ऐसा रिकार्ड क़ायम करसकी। साहब-ए-एज़ाज़ डाक्टर मुस्तुफ़ाई कमाल ने अहल-ए-जद्दा की सताइश करते हुए कहा कि जुदा में बसने वाले अहल-ए-उर्दू ने हमेशा उर्दू ज़बान-ओ-तहज़ीब से वाबस्तगी , अपनी बाख़बरी और मुस्तइद्दी का सबूत दिया ही। तन्ज़ो मज़ाह पर रोशनी डालते हुए उन्हों ने कहा कि तन्ज़ो मज़ाह का रिश्ता किसी ख़ास तहरीक से नहीं पूरे मुआशरे से रहा ही। आख़िर में सदर नशिस्त जनाब मुहम्मद मुजाहिद सय्यद ने अपने ख़ास अदबी रोब दारानाउस्लूब में उर्दू तंज़-ओ-मज़ाह की इजमाली तारीख़ और ज़बान-ओ-अदब के लिए मुस्तुफ़ाई कमाल की अज़ीम ख़िदमात के मौज़ू पर अपना वक़ीअ मक़ाला पेश किया। अलीम ख़ानफ़लकी ने शुक्रिया अदा किया।