मुंबई के एक सनअत कार ने क़ुरआन हकीम का हुमा लिसानी डीजीटल नुस्ख़ा मुतआरिफ़ किया है ताकि मुल्क के मुसलमानों के इलावा ग़ैरमुस्लिम भी इस से फायदा करसकें।
यासिर अर्फ़ात च्यारिटेबल ट्रस्ट के सरबराह और महाराष्ट्रा नवनिर्माण सेना (MNS) के नायब सदर हाजी अर्फ़ात शेख़ ने बताया कि कम से कम बारह हिंदुस्तानी ज़बानों में क़ुरआन हकीम के नुस्ख़ा के साथ एक डीजीटल क़लम और रीडर मुतआरिफ़ किया गया है। उन्होंने असरी नौईयत के इस नुस्ख़ा की पहली जिल्द कट एन एस सरबराह राज ठाकरे को पेश की।
इस मौके पर राज ठाकरे ने कहा कि क़ुरआन हकीम के इस डीजीटल नुस्ख़ा से बेहद मुतास्सिर हुए और यकीन दिया कि इस्लामी तालीमात को अच्छी तरह समझने के लिए वो इस असरी नौईयत के नुस्ख़ा का मुताला ज़रूर करेंगे। शेख़ ने एक न्यूज़ एजेंसी से बात करते हुए कहा कि डीजीटल नुस्ख़ा रीडर के साथ कई मुस्लिम ममालिक में दस्तयाब है जिस से ना सिर्फ़ बच्चों बल्कि ख़ानदान के बुज़ुर्गों को भी क़ुरआन की तिलावत के लिए आसानी हुई है।
ये ऐसे ग़ैरमुस्लिमों की भी रहनुमाई करता है जो अरबी जुबान में क़ुरआन मजीद के मुताला से मजबूर हैं। चार साल क़बल अर्फ़ात शेख़ ने राज ठाकरे की 43 वीं सालगिरह के मौके पर उन्हें मराठी जुबान में तहरीर किया गया क़ुरआन मजीद बतौर-ए-तोहफ़ा दिया था, जिन हिंदुस्तानी जुबानों में डीजीटल क़ुरआन दस्तयाब है।
इन में उर्दू, हिन्दी, मराठी, गुजराती, बंगाली, तेलुगू, तामिल और मलयालम जुबानें शामिल हैं जबकि बैनुल-अक़वामी सतह पर क़ुरआन का डीजीटल नुस्ख़ा फ़्रांसीसी, चीनी और पुश्तो जुबान में दस्तयाब है। अर्फ़ात शेख़ का मंसूबा है कि मुल्क गीर पैमाने पर डीजीटल क़ुरआन की मार्केटिंग के लिए तालीम-एयाफ्ता मुस्लिम नौजवानों को ख़ुसूसी तर्बियत देंगे।