मिल्लत-ए-इस्लामिया को हुक्मराँ से खादिमों की ज़रूरत

हैदराबाद २८ अप्रैल (सियासत न्यूज़) मिल्लत-ए-इस्लामीया को हुक्मराँ से ज़्यादा खादिमों की ज़रूरत ही। हुकूमत तो हर कोई करना चाहता ही, लेकिन मिल्लत-ए-इस्लामीया की ख़िदमत के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है। मुस्लमानों को दर्दमंद क़ियादत के इंतिख़ाब के लिए शऊर का मुज़ाहरा करना चाहिए। इन ख़्यालात का इज़हार मौलाना सय्यद हामिद हुसैन शतारी ने किया।

उन्हों ने बताया कि मुस्लमान सयासी क़ियादत के फ़ुक़दान के सबब तमाम शोबा-ए-हियात में पसमांदा होते जा रहे हैं, इसी लिए मुस्लमानों को अपने इत्तिहाद के ज़रीया दानिशमंद और दूर अंदेश क़ियादत का इंतिख़ाब करते हुए तरक़्क़ी की राहें हमवारकरनी चाआई। मौलाना शतारी ने बताया कि मिल्लत-ए-इस्लामीया अपने शऊर का मुज़ाहरा करते हुए अगर जज़बा ईसार-ओ-क़ुर्बानी रखने वाली क़ियादत का इंतिख़ाब करते हैं तो ऐसी सूरत में वो तालीमी-ओ-मआशी मैदान में आगे बढ़ने के मुतहम्मिल हो सकते हैं। उन्हों ने मुस्लमानों के सयासी ज़वाल के अस्बाब का तज़किरा करते हुए कहा कि मुस्लिम राय दहनदे अपने वोट का इस्तिमाल करने में कोताही का मुज़ाहरा करते हैं, जिस के सबब कोई भी मुंतख़ब हो जाता है । अगर मुस्लमान अपने वोट का इस्तिमाल करते हुए दर्दमंद अफ़राद को मुंतख़ब करने की बाज़ाबता मुहिम चिल्लाना शुरू करदें तो ऐसी सूरत में मिल्लत-ए-इस्लामीया को सिर्फ वोट के ज़रीया मुंतख़ब होने के बाद बरसों नज़र ना आने वाले नुमाइंदों की जगह दर्दमंद नुमाइंदे मयस्सर आ सकते हैं, जो कि मिल्लत-ए-इस्लामीया के हक़ीक़ी मसाइल ऐवान में पेश करते हुए उन के हल को यक़ीनी बनाने की सलाहीयत के हामिल होंगी।

मौलाना सय्यद हामिद हुसैन शतारी ने बताया कि सयासी जमातों में मौजूद मुख़ालिफ़मुस्लिम ज़हनीयत के हामिल सयासी क़ाइदीन को सबक़ सिखाने के लिए मुस्लमानों को मुत्तहिद होने की ज़रूरत ही। जब तक मुस्लमान मुत्तहदा तौर पर मुस्लिम दुश्मन अनासिर के ख़िलाफ़ सैकूलर ज़हन के हामिल क़ाइदीन के हमराह शाना बह शाना नहीं चलती, उस वक़्त तक मुस्लमान अपनी दर्दमंद क़ियादत तैय्यार करने में नाकाम रहेंगी।

मुस्लमानों को मंसूबा बंद अंदाज़ में सयासी तौर पर कमज़ोर करने के लिए की जाने वाली कोशिशों का मुह तोड‌ जवाब देने के लिए ये ज़रूरी है कि मुस्लमान हालात का जायज़ा लेते हुए अपने वजूद का एहसास दिलाने के लिए मुत्तहदा तौर पर इंतिख़ाबात से क़बल ही जद्द-ओ-जहद का आग़ाज़ करें, ताकि सयासी जमातों को मुस्लमानों की क़ुव्वत का अंदाज़ा हो सके ।