क़ाहिरा २९ दिसम्बर:(यु एन आई)क़ाहिरा की एक अदालत ने फ़ौजी जेलों में जे़रे हिरासत ख़वातीन के कुंवारे पन के टेस्ट रोकने का हुक्म दिया है।अदालत ने ये फ़ैसला सामीरा इबराहीम नामी एक ख़ातून की दरख़ास्त पर दिया है।
सामीरा इबराहीम ने मिस्र के फ़ौजी हुक्काम पर इल्ज़ाम लगाया था कि उन्हें मार्च में तहरीर स्क्वायर में जारी एक मुज़ाहिरे के दौरान हिरासत में लिया गया और उन्हें ज़बरदस्ती कुंवारे पन का टैस्ट देने पर मजबूर किया गया था। इंसानी हुक़ूक़ की तंज़ीमों का कहना है कि मिस्री फ़ौज ये टैस्ट अक्सर सज़ा के तौर पर इस्तिमाल करती है।
अदालत में मौजूद सैंकड़ों कारकुनों ने फ़ैसले का नारों से ख़ैर मुक़द्दम किया।कारकुनों ने मुतालिबा किया कि हुक्काम मुज़ाहिरीन को इस तरह के टेस्ट करने पर मजबूर करने वाले ज़िम्मेदार अहलकारों को सज़ा दें।इसी साल एक मिस्री जनरल का ब्यान आया था कि फ़ौज ने ऐसे टेस्ट का इस्तिमाल किया है ताकि जे़रे हिरासत ख़वातीन बाद में हुक्काम पर ज़िना-ए-बिलजब्र का बेजा इल्ज़ाम ना लगा सकें।
हालाँकि बाद में फ़ौजी अफ़्सर ने इस तरह के किसी ब्यान की तरदीद की थी लेकिन अवाम में बहरहाल सख़्त नाराज़गी पैदा होगई थी।इंसानी हुक़ूक़ की तंज़ीमों का कहना है कि ऐसे टेस्ट ज़िल्लत आमेज़ हैं और फ़ौजी जनरल की वज़ाहत सिर्फ एक बेमानी क़ानूनी तक़ाज़ा है।फ़ौज की जोडीशील अथार्टी के सरबराह जनरल आदिल मौरुसी ने कहा कि इस तरह का कोई टेस्ट कराने का कभी फ़ैसला ही नहीं किया गया इस लिए अदालत के हुक्म को नाफ़िज़ करने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता।
उन्हों ने कहा कि अगर इस तरह का कोई वाक़िया हुआ है तो इस में मुलव्वस फ़र्द को सज़ा दी जाएगी।ख़्याल रहे कि इस से क़बल फ़ौज को इस वक़्त भी ज़बरदस्त नुक्ता चीनी का सामना करना पड़ा था जब कई फ़ौजीयों को ख़वातीन के कपड़े फाड़ते और बुरी तरह मारते पीटे हुए वीडीयो इंटरनैट पर शाय कर दी गई थी।अमरीकी वज़ीर-ए-ख़ारजा हिलेरी क्लिन्टन ने मिस्र में ख़वातीन मुज़ाहिरीन के ख़िलाफ़ स्कियोरटी फ़ोर्सिज़ के ऐसे बरताओ को शर्मनाक और सदमा ख़ेज़ से ताबीर करते हुए उस की मुज़म्मत की थी।
हिलेरी क्लिन्टन ने कहा था कि मिस्र में इन्क़िलाब और हसनी मुबारक के इक़तिदार से अलैहदा हो जाने के बाद वहां हुकूमत ख़वातीन को सयासी नुमाइंदगी देने में नाकाम हो गई है और सड़कों पर ख़वातीन की तज़लील की जा रही ही।उन्हों ने कहा था कि, एक मरबूत अंदाज़ से ख़वातीन को बेइज़्ज़त करना, रियासत और इस के यूनीफार्म की ज़िल्लत होती ही। ये अज़ीम लोगों का ख़ासा हरगिज़ नहीं होती।
उन्हों ने कहा था कि, सड़कों पर ख़वातीन को पीटना, सक़ाफ़्त का हिस्सा नहीं एक जुर्म है और मुजरिम को क़ानून का सामना करना चाहीए।