रमज़ान के हुरूफ़:
र रहमत बरकत मग़फ़िरत हासिल करने का मौक़ा
म माल दुनिया का छोड़कर आख़िरत का माल हासिल करने का मौक़ा
ज़ ज़लालत-ओ-गुमराही से बाज़ आने का मौक़ा
ए अल्लाह के इनाम याफ़तगान बंदों के नक़श-ए-क़दम पर चलने का मौक़ा
नून नूर-ए-नबी से ज़िंदगीयों को कामयाब बनाने का मौक़ा
अल्लाह तबारक-ओताअला का बेपनाह शुक्र एहसान अज़ीम हैके अल्लाह पाक ने हम सब को अपनी तमाम मख़लूक़ात के अंदर इंसान बनाकर पैदा फ़रमाया। और फिर माह रमज़ान उल-मुबारक भी अता फ़रमाया है।
मुख़्तसर ये कि रमज़ान उल-मुबारक की हर रात में सत्तर हज़ार 70,000 दोज़ख़ियों को नजात मिलती है। रमज़ान उल-मुबारक को अल्लाह तबारक-ओताअला ने तीन हिस्सों में तक़सीम किया है।
पहला हिस्सा यानी यक्म रमज़ान ता 10 रमज़ान जिस को रहमत का अशरा कहा गया।
दूसरा हिस्सा यानी 11 रमज़ानता 20 रमज़ान जिस को मग़फ़िरत का अशरा कहा गया।
तीसरा हिस्सा यानी 21 रमज़ान ता ख़त्म रमज़ान जिस को नजात का अशरा कहा गया।
रमज़ान उल-मुबारक जैसे अज़ीमतरीन-ओ-मुतबर्रिक महीने में यतीम-ओ-यसीर गरबा-ए-मसाकीन की मदद करना इस तरह जिस तरह तुम अपने अहल-ओ-अयाल की कफ़ालत किया करते हैं क्यूंकि रब उलअलमीन का फ़रमान आलीशान हैके हुक़ूक़ अल्लाह में अगर कुछ कमी हो तो माफ़ी मुम्किन है मगर हुक़ूक़ उल-ईबाद में कमी हो तो जब तक वो कमी पूरी ना हो तो माफ़ी मुम्किन नहीं।
बहरहाल ए ईमान वालो रमज़ान उल-मुबारक की ताज़ीम-ओ-तकरीम करना और इस माह-ए-मुबारक में ज़्यादा से ज़्यादा आमाल-ए-सालहा करें ताके साल भर के गुनाहों का कफ़्फ़ारा अदा होसके।
रमज़ान उल-मुबारक के रोज़े उमत मुहम्मदिया (स०) के लिए फ़र्ज़ किए गए ए ईमान वालो आम दिनों के रोज़े अपनी जगह हैं रमज़ान उल-मुबारक का एक एक रोज़ा एसा है जिस के लिए बताया जाता हैके रमज़ान उल-मुबारक का एक रोज़ा भी बिलाउर्ज़ शरई छोड़ दे और साल भर इस एक रोज़े की क़ज़ा करते रहे लेकिन रमज़ान के रोज़े का सवाब नहीं मिल सकता।
क्यूंकि रमज़ान उल-मुबारक के रोज़ों की बहुत ही बहुत बड़ी बड़ी फ़ज़ीलतें आई हैं। रोज़ा रखने के फ़ायदे मुख़्तसिरन हसब-ए-ज़ैल हैं।
1। रोज़ा बंदा-ए- मोमिन को अल्लाह का क़ुरब दिलाता है।
2। रोज़ा बंदा -ए-मोमिन को अल्लाह का महबूब बनाता है।
3। रोज़ा बंदा-ए- मोमिन को जन्नत में ले जाता है।
4। रोज़ा बंदा-ए- मेमन को रहमत इलाही बताने वाला है।
5। रोज़ा बंदा -ए-मोमिन को बरकत ख़ुदावंदी अता करने वाला है।
6। रोज़ा बंदा-ए-मोमिन को मग़फ़िरत इलाही नसीब करने वाला है।
7। रोज़ा बंदा-ए-मोमिन को दोज़ख़ की आग से बचाने वाला है।
8। रोज़ा बंदा-ए-मोमिन को सादिक़ बनाने वाला है।
9। रोज़ा बंदा-ए-मोमिन को पाक-ओ-साफ़ करने वाला है।
10। रोज़ा-ए-बंदा-ए-मोमिन के सिने को मुस्तफा का मदीना बनाने वाला है।
इमाम जामिया निज़ामीया फ़रमाते हैं कि लोगो ! रमज़ान उल-मुबारक की आमद के साथ ही इस माह-ए-मुबारक की ताज़ीम-ओ-तकरीम के लिए तैयार होजाओ।
यानी आप ने फ़रमाया कि रमज़ान उल-मुबारक जैसे मुतबर्रिक महीने में शरई उज़्र के दायरा में रोज़ा टूट भी जाये तो तुम पर लाज़िम है कि जिस क़दर दिन बाक़ी रहे उस को भी रोज़ा दारों की तरह गुज़ारना चाहीए। लेकिन अब इन हालतों में वो घर आजाए तो उनको भी ये हुक्म नाफ़िज़ होगा कि ग़ुरूब आफ़ताब तक रोज़ा दारों की तरह भूके प्यासे रहें। बानी जामिया निज़ामीया फ़रमाते हैं रमज़ान उल-मुबारक की हुर्मत को बाक़ी-ओ-बरक़रार रखना है।
बानी जामिया निज़ामीया अपनी हयात-ए-तुयबा में देखा कि लोग रमज़ान उल-मुबारक जैसे मुतबर्रिक महीने में भी दिन के औक़ात में तक़ारीब हुआ करते तो बानी जामिया निज़ामीया ने इन तक़ारीब पर रोक थाम लगादी ताके रमज़ान का एहतिराम बरक़रार रह सके और एलान फ़रमाया कि अब कोई भी किसी भी साल रमज़ान के आग़ाज़ से रमज़ान के खत्म तक दिन के औक़ात में कोई तक़ारीब ना करें।ग़ैर मज़हब के लोग होटल में बैठ कर खाते पीते हैं और सामने से रोज़ा दारों का गुज़र होता है तो बानी जामिआ निज़ामीया ने होटलों पर पाबंदी लागइ के फ़ज्र के बाद से मग़रिब तक पर्दे डाले जाएं ताके रोज़ा दारों और रमज़ान उल-मुबारक का एहतिराम बाक़ी-ओ-बरक़रार रह सके।