मिड डे मील का चावल कोई वज़ीर खा कर बताए , दाँत ना हिल जाय तो कहना

नुमाइंदा ख़ुसूसी-हुकूमत ने रियासत में गरीब ख़ानदानों को बच्चों की तालीम की तरफ़ राग़िब करने ,रियासत में नाख़्वान्दगी की शरह को घटाने और बच्चों की जिस्मानी सेहत को बेहतर बनाने के मक़ासिद के तहत स्कूलों में दोपहर के खाने की स्कीम मिड डे मील का आग़ाज़ किया लेकिन आज स्कीम के तहत एसा चावल फ़राहम किया जा रहा है जिसे खा कर बच्चे सेहत मंद तो नहीं लेकिन बीमार ज़रूर पड़ जाएंगे । हैदराबाद शहर के बेशतर सरकारी स्कूलों में मिड डे मील ए स्कीम पर अमल आवरी का जायज़ा लिया जाय तो पता चलेगा कि तलबा-ए-एस खाने को पसंद ही नहीं कररहे हैं और ये स्कीम महिज़ बराए नाम हो कर रह गई है ।

बेशतर स्कूलों को मिड डे मील स्कूल को सरबराह किया जाने वाला खाना स्कूलों के करीब कचरे की कुंडियों में पड़ा नज़र आएगा जहां हशरात-उल-अर्ज़ भी उसे खाना पसंद नहीं करते । बताया जाता है कि सुबह पका हुआ खाना दोपहर में स्कूलों को सरबराह किया जाता है और जो चावल पकवान के लिए इस्तिमाल किया जाता है वो काफ़ी मोटा होता है जो खाने लायक़ ही नहीं होता । ये खाना खा कर तो बच्चों के जबड़े दर्द हूजाएंगे । इस के इलावा खाने के साथ फ़राहम की जाने वाली दाल पानी की तरह होती है । एसा खाना तो शायद जेल में कैदियों को भी नहीं दिया जाता होगा । इस खाना से स्कूली तलबा-ए-की सेहत बनेगी तो नहीं हाँ बिगड़ ज़रूर जाएगी ।

स्कूली तलबा-ए-को सरबराह किया जा रहा चावल अगर कोई वज़ीर खाले तो उन के भी दाँत हिलने लगेंगे । हुकूमत की जानिब से सरबराह किया जा रहा खाना खा कर बच्चे , स्कूल को तो पाबंदी से नहीं आएंगे अलबत्ता उन्हें दवा ख़ानों को पाबंदी से ले जाने की नौबत ज़रूर आजाएगी । दरअसल मिड डे मील स्कीम साल 1960 में स्कूलों में मुतआरिफ़ की गई थी जिस के मक़ासिद गरीब स्कूली तलबा-ए-को दोपहर में मुफ़्त खाना फ़राहम करना , गरीब ख़ानदानों को अपने बच्चों की तालीम की तरफ़ राग़िब करना , बच्चों में तालीम के तुएं दिलचस्पी पैदा करना , मयारी ग़िज़ा फ़राहम कर के बच्चों की सेहत को बेहतर बनाते हुए उन्हें अमराज़ से महफ़ूज़ रखना और मिड डे मील की तय्यारी की ज़िम्मेदारी ख़वातीन के सपुर्द कर के उन्हें ख़ुद मुकतफ़ी बनाना है ।

सब से पहले टामलनाडो में ये स्कीम मुतआरिफ़ की गई जहां स्कीम का बेहतररद्द-ए-अमल दिखाई देने पर सुप्रीम कोर्ट ने सारे मुल्क में इस को मुतआरिफ़ करने की हुकूमत को हिदायत दी । बाद अज़ां उसे मिड डे मील स्कीम का नाम दिया गया और दीगर रियासतों ने भी उसे अपनाया जिन में हमारी रियासत आंधरा प्रदेश भी शामिल है । इतने मक़ासिद के साथ मुतआरिफ़ की गई इस स्कीम का एक भी मक़सद पूरा होता दिखाई नहीं दे रहा है । स्कीम को मुतआरिफ़ करने के बावजूद मुल्क में बच्चों में भक् मरी का मसला बरक़रार है , आदाद-ओ-शुमार के मुताबिक़ मुल्क में 5 बरस की उम्र के 42.5 फीसद बच्चे कम वज़न हैं। तग़ज़िया बख़श ग़िज़ा की अदम फ़राहमी उस की अहम वजह बताई गई है ।वाज़िह रहे कि दुनिया में शदीद भक् मरी वाले मुल्कों में हिंदूस्तान भी शामिल है जहां 200 मिलियन अवाम भक् मरी का शिकार हैं । ये भी बताया जाता है कि तग़ज़िया बख़श ग़िज़ा की अदम फ़राहमी से लाग़ार होने वाले बच्चों की कसीर तादाद की वजह से मुल्क भक् मरी का शिकार मुल्कों की फ़हरिस्त में शामिल हुआ है ।

तग़ज़िया बख़श ग़िज़ा की अदम फ़राहमी से लाग़ार बच्चों की तादाद में हमारे मलिक का तनासुब भक् मरी का शिकार आ फ्रीकी ममालिक से ज़्यादा है । साल 2009 में मंज़रे आम पर आई ग्लोबल हंगर इंडिकस की एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक़ बेहतर ग़िज़ा की अदम फ़राहमी से बीमार बच्चों की अक्सरियत वाले ममालिक की तादाद दुनिया में 84 है जिन में हमारा मुल़्क हिंदूस्तान 65 वीं मुक़ाम पर है । इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि हिंदूस्तान में भक् मरी का शिकार अफ़राद की तादाद दुनिया के दीगर ममालिक की बनिसबत ज़्यादा यानी 200 मिलियन है । सर्वे रिपोर्ट में ये भी मश्वरा दिया गया कि हिंदूस्तान की रियासतों में बच्चों को तग़ज़िया बख़श ग़िज़ा की फ़राहमी अशद ज़रूरी है ।

पता नहीं हुकूमत को फ़लाही उसके मात शुरू करने का मश्वरा देने वाले क़ाबिल तरीन अफ़राद स्कीम को मुतआरिफ़ करने के साथ इस पर बेहतर और शफ़्फ़ाफ़ तरीका से अमल आवरी की मेकानिज़म को भी रूबा अमल लाने का मश्वरा क्यों नहीं देते ? फ़लाही उसके मात शुरू करदी जाती हैं लेकिन इस के मक़ासिद पूरे नहीं हो पाते बल्कि इस के मनफ़ी असरात ही सामने आने लगते हैं । मिड डे मील स्कूल के इलावा हाल ही में गरीब अवाम को सहूलत फ़राहम करने के नाम पर एक रुपय केलो चावल की स्कीम का आग़ाज़ किया गया लेकिन चावल इस क़दर ख़राब मुहय्या किए गए कि लोगों ने सरकारी तक़ारीब में इन चावलों को ओहदेदारों के मुंह पर मार दिया ।

बाद में पता चला कि साबिक़ चीफ मिनिस्टर के रोशिया दौर-ए-हकूमत में मौसम की ख़राबी से जो चावल ख़राब होगए थे वो किसी और रियासत को सरबराह करने लायक़ नहीं थे और किसानों को भी भारी नुक़्सान पहुंचा था । ये चावल गोदामों में पड़े सड़ रहे थे । बाद में जब किरण कुमार रेड्डी चीफ मिनिस्टर बने तो उन को मुशीरों ने मश्वरा दिया कि एक रुपय केलो चावल स्कीम का आग़ाज़ करते हुए सारे गोदामों में बेकार पड़ा हुआ चावल अवाम को सरबराह कर दिया जाय । इस से हुकूमत की नेकनामी भी होगी और गोदामों में पड़ा हुआ चावल भी बिक जाएगा जिस से किसानों को कुछ रक़म मिल जाएगी ।

हुकूमत को अगर गरीब अवाम की इस तरह मदद करनी है तो फिर इस से तो बेहतर है कि वो उन्हें उन के हाल पर छोड़ दे । इस तरह नाक़िस चावल खिला कर गरीब अवाम और उन के बच्चों की सेहत को ख़तरे में ना डाले । ज़रूरत इस बात की है कि रियासती हुकूमत सरकारी स्कूलों में मिड डे मील की स्कीम को मंज़ूरी दे कर अपना दामन झाड़ लेने के बजाय तलबा-ए-को मयारी और तग़ज़िया बख़श ग़िज़ा की फ़राहमी को यक़ीनी बनाए ताकि बच्चे स्कूल का खाना खा कर बीमार पड़ने और स्कूल छोड़ने पर मजबूर ना हूँ ।।