मिस्र में अमन-ओ-सुकून ज़रूरी

मिस्र में हसनी मुबारक की आमिराना हुक्मरानी के ख़िलाफ़ तहरीक पैदा करके तब्दीली लाने वाली ताक़तों को मौजूदा हालात का सामना करने में किस हद तक कामयाबी मिलेगी, ये वक़्त गुज़रने के साथ पता चलेगा। इस वक़्त मिस्र में इक़्तेदार की कश्मकश ने शहरियों को बदअमनी की आग में झोंक दिया है।

इलेक्शन कमीशन ने सलफ़ी लीडर हाज़िम अबू इस्माईल को सदारती इंतेख़ाब के लिए नाअहल क़रार दिया, तो उनके हामियों ने मिस्र की फ़ौजी हुक्मरानी के ख़िलाफ़ सदाए एहतिजाज बुलंद किया। हसनी मुबारक का दौर-ए-हकूमत मिस्र के अवाम के लिए एक सख़्त गैर अथॉरीटी यह आमिरीयत पसंद इक़्तेदार को मजबूरन बर्दाश्त करना था।

इस मजबूरी को ख़ुद से दूर करने के लिए तहरीर स्क़्वायर का सहारा लिया गया था। अवाम की भारी तादाद ने इस चौराहे पर अपने मुस्तक़बिल की तस्वीर बनाने का फैसला किया, मगर अब इस तहरीर स्क़्वायर से निकलने वाले रास्ते मिस्र के कोने कोने तक फैल कर एक और बदअमनी की कैफ़ियत की खबरें मसला हैं।

मिस्र के अवाम की निगाहों में अपने हुकमरानों की तस्वीर किस नवीत की सजी है, इसका वाज़िह इशारा नहीं मिल रहा है। इसलिए सदारती इंतेख़ाबात की दौड़ में शामिल होने की रसा कुशी ने सूरत-ए-हाल को अबतर बना दिया। 23 और 24 मई के सदारती इंतेख़ाबात में इस बात का फैसला किया जाना है कि हसनी मुबारक का जानशीन कौन होगा ?

मिस्र में इस्लामी तहरीक सलफ़ी कमाल को सख़्त गैर और बा असर समझा जाता है। इसने इख्वान अल मुस्लिमीन के साबिक़ रुकन एतेदाल पसंद अबदुल मताम अबू अलिफ्ता के सदर बनाए जाने की हिमायत की है। सलफ़ी ग्रुप के बढ़ते असरात और हालिया मुख़ालिफ़ फ़ौजी हुक्मरानी मुज़ाहिरों से अंदाज़ा हो रहा है कि मिस्र में एक फ़र्द की मज़बूत हुक्मरानी के ख़ातमा के बाद कई अफ़राद अपनी ताक़त का इस्तेमाल करना चाहते हैं।

सलफ़ी ग्रुप के 30 लाख अक़ीदत मंद हैं और इस ग्रुप का चार हज़ार मसाजिद पर कंट्रोल है। सदारती इंतेख़ाबात पर ये ग्रुप किस हद तक असर अंदाज़ हो सकेगा? इस पर मुख़्तलिफ़ तजज़िये हो रहे हैं, लेकिन इससे अबू अलिफ्ता की ताईद करके इख़वान अल मुस्लिमीन की उभरती हुई ताक़त के सामने रुकावट खड़ी कर दी है।

अबू अलिफ्ता को इख्वान अल मुस्लिमीन में इस्लाह पसंद समझा जाता है। गुज़श्ता सदारती इंतेख़ाबात में खड़े होने का फैसला करने के बाद अपने ग्रुप से अलैहदगी इख्तेयार कर ली। मिस्र में एक तरफ़ इस्लाह पसंद और क़दामत पसंद क़ाइदीन की दौड़ ने इंतेख़ाबी सूरत-ए-हाल को तसादुम की नौबत पर पहुंचा दिया है, दूसरी तरफ़ सऊदी अरब के सिफ़ारत ख़ाना बंद कर देने और सिफ़ारत कार-ओ-कौंसिल जनरल की बाज़ तलबी के फैसला से अवाम में बे नी पाई गई है।

सऊदी अरब ने इंसानी हुक़ूक़ के वकील अहमद अल ग़ज़ावी को मनश्शियात की स्मगलिंग पर गिरफ़्तार किया था। इनकी रिहाई का मुतालिबा करने वाले उनके हामियों ने तशद्दुद का रवैय्या इख्तेयार करके मिस्र और सऊदी अरब ताल्लुक़ात को धक्का पहुंचाने की कोशिश की। फ़ौजी कौंसल मिस्र के सरबराह फील्ड मार्शल हुसैन तनतावी ने अगरचे इस तनाज़ा की यकसूई के लिए पहल की, सऊदी अरब हुकूमत से राबिता भी क़ायम किया।

मिस्र से सिफ़ारत कारों की बाज़ तलबी का मुआमला और सदारती इंतेख़ाबात के लिए दाख़िली तौर पर रसा कुशी से दो-चार मिस्र को आने वाले दिनों में हालात को मज़ीद अबतर होने से बचाने के लिए समझदारी से काम लेने की ज़रूरत है। सदारती इंतेख़ाबात के मसला पर अगर मुक़ामी पार्टियां एक दूसरे के ख़िलाफ़ तशद्दुद पर उतर आती हैं तो ये इससे शहरियों का सुकून तबाह होगा।

सलफ़ी लीडर हाज़िम अबू इस्माईल के हक़ में एहतिजाज करने वाले अपने तीन मुतालिबात दस्तूर के आर्टीकल 28 को ख़तम करने, जर के तहत सदारती उम्मीदवारों को नाअहल क़रार दिया गया है, मुसल्लह अफ़्वाज पर मुश्तमिल अस्करी कौंसल की हुकूमत पर निगरानी ख़तम करने और मौजूदा सुप्रीम इलेक्शन कमीशन को ख़तम करके अज सर-ए-नौ उसकी तशकील पर ज़ोर दिया है।

फ़ौजी कौंसल की हुक्मरानी के ख़िलाफ़ इस तरह के मुज़ाहिरों को इंसाफ़ के क़त्ल, ज़ुल्म और जबर की सियासत के रद्द-ए-अमल में अवामी शऊर का इज़हार क़रार दिया जाए और पुरतशदुद एहतिजाज की हिमायत की जाए तो मिस्र में सदारती इंतेख़ाबात से क़ब्ल बोहरान पैदा करना मुनासिब नहीं है।

मिस्र के अवाम को राय दही के ज़रीया अपने लीडर के इंतेख़ाब का हक़ है, तो इस हक़ से इस्तेफ़ादा करने का पुरअमन मौक़ा दिया जाना चाहीए। इस से क़ब्ल फ़ौजी हुकूमत को आएँ साज़ी कमेटी की तशकील के सिलसिला में पाए जाने वाले बोहरान के हल के लिए मुज़ाकरात करते हुए कमेटी की तशकील को यक़ीनी बनाने के साथ अवाम के लिए एक पुरअमन माहौल पैदा करने की ज़रूरत है ताकि आने वाले सदारती इंतेख़ाबात में अवाम अपने हक़ वोट से इस्तेफ़ादा करते हुए मिस्र के बेहतर मुस्तक़बिल का फैसला कर सकें।

इस वक़्त मिस्र में फ़ौजी कौंसल की हुकूमत के इलावा इलेक्शन कमीशन को भारी ज़िम्मेदारी अदा करनी है। इसके इलावा सऊदी अरब के साथ पैदा शूदा सिफ़ारती कशीदगी को दूर करते हुए सिफ़ारत ख़ाना की कुशादगी के लिए मुज़ाकरात की कोशिश की जानी चाहीए ताकि दोनों जानिब पाई जाने वाली कशीदा सूरत-ए-हाल को मामूल पर लाया जा सके।