मिर्ज़ा मुहम्मद अली बेग ,जिन्हों ने Miniature Art की दुनियामें हैदराबाद का नाम रोशन कर दिया

(मो۔जसीम उद्दीन निज़ामी) कहते हैं कि, जब कोई मुसव्विर अपने तख़य्युलात को ख़ून-ए-जिगर में डुबो कर, बरशश के ज़रीया केनवस के सिने पर उतार दे और जब फ़न,सोज़-ए-दुरूं के साथ मिल कर उंगलियों की पोरों में समा जाय तो रंगों के ख़ूबसूरत इमतिज़ाज से जो शाहकार जन्म लेता है,उसे फ़न-ए- मुसव्विरी कहते हैं ….अगर ये सच्च है तो हैदराबादी सपूत , मिर्ज़ा मुहम्मद अली बेग इस ख़्याल की एक एसी मिसाल हैं, जिन्हें Miniature Art की दुनियां में आंधरा प्रदेश का पिकासू कहा जाय तो ग़लत ना होगा।

इस हक़ीत को वही शख़्स बेहतर अंदाज़ में समझ सकता है और उसकी बारीकियों को परख सकता है,जिनके अंदर फ़न शनासी का हुनर हो और जो मुसव्विरी के दौरान अपनाए जाने वाले रंग ओ आहंग से वाक़िफ़ हो। 68साला मुहम्मद अली बेग जिन्हों ने इस नादिर फ़न के बदौलत मुल्की और आलमी सतह पर हैदराबाद का नाम रोशन किया है ,को कई एक एवार्ड , तौसीफ नामे और आलमी शख़्सयात की जानिब से दादे तहसीन हासिल हो चुका है।

मलिका अलज़बथ दुवम भी उनके फ़न की सताइश किए बगैर ना रह सकिं। मिर्ज़ा मुहम्मद अली बेग जो कि वर्ल्ड फेडरेशन आफ़ मिनी एचरिसट (FM )बर्तानिया के रुकन भी हैं , ने , नुमाइंदा सियासत से बात करते हुए कहा कि जिस फ़न के उरूज ने उन्हें बाम उरूज पर पहुंचाया है ,उसकी तरबियत का आगाज़ उन्हों ने अपने चचा मिर्ज़ा मुहम्मद अकबर अली बेग के पास महज़ 8 साल की उम्र में ही कियाथा,जबकि इस फ़न के उस्ताज़ इक़बाल हुसैन के पास उन्होंने पच्चीस साल गुज़ार दिए ।

और आज जब कि मिनी एचर मुसव्विरी के फ़न मे नहों ने 60 साल का तवील सफ़र तए करलिया है, अल्लाह ने उन्हें दौलत ,इज़्ज़त और शौहरत सब कुछ अता कर दिया है। याकूत पूरा में वाक़्य सूर्य जंग पैलिस के करीब उनके घर का दीवान ख़ाना ,मिनी एचर आरट के क़दर शनाशों के लिए दीवान आम बना हुवा है जहां मुख़्तलिफ़ ममालिक के क़दर शनाश सय्याहों के आने का सिलसिला वक़फ़े वक़फ़े से जारी रहता है।

मिर्ज़ा साहब ने तो वैसे अब तक बेशुमार मिनी एचर आर्ट पर मबनी पेंटिंग्स बनाए हैं,ताहम उनकी ज़िंदगी का सब से ख़ास कारनामा वो माइक्रो पेंटिंग है जिसमें उन्होंने महिज़ एक मसूर की दाल पर पूरी सूरा फ़ातिहा ,बिसमिल्लाह से लेकर वलद्दालीन तक,तहरीर कर दिया है,जिसे (magnifying glass) अदसा शीशा के ज़रीया ही पढ़ा जा सकता है, इसी तरह एक और माइक्रो पिंटिंग जूसर फ चार सनटि मिटर के दायरा पर मुहीत है,मैं ताज महल की पूरी मंज़र कशी के साथ मुग़ल बादशाह शाहजहां और मुमताज़ महल की तस्वीर भी उतारी गई है,

जिस पर उन्हें साल 2004में तीसरा इंटरनेशनल कॉम्पिटीशन बराए World Federation of Miniaturistsएवारड हासिल हुआ।उनके मुताबिक़ ,इस तरह की तहरिरें या पेंटिंग्स के लिए वो गिलहरी के दुम के बाल से बनाए गए बरशश का इस्तिमाल करते हैं । 2010 मैं नेशनल मास्टर क्राफ्ट्स मैन का एवार्ड हासिल करने वाले मिर्ज़ा मुहम्मद अली बेग ने 2004 में हुकूमत हिंद की जानिब से एथन्स (यूनान) का पंद्रह रोज़ ह दौरा किया,जहां उन्होंने अपने मुज़ाहिरे से ना सिर्फ हैदराबाद बल्कि हिंदूस्तान का नाम रोशन किया।बादअज़ां 2011में हुकूमत अल्जीरिया की दावत पर दस रोज़ा दौरे के लिए रवाना हुए

और वहां भी अपने फ़न के नुक़ूश सबत कर दिए। इसी तरह दीगर ममालिक में भी उन्होंने मिनी एचर ऑट के वो नमूने दिखाए हैं जिसे देख कर लोग अनगुशत बदनदां रह गए। दिलचस्प बात ये है कि मिर्ज़ा साहब सिर्फ़ पेंटिंग ही नहीं बल्कि ख़त्ताती में भी महारत रखते हैं,और इस्लामी आर्ट के तहत वो मुख़्तलिफ़ कुरआनी आयात पर मुश्तमिल तोग़रे भी तय्यार करने का शरफ़ हासिल किया है जिसमें सोने और चांदी के इंक इस्तिमाल होते हैं ।

मिर्ज़ा साहब के मुताबिक़ अभी भी उनके पास हांगकांग अमरीका और दीगर ममालिक के क़दर शनाशों की जानिब से इस्लामी आर्ट तैय्यार कर ने के आर्डरस मौसूल होरहे हैं,जिस का हदया आम तौर पर पन्दह ता पच्चीस हज़ार से ज़ाइद नहीं लेते ,जबकि उनके बनाए हुए पेंटिंग्स तीन ता सात लाख रुपय में फ़रोख़त होते हैं।

इस फ़न को ज़िंदा रखने ,वो कई एक ख़ाहिशमंद अफ़राद को तरबियत भी फ़राहम कर रहे जो छःता एक साल के कोर्स पर मुश्तमिल है मगर इस फ़न के लिए ये मुद्दत नाकाफ़ी है, बाक़ौल उनके ,जिस तरह बस्तियां ,बस्ते बस्ते बस्ती हैं ,इसी तरह ये फ़न घिसते घिसते चमकता है।