मिस्कीन की फ़ज़ीलत

हज़रत अनस रज़ी० से रिवायत है कि नबी करीम स०अ०व० ने ये दुआ फ़रमाई कि ऐ अल्लाह! मुझ को मिस्कीन बनाकर ज़िंदा रख, मिस्कीनी ही की हालत में मुझे मौत दे और मिस्कीनों ही के ज़मुरा में मेरा हश्र फ़रमा। हज़रत आईशा सिद्दीक़ा रज़ी० (ने हुज़ूर स०अ०व०)को ये दुआ फ़रमाते हुए सुना तो) कहने लगीं या रसूलुल्लाह! आप ऐसी दुआ क्यों करते हैं?।

हुज़ूर स०‍अ०व० ने फ़रमाया इसलिए कि मसाकीन (अपने दीगर फ़ज़ाइल-ओ-ख़ुसूसीयात और हुस्न, अख़्लाक़-ओ-किरदार की वजह से आख़िरत की सआदतों और नेअमतों से तो बहरावर होंगे ही, लेकिन इससे क़ता नज़र उनकी सब से बड़ी फ़ज़ीलत ये है कि वो) दौलत मंदों से चालीस साल पहले जन्नत में दाख़िल होंगे। देखो आईशा! किसी मिस्कीन को अपने दरवाज़े से ना उम्मीद ना जाने देना (बल्कि हर हालत में इसके साथ एहसान और हुस्न-ए-सुलूक करना) अगरचे उसको देने के लिए तुम्हारे पास खजूर का एक टुकड़ा ही क्यों ना हो। ऐ आईशा! (अपने दिल में) मिस्कीनों की मुहब्बत रखो और उन को अपनी (मज्लिसों और महफ़िलों की) क़ुरबत से नवाज़ो (यानी उन को हक़ीर-ओ-कमतर जान कर अपने यहां आने जाने से मत रोको) अगर तुम ऐसा करोगी तो अल्लाह तआला क़यामत के दिन अपनी क़ुरबत से नवाज़ेगा (क्योंकि फ़िक़रा ओ- मसाकीन के साथ मुहब्बत-ओ-हमदर्दी का बरताओ और उन को अपने क़रीब आने देना अल्लाह तआला का क़ुर्ब हासिल करने का ज़रीया है)।

तिरमिज़ी, बहक़ी और इब्ने माजा ने इस रिवायत को हज़रत अबू सईद रज़ी० से सिर्फ़ मिस्कीनों के ज़मुरा में मेरा हश्र फ़र्मा तक नक़ल किया है। यानी उन की रिवायत में हज़रत आईशा सिद्दीक़ा रज़ी० का सवाल-ओ-जवाब और हदीस शरीफ़ के बाक़ी जुमले नहीं हैं।