मिस्र की इक़तिसादी और सियासी मुश्किलात

काहिरा 16 जनवरी – मिस्र में मुसलसल सियासी मुश्किलात और हंगामों का मुल्क की इक़तिसादी हालात पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। मिस्र के सदर मुहम्मद मर्सी को अपने मुल्क की हालत के बारे में बहुत फ़िक्रमंद होना चाहिए क्योंकि मिस्र की इक़तिसादी हालत इंतिहाई ख़राब है। सय्याह नहीं आ रहे और ग़ैर मुल्की सरमाया कार मिस्र में सरमाया कारी नहीं कर रहे हैं। पिछले हफ़्ते मिस्री पौंड की क़दर में रिकार्ड कमी हो गई। अपना ओहदा सँभालने के वक़्त तक इख्वानुल मुस्लेमीन के रुकन रहने वाले सदर मुर्सी मुल्की हालात के बारे में अपने तफ़क्कुरात को अपने चेहरे से ज़ाहिर नहीं होने देते। शायद ये भी है कि मुल्की इक़तिसादी हालात से ज़्यादा आने वाले इंतिख़ाबात उन के लिए अहम हैं। दो माह में मिस्री एक नई पार्लियामेंट का इंतिख़ाब करने वाले हैं। इन में हुकमरान जमात इख्वानुल मुस्लेमीन को मिस्र की बहुत ख़राब इक़तिसादी हालात की वजह से नुक़्सानात बर्दाश्त करना पड़ सकते हैं।

25 जनवरी के इन्क़िलाब के बाद से मिस्र के ज़र-ए-मुबादला के ज़ख़ाइर में 20 अरब डालर की कमी हो चुकी है और वो सिर्फ़ 15 अरब डालर रह गए हैं। उस की एक वजह ग़ैरमुल्की सय्याहों की आमद में नुमायां कमी है। जर्मन ट्रैवल एसोसी एष्ण के शैफर ने कहा के अगरचे दरया-ए-नील और एहराम मिस्र के इलाक़ों में हंगामे और फ़सादात नहीं हुए हैं लेकिन इस के बावजूद वहां भी सय्याहों की आमद में बहुत कमी हुई है।
इस के इलावा ग़ैरमुल्की सरमाया कारों ने भी मिस्र में सरमाया कारी बहुत कम कर दी है। इख्वानुल मुस्लेमीन की पालिसी की वजह से ना सिर्फ़ मग़रिबी बल्कि ख़लीज के सरमाया कारों के एतिमाद को भी धचका लगा है। 2009 और 2010 में ग़ैर मुल्की बराह-ए-रास्त सरमाया कारी तक़रीबन सात अरब डालर थी लेकिन 2011 और 2012 में ये सरमाया कारी मजमूई तौर पर सिर्फ़ 1.8 अरब डालर थी। ज़्यादातर मिस्री, मिस्री पौंड को अमरीकी डालर में तबदील करा रहे हैं। अगर ये रुजहान जारी रहा तो मिस्री करंसी की क़दर और ज़्यादा कम हो जाएगी।

मिस्र के अमीर और मुतवस्सित तबक़े से ताल्लुक़ रखने वाले ऐसे लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है जो अपना पैसा ख़लीज के अरब ममालिक में मुंतक़िल कर रहे हैं और या फिर ख़ुद वहां नक़्ल-ए-मकानी कर रहे हैं। इस वजह से दुबई में मकानात की क़ीमतों में भी इज़ाफ़ा हो गया है। अरब ममालिक में तबदीलीयों की ज़द में आने वाले तमाम अरब ममालिक से सरमाया और आला तालीम याफ़ता अफ़राद दूसरे ममालिक मुंतक़िल हो रहे हैं।

इख्वानुल मुस्लेमीन पिछले महीनों के दौरान सियासी तौर पर ज़्यादा ताक़तवर हो गई है लेकिन वो मुल्क के इक़तिसादी मसाइल पर क़ाबू नही पा सकी। मिस्री मर्कज़ी बैंक ये तंबीह कर चुका है कि ज़र-ए-मुबादला के ज़ख़ाइर संगीन हद तक कम हो चुके हैं। मिस्र का दीवालीया सिर्फ़ इस लिए नहीं निकला है क्योंकि उसे ग़ैर ममालिक से माली मदद मिल रही है। मिसाल के तौर पर पिछले हफ़्ते ख़लीजी मुल्क क़तर ने मिस्र की मदद में इज़ाफ़ा करते हुए उसे दुगुना, यानी पाँच अरब डालर कर दिया और इस तरह ये यक़ीन दिलाया कि वो मिस्र के इस्लाम पसंदों का साथ देता रहेगा।

मिस्री हुकूमत को बैन-उल-अक़वामी मालीयाती फ़ंड से 4.8 अरब डालर का क़र्ज़ मिलने की उमीद है लेकिन उस की कुछ शराइत हैं जिन में मिस्र के बजट से शहरीयों को दी जाने वाली सहूलतों को ख़त्म करना शामिल है। मिस्र में बजट की रक़म का एक बड़ा हिस्सा बिजली और रोटी पर ख़र्च किया जाता है ताकि अवाम के लिए इन ज़रूरी अश्या की क़ीमतें क़ाबिल-ए-बरदाश्त हद में रहें। एसकाट लैंड की एबर्डेन यूनीवर्सिटी के मिस्री उमूर के माहिर ऐडरिया टीटी ने कहा: रियास्ती इमदाद को ख़त्म करदेने का सब से ज़्यादा बुरा असर मिस्री मुआशरे के कमज़ोर तरीन ग़रीबों पर पड़ेगा और इस के नतीजे में शदीद एहतजाजात होंगे। इन में माज़ी में इस्लाम पसंद हुकूमत के मुख़ालिफ़ीन के इलावा इस के बाअज़ हामीभी हिस्सा लेंगे।

मुबस्सिरीन का अंदाज़ा है कि अगले हफ़्तों के दौरान मिस्र में अश्या जरूरिया की कीमतं में इज़ाफ़ा होगा। गंदुम और शक्र दरआमद की जाती है और अगर मिस्री पौंड की क़दर इसी तरह घटती रही तो दरआमदात औ शक्र और गंदुम जैसी बुनियादी ज़रूरी चीज़ों की क़ीमत में इज़ाफ़ा होगा जिस से मुल्क के हालात बहुत बिगड़ सकते हैं।(एजेनसी)