माह जनवरी में 8 मुसलमानों का मुसलमानों के हाथों क़त्ल

शहर में मामूली बहस और तकरार मामूली मामूली बातों पर क़त्ल के वाक़ियात आम सी बात हो गए हैं। एक दूसरे को घूर कर देखने, छोटी सी रक़म की अदाएगी में नाकामी, और छोटे छोटे इलाक़ों में असर और रसूख़ जैसे मसअलों पर लोग एक दूसरे की जानें लेने से भी गुरेज़ नहीं कर रहे हैं।

नफिसा नफ़्सी में हम एक दूसरे के जान के प्यासे हो गए हालाँकि मुसलमानों को मज़बूत इमारत में जड़ी ईंटों से तामीर किया गया और एक मुसलमान का ख़ून दूसरे पर हराम क़रार दिया गया।

सब से अहम बात ये है कि हम सब एक रब की इबादत करने वाले हैं एक रसूल (सल) के उम्मती हैं एक ही किताब क़ुरआन मजीद के पढ़ने वाले हैं इस के बावजूद हम मुसलमानों में नफ़रत और अदावत का ये हाल हो गया है कि बाज़ारों, घरों, मैदानों, दुकानों और सड़कों पर एक दूसरे का ख़ून बहाते फिर रहे हैं। शहरीयाने हैदराबाद के लिए ये इंतिहाई अफ़सोस की बात है कि नए साल 2014 के आग़ाज़ यानी एक जनवरी से 1 फेब्रुअरी तक क़त्ल की 8 ऐसी वारदातें पेश आईं जिस में मरने और मारने वाले सब मुसलमान हैं।

नए साल के पहले ही दिन एक जनवरी को मले पल्ली में 45 साला शेख अबदूर्रज़्ज़ाक़ को बड़े ही बेदर्दाना अंदाज़ में क़त्ल किया गया। वो लक्ष्मी नगर में ऑटो गैरेज और सर्विस सेंटर चलाया करते थे। पुलिस के मुताबिक़ क़त्ल की ये वारदात पुरानी मुख़ासमत के नतीजे में पेश आई और शेख अबदूर्रज़्ज़ाक़ के क़त्ल में हामिद, कल्लू, गोरा क़य्यूम, काला क़य्यूम और उन के दीगर साथी मुलव्विस हैं।

शेख अबदूर्रज़्ज़ाक़ को कातिलीन की टोली ने घर पर आकर हमला करते हुए क़त्ल कर दिया। इसी तरह 3 जनवरी को रैन बाज़ार के ऑटो ड्राईवर बशीर उद्दीन को उस के ही भतीजों ने मौत के घाट उतार दिया। पुलिस क़ातिलों की तलाश में है।

बहरहाल इन वाक़ियात से अंदाज़ा होता है कि शहर में मुसलमान एक दूसरे का क़त्ल करने से भी गुरेज़ नहीं कर रहे हैं। ये सब दीन से दूरी का नतीजा है। जब कि उल्मा की ज़िम्मेदारी भी बनती है कि वो मिल्लत के नौजवानों को ये बताएं कि एक मुसलमान के हाथ दूसरे मुसलमान का क़त्ल हराम है।

इस के इलावा इस्लाम ने एक इंसान के क़त्ल को सारी इंसानियत का क़त्ल क़रार दिया है। बहरहाल ज़रूरत इस बात की है कि आइम्मा और ख़तीब साहिबान नमाज़ जुमा के ख़ुतबात में मिल्लत को इस तबाही और बर्बादी से बचने की तलक़ीन करें।