जालंधर, 29 दिसंबर: ( एजेंसी) क्या असली घी आज भी असली ही हालत में मिलता है ? इसका जवाब 75 फ़ीसद नफ़ी में दिया जा सकता है । सिर्फ़ उन लोगों को छोड़कर जो असली घी घर में ही तैयार करते हैं । जी हाँ! असली घी जो सेहत का ज़ामिन होता है जिसके इस्तेमाल से ख़ून के सुर्ख़ जर्रात मुस्तहकम होते हैं और इस्तेमाल करने वाले के चेहरे पर शादाबी नज़र आती है ।
आजकल दूध की मिलाई पहले ही निकाल ली जाती है और अवाम के हिस्सा में जो दूध आता है वो सिर्फ़ सफेद रंग का स्याल होता है जिसमें ताक़त बराए नाम होती है । दूध को मुकम्मल ग़िज़ा कहा जाता है लेकिन इसी ग़िज़ा को अब अवाम के पेट तक पहुंचने से क़बल नाक़िस कर दिया जाता है ।
असली घी निकालने के लिए दूध का ख़ालिस होना ज़रूरी है जिसकी मिलाई ना निकाली गई हो । आज भी ऐसा ख़ालिस दूध मिलता है लेकिन उसकी क़ीमत दूसरे दूध से कहीं ज़्यादा होती है । लिहाज़ा ज़्यादा क़ीमत अदा करके लोग यही चाहते हैं कि उन्हें दूध की दूध मिलाई की मिलाई और फिर उस मिलाई से असली घी भी हासिल हो जाए ।
असली घी का इस्तेमाल ज़्यादा तर वही लोग करते हैं जिनका हाज़मा कमज़ोर नहीं होता । कमज़ोर हाज़मा वाले असली घी को हज़म करने में काफ़ी वक़्त लगाते हैं और उन्हें क़ब्ज़ की शिकायत हो जाती है । असली घी में चर्बी के इलावा दीगर विटामिन भी काफ़ी मिक़दार में होते हैं ।
बाज़ार में मिलने वाला असली घी असली नहीं बल्कि मिलावट वाला होता है । चाहे किसी भी मशहूर-ओ-मारूफ़ दूकान से ख़रीदा जाये लेकिन इसमें मिलावट के पहलू को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता । ज़रूरत इस बात की है कि असली घी को सेहत अफ़्ज़ा-ए-बनाते हुए मिलावट से गुरेज़ किया जाये ।
मिलावट से पाक असली घी तमाम अफ़राद ख़ानदान के लिए मुफ़ीद साबित हो सकता है ।